आदिवासी दिवस मनाने भील प्रदेश का झंडा थामे पातालपानी पहुंचे हजारों समाजजन


प्रशासन की पाबंदियों तथा सख्ती को ताक पर रखकर टंटयामामा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर मंदिर में माथा टेका। इन युवाओं ने रास्ते भर जमकर हथियार भी लहराए और प्रशासन मूकदर्शक बनकर देखता रहा।


अरूण सोलंकी अरूण सोलंकी
इन्दौर Published On :
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महू। विश्व आदिवासी दिवस पर हजारों की संख्या में आदिवासी समाजबंधुओं ने पातालपानी पहुंच कर प्रशासन और पुलिस की नींद उड़ा दी। समाजबंधुओं ने प्रशासन की पाबंदियों तथा सख्ती को ताक पर रखकर टंटयामामा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर मंदिर में माथा टेका। इन युवाओं ने रास्ते भर जमकर हथियार भी लहराए और प्रशासन मूकदर्शक बनकर देखता रहा।

सोमवार नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर पातालपानी में आदिवासी समाज का हुजूम उमड़ा। यहां सुबह नौ बजे से समाजबंधुओं का आना शुरू हो गया था लेकिन बारह बजे बाद यहां का नजारा ही बदल गया।

वाहनो पर सवार हजारों आदिवासी युवा एक तीर एक कमान आदिवासी एक समाज के नारों के साथ हाथों में तीर-कमान के साथ हथियार लहराते हुए आने लगे, जिससे प्रशासन की नींद उड़ गई।

हालांकि प्रशासन सुबह से ही यहां तैनात हो गया था, लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि इतनी संख्या में आदिवासी यहां आ जाएंगे, वह भी हथियारों के साथ। समाजबंधुओं ने यहां पहुंच कर टंटया मामा की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया व मंदिर में पूजा कर माथा टेका।

मलेंडी रोड तिराहे पर एसडीओपी विनोद शर्मा बड़गोंदा थाने के जवानों के साथ तैनात थे जहां इन्होंने रोकने व समझाइश देने का प्रयास किया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ जबकि पातालपानी में एसडीएम अक्षत जैन व एएसपी पुनीत गेहलोद सहित अन्य स्थानों पर तहसीलदार, नायाब तहसीलदार, थाना प्रभारी व जवान तैनात थे, लेकिन आदिवासी युवाओं ने किसी की एक नहीं सुनी।

मलेंडी रोड तिराहे पर इन आदिवासी युवाओं को रोकने व डीजे नहीं बजाने को लेकर एसडीओपी शर्मा ने कोशिश की लेकिन कोई असर नहीं हुआ बल्कि इन युवाओं ने काफी बहस की।

इनका कहना था कि डीजे ओर आदिवासियों की रैली को रोक रहे हैं तो कांवड़ यात्रा क्यों नहीं रोकते? बहस के दौरान कई युवाओं ने कांवड़ यात्रा ओर उनमें लगे डीजे की वीडियो तक दिखाने की भी बात कही जबकि पातालपानी में जमा हजारों की संख्या में आदिवासी युवाओं को रोकने व समझाइश देने का प्रयास तक नहीं किया गया।

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खुलकर लहराए हथियार –

आदिवासी दिवस पर पहली बार आदिवासी युवा हाथों में तीर-कमान व डंडे के अलावा तलवार, कटार, गुप्ती, दराती आदि लहराते देखे गए। हालांकि इन हथियारों में धार नहीं थी।

इस कारण बनी ऐसी स्थिति –

पुलिस प्रशासन को पूरा विश्वास था कि नौ अगस्त को ना तो कोई रैली निकलेगी और ना ही इतनी बड़ी संख्या में आदिवासी एकत्र होंगे क्योंकि कुछ दिन पूर्व ही जयस के स्थानीय अध्यक्ष भीमसिंह गिरवाल ने वीडियो जारी कर अपील की थी कि आदिवासी दिवस पर किसी प्रकार की रैली व अन्य आयोजन नहीं होंगे।

हालांकि, इस अपील का असर उल्टा हो गया तथा ज्यादा संख्या में आदिवासी युवा यहां पहुंचे। युवाओं का कहना है कि यह हमारा दिवस है जो पूरी दुनिया मना रही है ऐसे में इसे रोकना गलत था।

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अब उठेगी भील प्रदेश की मांग –

इस बार भीड़ में आदिवासी समाज ने एक नई मांग शुरू कर दी। जो अभी तो बैनर व झंडे तक ही सीमित है। जो आने वाले समय में प्रशासन के लिए एक नई समस्या बनेगी। आदिवासी युवाओं के हाथ में जयस, टंटया मामा, तिरंगे झंडे थे वही एक युवा हाथों में एक नये नारे का झंडा लिए हुआ था जिस पर भील प्रदेश लिखा था। यह झंडा सबसे अलग होने के कारण चर्चा मे रहा।

कोई नेतृत्व व नेता नहीं –

सोमवार को हजारों की संख्या में पातालपानी पहुंचे इन आदिवासी समाजबंधुओं का कोई नेता नहीं था और ना ही कोई नेतृत्व कर रहा था। पूछने पर यही कहते रहे कि हम सब हमारे नेता हैं।



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