इंदौरः कृषि महाविद्यालय की जमीन बेचने के सरकार के फैसले से संघ नाराज


संघ के कई अनुसांगिक संगठनों के पदाधिकारी सरकार के जहां-तहां सरकारी जमीन बेचने के इस फैसले को नासमझी का कदम बताते हुए विरोध दर्ज कर रहे हैं।


डॉ. संतोष पाटीदार डॉ. संतोष पाटीदार
इन्दौर Published On :

इंदौर। इंदौर स्थित कृषि कॉलेज भूमि को बेचने के सरकारी फैसले से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार से नाराज है। दूरदराज ग्रामीण इलाकों तक संघ के कनिष्ठ से लेकर वरिष्ठ जन सरकार व सत्ता से जुड़े पूंजीपतियों के खेल से आक्रोशित हैं।

कृषि शिक्षा, अनुसंधान व विस्तार के साथ पर्यावरण के लिए अनमोल इस भूमि को सुनियोजित तरीके से नीलाम करने के बड़े खेल के दांवपेंच को संघ परिवार बखूबी समझ रहा है।

संघ के कई अनुसांगिक संगठनों के पदाधिकारी सरकार के जहां-तहां सरकारी जमीन बेचने के इस फैसले को नासमझी का कदम बताते हुए विरोध दर्ज कर रहे हैं। संघ का मुख्य संघठन भारतीय किसान संघ तो सरकार से खुलकर नाराज है।

संघ के प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय पदाधिकारी शिवराज सरकार के इस बड़े खेल को नजदीक से देख रहे हैं। वरिष्ठ पदाधिकारी आपसी चर्चा में कह रहे हैं कि कृषि कॉलेज की भूमि बेचने के खेल में अफसर सफल नहीं हो पाएंगे। चाहे इसके पीछे सत्ताधारी शीर्ष नेता व बीजेपी समर्थित कॉर्पोरेट ग्रुप्स ही क्यों ना हों।

एक युवा स्वयंसेवक व कृषक प्रदेश संघ निष्ठ कृषि कर्मण्य सरकार के इस फैसले की तुलना पाकिस्तानी सरकार से करते हैं। वे कहते हैं कि

कंगाल पाकिस्तान अपनी सरकारी जमीन व भवन सबको बेचकर गुजर-बसर की जद्दोजहद कर रहा है। इसी मॉडल को शिवराज सरकार के पूंजीवादी राष्ट्र सेवक ब्यूरोक्रेट्स ने भविष्य की चिंता किए बिना अंगीकार कर लिया है। वैसे भी प्रदेश पाकिस्तान की तरह हजारों करोड़ के कर्ज में डूबा है। क्या सरकार इस तरह साबित करना चाहती है कि प्रदेश की आर्थिक दशा डांवाडोल है?

किसान संघ के प्रांत पदाधिकारी आनंद सिंह पंवार कहते हैं कि

प्राकृतिक संसाधनों को सरकार ने मजाक बना दिया है। इनकी क़द्र नहीं करने के घातक परिणाम पहले से ही शहर भुगत रहा है। शहर में नहीं के बराबर खुली भूमि है। असल में हमेशा से ही सरकार व उसके टॉप ब्यूरोक्रेट्स के दिल दिमाग में खेती व किसानों के लेकर हीनभावना रची बसी है। उसीका नतीजा है कृषि कॉलेज की यह भूमि जिसका जलवायु परिवर्तन से जूझती दुनिया मे अपना शैक्षणिक व अनुसंधान का अनमोल महत्व है। उसे स्वार्थी अफसरशाही नहीं समझ पा रही है। खेती के प्रति सरकारी दुराभाव के कारण ही हमेशा सरकार, सिर्फ खेती की उपजाऊ हरीभरी जमीनों को तथाकथित विकास के लिए निगलती जा रही है।

किसान संघ के प्रांत अधिकारी लक्ष्मी नारायण पटेल पहले दिन से कृषि कॉलेज की भूमि बेचने खिलाफ हैं। वे कहते हैं कि

जनता को पूरी तरह गफलत में रखते हुए यह काम सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। इस भूमि पर पेड़ लगाने व सघन वन बहुत बेहतर तरीके से विकसित करने का काम कॉलेज खुद कर लेगा। इसके लिए अधिग्रहण या जमीन बेचने की क्या जरूरत है। यह सब लोग समझ रहे हैं। यह सब अफसरों की मनमानी है।

एक अन्य पदाधिकारी कहते हैं कि जमीन बेचने के खेल साबित करते हैं कि सरकार का अफसरों पर कोई नियंत्रण नहीं है।

 



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