मध्यप्रदेश में महू समेत पांचों सैन्य छावनी परिषद होंगी खत्म, मिलिट्री स्टेशन में होंगे तब्दील


सैन्य छावनी परिषद को भंग करने के पीछे रक्षा मंत्रालय ने कारण बताते हुए कहा है कि रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा छावनियों के क्षेत्रों के विकास पर खर्च हो रहा है।


अरूण सोलंकी अरूण सोलंकी
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इंदौर। रक्षा मंत्रालय अब सुनियोजित तरीके से छावनियों की पुरातन औपनिवेशिक प्रथा को समाप्त कर रहा है, जिसके अंतर्गत देशभर में 62 सैन्य छावनी परिषदों को समाप्त करने का विचार कर रहा है।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह कई बार कह चुके हैं कि सेना में ब्रिटिश परंपराओं को खत्म किया जाएगा। सरकार के इस फैसले से मप्र के महू (इंदौर), जबलपुर, मुरार (ग्वालियर), पचमढ़ी, सागर की सैन्य छावनी परिषद प्रभावित होंगे।

महू कैंटोनमेंट बोर्ड की स्थापना 1818 में हुई। महू मप्र के इंदौर शहर से 23 किमी दूर मुंबई-आगरा रोड पर है। महू छावनी परिषद की जनसंख्या करीब 90 हजार है और इसके 8 वार्डों में लगभग 30 हजार 485 मतदाता हैं।

रक्षा मंत्रालय ने 27 अप्रैल को एक अधिसूचना के माध्यम से हिमाचल प्रदेश में योल के लिए छावनी का टैग हटा दिया। योल भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के काँगड़ा ज़िले में स्थित एक छावनी नगर है, जिसकी स्थापना 1941 में हुई थी।

छावनी के भीतर सैन्य क्षेत्र को एक सैन्य स्टेशन में बदल दिया गया है, जबकि नागरिक क्षेत्र को नगर पालिका में विलय कर दिया गया है। इसी प्रक्रिया में, अगली छावनी परिषद नसीराबाद (अजमेर) है।

सूत्रों के अनुसार, सरकार सैन्य स्टेशनों और नागरिक क्षेत्रों को अलग करके और बाद में इन नागरिक क्षेत्रों को उनके संबंधित राज्यों में विलय करके छावनी शहरों की ब्रिटिश-युग की अवधारणा से दूर जाने की सोच रही है।

यह कई छावनी कस्बों के लिए प्रशासन में बदलाव होगा, जिनमें से अधिकांश की स्थापना आज़ादी के पहले हुई थी। छावनी को नगरपालिका माना जाता है और इसे चलाना राज्य का विषय है।

इस प्रक्रिया के तहत, छावनी परिषद सैन्य क्षेत्र मिलिट्री स्टेशन में बदल जाएगी और सिविल एरिया के लिए लिए नगर पालिका का गठन जाएगा। इससे रक्षा मंत्रालय को कैंट के असैन्य क्षेत्रों पर होने वाले खर्च से बचने में मदद मिलेगी।

गौरतलब है कि छावनी परिषद के नागरिकों को अभी राज्य सरकार की योजनाओं का सीधा लाभ नहीं मिलता था, लेकिन इस नए बदलाव से अब नागरिकों को योजनाओं का फायदा मिल सकेगा।

छावनी बोर्ड के क्षेत्राधिकार को अलग करने को रक्षा प्रबंधन में खर्च करने के एक अन्य प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। सूत्रों का मानना है कि इससे रक्षा मंत्रालय को कैंट के असैन्य क्षेत्रों जैसे सड़कों और बिजली सहित बुनियादी ढांचे के रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन पर खर्च करने से बचने में मदद मिलेगी।

बता दें कि रक्षा मंत्रालय की एक शाखा – रक्षा संपदा महानिदेशालय – जो सैन्य अचल संपत्ति को नियंत्रित करती है, के पास लगभग 17.99 लाख एकड़ भूमि है, जिसमें से 1.61 लाख एकड़ भूमि देश भर में 62 अधिसूचित छावनियों के भीतर है।

छावनियों के बाहर फैली 16.38 लाख एकड़ भूमि में से लगभग 18,000 एकड़ या तो राज्य किराये की भूमि है या अन्य सरकारी विभागों को हस्तांतरण के कारण रिकॉर्ड से विलोपन के लिए प्रस्तावित है। इसकी जानकारी रक्षा मंत्रालय द्वारा आजादी के बाद पहली बार हाल ही में छावनियों के लिए अपनी भूमि के सर्वेक्षण के दौरान मिली थी।

सेना के एक सेवानिवृत्त कर्मी ने कहा कि

यह सशस्त्र बल को आम तौर पर जमीन से जुड़े भ्रष्टाचार से बचने और अतीत में रिपोर्ट किए गए अन्य सौदों से बचने में भी मदद करेगा। बता दें कि कैंट के नागरिक क्षेत्रों के लगातार बढ़ते विस्तार ने कई बार सैन्य स्टेशनों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने के साथ ही रक्षा भूमि पर दबाव बढ़ाया है।

सैन्य छावनी परिषद से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक,

धारणा के विपरीत यह कदम सभी के लिए समान रूप से फायदेमंद साबित होगा। जो नागरिक अब तक नगरपालिका के माध्यम से राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच नहीं बना रहे थे, वे अब स्थानीय निकायों के माध्यम से इनका लाभ उठाने की स्थिति में होंगे। जहां तक सेना का संबंध है, वे भी अब सैन्य स्टेशन के विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

छावनी बोर्ड के कर्मचारियों और संपत्तियों को आगे से आसपास की नगरपालिका अपने कब्जे में ले लेगी। राज्यों को व्यक्तियों और बुनियादी ढांचे को समायोजित करने के लिए नई स्थिति के लिए कानूनी रूप से समायोजित करना होगा जो अब उनकी एकमात्र जिम्मेदारी होगी।



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