गढ़कालिका माता मंदिरः दोनों नवरात्रि में नौ दिन नहीं बदलता श्रृंगार, 24 घंटे खुला रहता है मंदिर


मराठा, क्षत्रिय-ब्राह्मण सहित 18 कुलों की कुलदेवी है मां गढ़कालिका। दो हजार वर्ष से अधिक पुराना है धार का गढ़कालिका माता मंदिर। उपाध्याय परिवार की 34वीं पीढ़ी पुजारी की गद्दी संभाल रही है और माता की सेवा कर रही है।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :
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धार। शहरवासियों की आराध्य मां गढ़कालिका मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में घटस्थापना के साथ शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्र की पहली काकड़ा आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दरबार में हाजरी लगाने पहुंचे थे।

झांझ-मंजीरे और ढोल-नगाड़ों के साथ मां की आरती के बाद घटस्थापना की गई। प्रतिदिन नवरात्र में मां कालिका की छह आरतियां होंगी। हर आरती का अपना एक महत्व है।

श्रृंगार से लेकर भोजन और विश्राम से पहले माता की आरती होती है। शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक माता जागरण करती है इसलिए पूरे नौ दिन माता का दरबार खुला रहता है और भक्तों के दर्शन की व्यवस्था रहती है।

धार का प्राचीन गढ़कालिका माता मंदिर दो हजार वर्ष से अधिक पुराना है। वर्तमान में मंदिर का संचालन गढ़कालिका माता ट्रस्ट करता है जबकि पूजा का अधिकार पुजारी के रूप में उपाध्याय परिवार को है।

उपाध्याय परिवार की 34वीं पीढ़ी पुजारी की गद्दी संभाल रही है और माता की सेवा में है। पुरखों से उपाध्याय परिवार मां गढ़कालिका की पूजा करता आ रहा है।

मंदिर के पुजारी करूण उपाध्याय ने बताया कि शारदीय नवरात्र में मंदिर 24 घंटे खुले रहते हैं। नवरात्र पर सुबह 4 बजे काकड़ आरती होती है। इसके बाद माता का श्रृंगार नव्वारी साड़ी 16 हाथ की महाराष्ट्रियन साड़ी से होता है। साथ ही परमारकालीन गहनें माता को पहनाए जाते हैं।

एक बार श्रृंगार होने के बाद नौ दिन बाद दशहरे पर ही दोबारा स्नान और श्रृंगार किया जाता है। नवरात्र समापन से पहले धार राजघराने द्वारा अष्टमी पर हवन करवाया जाता है, रात 8 बजे से शुरू होकर रात करीब 1 बजे तक हवन चलता है। ग्यारस पर बाड़ी पूजन और ज्वारे का विसर्जन किया जाता है।

हर आरती का अपना महत्व –

  1. काकड़ आरती सुबह 4 बजे होती है। नवरात्रि के नौ दिन काकड़ आरती होती है। इसमें माता को रबड़ी का भोग लगता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु काकड़ आरती में शामिल होते हैं।
  2. श्रृंगार आरती सुबह 9 बजे माता का श्रृंगार होने के बाद की जाती है।
  3. पंच खाद्य आरती सुबह 10.30 बजे ड्रायफ्रूट भोग मां कालिका को लगाकर आरती की जाती है।
  4. भोजन आरती सुबह 11.30 बजे होती है। यह वक्त माता के भोजन का वक्त है। इसमें मां के पसंदीदा व्यंजन रोजाना मंदिर की रसोई में तैयार करवाए जाते हैं।
  5. संध्या आरती रोजाना शाम 7 बजे होती है। इसमें मां गढ़ाकालिका को खीर-पूरी और नैवेद्य का भोग लगता है।
  6. शायन आरती रात 9 बजे होती है। इसमें माता को दूध का प्याला भोग लगाने के बाद विश्राम के लिए पालना लगाया जाता है। नवरात्रि में जागरण के कारण पालना नहीं लगता।

पीढ़ियों से रहता है उल्लूओं का परिवार –

मंदिर के पुजारी उपाध्याय बताते है कि दशकों से मंदिर के शिखर पर उल्लूओं का परिवार भी रहता आया है। कई पीढिय़ों से उल्लू यहां मौजूद हैं और वर्तमान में भी दुर्लभ प्रजाति के उल्लू यहां पर मां कालिका के मंदिर के शिखर के बीच रहते हैं। रात के वक्त इन्हें देखा भी जा सकता है।

18 कुलों की देवी है मां गढ़कालिका –

मां गढ़कालिका के भक्त पूरे साल महाराष्ट्र, गुजरात और मालवा-निमाड़ से आते हैं। खासतौर पर मां गढ़कालिका 18 कुलों की कुलदेवी हैं। इनमें मराठा, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य व क्षुद्र आदि कुल माता को पूजते हैं। धार राजघराना यानी पंवार परिवार की भी कुलदेवी मां गढ़कालिका हैं।

शरद पूर्णिमा पर होता है समापन –

शारदीय नवरात्रि पर शुरू होने वाला नौ दिनी पूजन और उत्सव दशहरे पर खत्म नहीं होता। गढ़कालिका मंदिर पर यह पूजन शरद पूर्णिमा के दिन खत्म होता है।

शरद पूर्णिमा पर पूर्णिमा की चांदनी में खीर खैवन के बाद मां गढ़कालिका को भोग लगाया जाता है। इसके बाद नवरात्रि उत्सव का विधिवत समापन होता है।



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