इस बार विरोध का रंग काला नहीं लाल है


वैसे तो विरोध का रंग काला होता है, मगर म्यांमार के लोगों ने सैनिक शासन का विरोध करने के लिए लाल रंग को चुना है। वे सड़कों, बस स्टॉप और सरकारी दफ्तरों के साइन बोर्ड पर लाल रंग फेंक रहे हैं। उनका कहना है यह लाल रंग उन मासूम लोगों के खून का रंग है, जो सेना का विरोध करते हुए मारे गए।


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वैसे तो विरोध का रंग काला होता है, मगर म्यांमार के लोगों ने सैनिक शासन का विरोध करने के लिए लाल रंग को चुना है।

वे सड़कों, बस स्टॉप और सरकारी दफ्तरों के साइन बोर्ड पर लाल रंग फेंक रहे हैं। उनका कहना है यह लाल रंग उन मासूम लोगों के खून का रंग है, जो सेना का विरोध करते हुए मारे गए। फरवरी से सैनिक शासन लगने के बाद म्यांमार में विरोध प्रदर्शनों में 714 लोग मारे जा चुके हैं।

आंदोलन के नेताओं ने लोगों से हर जगह खून के रंग की यह चित्रकारी करने की गुजारिश की है ताकि सेना अपने ही लोगों का खून बहाने के लिए शर्मिंदगी महसूस करे।

दस साल के मुश्किल दौर के बाद कुछ समय पहले म्यांमार में चुनाव हुए थे और लोकतंत्र की उम्मीद बंधी थी, मगर वहां वापस सैनिक शासन लगा दिया गया। लोग अपनी चुनी हुई नेता नोबेल विजेता आंग सान सू कुई को रिहा करने की मांग को लेकर सड़कों पर जुलूस निकाल रहे हैं।

लोग इन जुलूसों में तख्तियां लिए चलते हैं, जिन पर लिखा है – ‘हमारी नेता को बचाइए, वह हमारे भविष्य की उम्मीद है’! लोगों ने इस मामले में दुनिया की बेरुखी पर तंज करते हुए लाल रंग से सड़कों पर लिखा है – ‘प्रिय संयुक्त राष्ट्र, आशा है आप ठीक हो, मगर हम मर रहे हैं!’

उधर संयुक्त राष्ट्र ने कहा है – ‘हमें डर है कि म्यामांर में गृह युद्ध जैसे हालात होते जा रहे हैं, कहीं यह सीरिया जैसा ना बन जाए।’



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