अधिकारियों ने निकाला मनरेगा का तेल, मजदूरों के बजाय मशीनों से हो रहा काम


सुदूर ग्राम सड़क में मुरम की जगह मिटटी का इस्‍तेमाल, बेस में डाल रहे मिटटी तो कैसे टिकेगी सड़क। निगरानी करने वाले अफसर ही करवा रहे गड़बड़ी।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :
mitti for road

धार। जिले में मनरेगा में गड़बड़ी की तमाम शिकायतें हुई हैं। धार से लेकर भोपाल और दिल्‍ली तक यह शिकायतें पहुंची हैं, लेकिन इसके बाद अधिकारियों में वरिष्‍ठ अफसरों में न तो खौफ है और न ही नियमों के तहत काम करने की जिम्‍मेदारी है।

यही कारण है कि आदिवासी बाहुल्‍य जिले में कोरोना महामारी के वक्‍त लॉकडाउन के दौरान वरदान साबित होने वाली महात्‍मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा योजना पर पलीता लगता जा रहा है।

अब हालात यह है कि गांव-फलियों में लोग रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हैं और इसका फायदा उठाकर अफसर मनमर्जी करने नजर आ रहे हैं।

मनरेगा योजना के तहत होने वाले कामों में मशीनों के उपयोग पर पाबंदी है, लेकिन जिले में मशीनों से ही काम लिया जा रहा है।

जॉब कार्डधारियों के मस्‍टर तो भरे जा रहे हैं, लेकिन मशीनों से काम कर अधिकारी मजदूरों के हक पर जेसीबी चलाने में व्‍यस्‍त हैं। मजदूरों के नाम पर निर्माण वाले कार्यों पर एक भी मजदूर नजर नहीं आता है।

मशीनों से काम करने के बाद भी निर्माण के मापदंडों की अनदेखी देखने को मिल रही है। ऐसे में ग्रामीणों की सुविधा के लिए होने वाले कामों में सिर्फ और सिर्फ अधिकारियों का ही शुभ-लाभ होता नजर आ रहा है।

यह है मामला –

जिले के सरदारपुर विकासखंड के ग्राम खाकेड़ी से सगवाल तक सुदूर सड़क का निर्माण आवागमन बेहतर बनाने के लिए किया जा रहा है। इस पर 45 लाख रुपये खर्च किए जाना है। ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग सरदारपुर द्वारा इसका निर्माण करवाया जा रहा है।

सबसे खास बात यह है कि इसमें ग्रामीणों से भी जनभागीदारी के रूप में सहायता राशि ली गई है। इसके बावजदू गुणवत्‍ता के नाम पर अधिकारी काम पर मिटटी फेरते नजर आ रहे हैं।

mitti on road not muram

एक्‍सपर्ट की माने तो सुदूर सड़क निर्माण के लिए सबसे जरूरी मुरम का इस्‍तेमाल होता है। मुरम का बेस तैयार करवाकर उस पर गिटटी बिछाई जाती है ताकि बारिश में सड़क ना बैठे, लेकिन यहां पर इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना देखने को मिला है।

यहां पर जेसीबी मशीनों का इस्‍तेमाल कर काली मिटटी से बेस तैयार किया जा रहा है। काली मिटटी पानी लगने के बाद फूलती है और धूप लगने से फिर वह सिकड़ने लगती है। ऐसे में सड़क पर दोबारा गड्ढे होने की स्थिति बने की संभावना रहेगी।

इसके बावजूद मुरम के बजाय डंपरों से काली मिटटी डाल दी गई है। वहीं मजदूरों की बजाय जेसीबी मशीनों से काम लिया जा रहा है। ऐसे में लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी ग्रामीणों को अच्‍छी सड़क नहीं मिल पाएगी।

लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी लीपापोती –

खाकेड़ी से सगवाल के बीच बन रही इस सड़क की तस्‍वीरे सामने आने के बाद यह तय है कि लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी अधिकारियों की मैदानी स्‍तर पर लीपापोती जारी है।

इस मामले में विभाग के संबंधित इंजीनियर एस कनेश से जब इस मामले में सवाल किए गए तो उन्‍होंने बीमारी का बहाना बनाकर बात करने से इंकार कर दिया।

अब सवाल जिले के वरिष्‍ठ और जिम्‍मेदार अधिकारियों से है, जिन पर ग्रामीण अंचल में शासन की योजनाओं को अमलीजामा पहनाकर ग्रामीणों को लाभ दिलवाना है।

जांच होगी और कार्रवाई भी –

ग्राम सुदूर सड़क निर्माण में मशीनों के इस्‍तेमाल की जानकारी मेरे संज्ञान में लाई गई है। इसे दिखवाया जाएगा। जहां तक मिटटी की बात है तो उसकी भी जांच होगी। – श्रृंगार श्रीवास्‍तव, सीईओ, जिला पंचायत, धार



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