समझिये छत्तीसगढ़ में PESA कानून का अर्थ, इसके राजनीतिक और सामाजिक मायने


पेसा एक्ट 1996 में बना लेकिन साल 2000 में गठित हुए छत्तीसगढ़ तक पहुंचने के लिए इसे 22 साल लग गए, कांग्रेस खुद इसे चर्चा में लाई, भाजपा सरकार के 15 साल के दौरान शायद ही इस पर कभी गंभीर बात हुई।


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छत्तीसगढ़ Updated On :

छत्तीसगढ़ सरकार ने पेसा कानून  (पंचायत एक्सटेंशन ऑफ शेड्यूल एरिया)  को मंज़ूरी दे दी है। इस कानून को लागू करने वाला यह सातवां राज्य बन चुका है। कांग्रेस पार्टी के लिए यह चुनावी मुद्दा था। छत्तीसगढ़ में पेसा एक्ट लागू करना राहुल गांधी का भी सपना रहा। जिन्होंने चुनावी घोषणा पत्र में इसे लागू करने की बात की और बाद में वे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पेसा लागू करने की प्रक्रिया का हिस्सा भी रहे।

ये है पेसा एक्ट – भारत सरकार ने ग्रामीण क्षत्रों के लिए सेल्फ गर्वनेंस मॉडल पर विचार किया। इसके बाद संविधान में 73वां संशोधन किया गया और त्रिस्तरीय पंतायती राज व्यवस्था अस्तित्व में आई। 1995 में भूरिया कमेटी की अनुशंसा पर पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 यानी पेसा एक्ट लागू हुआ।

पेसा अधिनियम को आदिवासी क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के पारंपरिक,  धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार किया गया था। यह ग्राम सभाओं को, शासन की बुनियादी इकाई, विकास कार्यों को मंजूरी देने और अनुसूची 5 के रूप में निर्दिष्ट क्षेत्रों में सभी सामाजिक क्षेत्रों और स्थानीय योजनाओं में संस्थानों और कार्यकर्ताओं को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करता है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पेसा ग्राम सभाओं को किसी भी उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले अनिवार्य रूप से परामर्श करने की शक्ति प्रदान करता है। जब भी भूमि अधिग्रहण होता है तो पुनर्वास और इससे जुड़े दूसरे मामलों में भी ग्राम सभाओं से परामर्श किया जाना चाहिए। इसके अलावा, ग्राम सभाओं को पेसा अधिनियम के आधार पर  खनिजों के लिए पूर्वेक्षण लाइसेंस और खनन पट्टे देने में भी अधिकार है।

इसके तहत  ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंजूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार भी मिलता है। इसमें नीतियों को लागू करने वाली प्रक्रियाएं और कर्मी, लघु (गैर-लकड़ी) वन संसाधनों, लघु जल निकायों और लघु खनिजों पर नियंत्रण रखने, स्थानीय बाजारों का प्रबंधन, भूमि के अलगाव को रोकने और अन्य चीजों के साथ नशीले पदार्थों जैसे शराब आदि को नियंत्रित करना शामिल है।

आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में इसलिए है महत्वपूर्ण – छत्तीसगढ़ राज्य के 32 में से दस जिले भारत के संविधान के अनुसार, अनुसूचित जनजाति या आदिवासी आबादी की प्रधानता के कारण अनुसूची 5 की श्रेणी में आते हैं। छत्तीसगढ़ की 30% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आती है। राज्य में प्राकृतिक संसाधन भी काफी अधिक हैं। ऐसे में इसका नियंत्रण इस आबादी के पास भी होना चाहिए।

कांग्रेस के लिए इसलिए ज़रूरी –  पेसा एक्ट लागू करना राज्य की कांग्रेस सरकार के लिए बड़ी सफलता है। साल 1996 में संसद में पारित हुआ यह एक्ट 1999 में बने छत्तीसगढ़ राज्य तक पहुंचने में करीब 22 साल बाद पहुंच सका है। प्रदेश में एक लंबे समय तक भाजपा की सरकार रही लेकिन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस मुद्दे को बहुत महत्व नहीं दिया। उनके कार्यकाल में शायद ही कभी पेसा कानून लागू करने को लेकर चर्चाएं हुईं।

राहुल गांधी, साल 2018 में छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार के दौरान ( Photo: Twitter/@INCIndia))

इसके बाद साल 2018 के विधानसभा चुनावों में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। पार्टी ने यहां बड़ी जीत हांसिल की। उन्हें 90 में से 68 सीटों पर सफलता मिली। इसके बाद पेसा एक्ट लागू होने की संभावनाएं बढ़ गईं। इसकी वजह कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र था जिसमें इसे लागू करना पार्टी ने अपने लक्ष्यों में शामिल किया था। पार्टी के इस चुनावी जन घोषणा पत्र को रणनीतिक रुप से नवंबर 2018 में रमन सिंह के निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव से ही तब के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के द्वारा ही जारी किया गया था।

इस बारे में गंभीर होने के बाद भी कांग्रेस सरकार के नेताओं के लिए यह कानून लागू करना आसान नहीं था। इसके लिए जनचर्चा की एक जटिल और लंबी प्रक्रिया से होकर गुज़रना था जो अगर केवल ब्यूरोक्रेसी के बल पर की जाती तो इसके राजनीतिक परिणाम परेशानी भरे हो सकते थे ऐसे में पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने इसमें अहम भूमिका निभाई।

राहुल गांधी, भूपेश बघेल, सिंह देव का रोल…

करीब दो साल पहले जून 2021 में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पेसा के लिए काम शुरु किया था। इसके कुछ ही समय बाद टीएस सिंह देव ने पंचायत मंत्री के रूप में इस काम में तेज़ी लाने के लिए प्रयास किए। उन्होंने सभी अनुसूचित क्षेत्रों के ग्राम स्तर के प्रतिनिधियों के साथ परामर्श की एक श्रृंखला शुरू की। इस दौरान मंत्री सिंहदेव ने इस एक्ट को लेकर आदिवासी प्रतिनिधियों से दर्जनों बार लंबी चर्चा की। इस दौरान खनन, स्थानीय स्तर पर होने वाले विवाद, वनोपज प्रबंधन आदि करीब 10 बेहद जटिल विषयों पर विस्तार से बात की गई। जिसके बाद नियमों का एक मसौदा तैयार किया गया। यह मसौदा नौ अध्यायों में था।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव

पिछले साल (2021) फरवरी के महीने में में पांच दिनों तक एक अहम बैठक हुई थी। जिसमें पेसा कानून के लिए काम करने वाले सभी राजनेता, ब्यूरोक्रेट, आदिवासी समाज के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस बैठक में आख़िरी दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद भी शामिल हुए और इस बेहद जटिल मुद्दे पर 64 पेज की एक बुकलेट के रुप में यह मसौदा जारी हुआ था।

विरोध भी झेलना पड़ा…  पेसा एक्ट को लागू करने में देरी के लिए कांग्रेस सरकार को विरोध का सामना भी करना  पड़ा। इसके लिए छत्तीसगढ़ में सामाजिक संघर्ष होते रहे हैं। साल 2021 में ही इसके लिए एक व्यापक प्रदर्शन हुआ था। जब आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाली संस्था छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के सदस्यों ने 30 अगस्त को राज्य के 15 जिलों में विरोध प्रदर्शन किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी सत्ता में आने के बाद राज्य में पेसा नियम बनाने के अपने वादे से मुकर रही है। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों को जाम कर दिया और अपनी पटरियों पर ट्रेनों को रोक दिया और धमकी दी कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो पूरे छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से आर्थिक नाकेबंदी कर दी जाएगी।

ये हांसिल कर सकते हैं आदिवासी-  पेसा कानून आदिवासी नागरिकों को उनके अधिकार देता है। यह अधिकार उनके संस्कृति को और प्राकृतिक संपदा की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित होते हैं। पेसा एक्ट कितना कारगर है इसके बहुत से उदाहरण हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण ओड़ीसा के कालाहांडी और रायगड़ा के नियमगिरी पहाड़ियों में प्रस्तावित बॉक्साइट परियोजना से जुड़ा है। जहां राज्य सरकारें तो परियोजना को लागू करना चाहती थीं लेकिन वहां के नागरिकों की इस पर असहमति थी। यहां जिस क्षेत्र में राज्य सरकार ने खनन परियोजना को मंजूरी दी थी, वे रायगड़ा और कालाहांडी जिलों के उन हिस्सों के अंतर्गत आते थे जो संविधान की पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में दर्ज हैं।

ख़बर: वेदांता को झटका, ग्राम सभा ने ठुकराई खनन की अर्ज़ी

इस मामले में अप्रैल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, पेसा के प्रावधानों के अनुसार, इन दो जिलों के कम से कम 12 गांवों की ग्राम सभाओं से इस बात पर परामर्श किया गया था कि क्या नियामगिरी पहाड़ियों से बॉक्साइट के खनन की अनुमति देने के ओडिशा राज्य सरकार के बनाए रखा जाए या उसका विरोध किया जाए लेकिन  अगस्त 2013 में एक ऐतिहासिक निर्णय में सभी 12 ग्राम सभाओं ने खनन प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिससे वह योजना वहीं खत्म हो गई। इस योजना में दुनिया के सबसे बड़े खनन प्रोजेक्ट्स पर काम करने वाला वेदांता ग्रुप शामिल था लेकिन संबंधित ग्राम सभाओं से खनन पट्टा प्रदान करने से पहले परामर्श नहीं किया गया था। जिसके बाद उन्होंने प्रोजेक्ट पर असहमति दी थी।

 संविधान की पांचवी अनुसूचि को यहां समझियेः अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण को पांचवीं अनुसूची में दर्शाया गया है। अनुच्छेद 244(1) सीधे अनुसूची 5 से संबंधित है। दस राज्यों में वर्तमान में पांचवीं अनुसूची क्षेत्र हैं: आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना।



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