प्रधानमंत्री ने अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को इतना ऊँचा उठा दिया है कि वे अब उस जगह वापस नहीं लौट सकते जहां से उन्होंने सत्ता-प्राप्ति की यात्रा प्रारंभ की थी।
सत्ताओं के अधिनायकवाद की शुरुआत नागरिकों से ही होती है। नागरिकों की रगों में ही सबसे पहले तानाशाही प्रवृति के गुण भरे जाते हैं।
गनीमत है कि मेरे आंसू अभी भी हिंदी में ही निकलते हैं और जब कभी चहकने का मौका आया तो मैं कसम खाकर कहता हूं कि मैं हिंदी में ही चहक पाया।
प्रधानमंत्री ने सत्ता को अपने लिए काम के नशे में तब्दील कर लिया है। जैसा गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं :’नरेंद्र भाई पिछले नौ सालों से बिना एक दिन की भी छुट्टी…
कान्ह राष्ट्रीय उद्यान और बरगी बांध जैसी परियोजनाओं से हजारों आदिवासी ग्रामीण विस्थापित हुए हैं।
विपक्ष का हाथ अगर सम्मिलित रूप से सही मुद्दों और जनता की असली नब्ज़ तक नहीं पहुँचा तो मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार न सिर्फ़ 2024 में ही फिर से लौटकर…