उज्जवला योजना फिलहाल नाकाम, लकड़ी से ही जल रहे गांव-देहात के चूल्हे


बढ़ती महंगाई से आदिवासी बहुल गांव के कई उपभोक्ता दोबारा सिलेंडर रिफिल कराने में लाचार


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Updated On :

नरसिंहपुर। जिले के ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में एक बार फिर लोग खाना पकाने के लिए गैस का नहीं बल्कि लड़की का उपयोग कर रहे हैं। इन इलाकों में लोग अक्सर खाना पकाने के लिए लकड़ी ले जाते हुए देखे जा सकते हैं। दरअसल उज्जवला गैस कनेक्शन योजना पिछले 8 महीने से लगभग बंद पड़ी है। सभी गैस एजेंसियों में डिमांड की लंबी वेटिंग है। वहीं बढ़ती महंगाई से आदिवासी बहुल गांव के उज्जवला गैस कनेक्शन धारी जरूरत पर भी बार बार गैस रिफिल कराने असमर्थ दिखाई दे रहे हैं।

प्रदेश में उज्जवला योजना के तहत मिलने वाले गैस कनेक्शन पिछले वर्ष अक्टूबर-नवंबर माह से बंद हैं। नरसिंहपुर जिले में शुरुआत से लेकर अब तक 1 लाख 32 हज़ार उज्जवला गैस कनेक्शन धारी हैं। जिन्हें जिले की कुल 21 गैस एजेंसियों से यह कनेक्शन मिले हैं। इनमें 10 एजेंसी भारत पेट्रोलियम की एवं 11 अन्य इंडैन, एचपी आदि की हैं।

नरसिंहपुर जिला मुख्यालय में ही तीन गैस एजेंसियों से 30 हज़ार से ज्यादा उज्जवला गैस कनेक्शन हैं। इसके अलावा यहां नए कनेक्शनों के लिए लोगों की लाइन लगी हुई है। सभी एजेंसियों में पात्र परिवार कनेक्शन मिलने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन पिछले 8 महीने से वह मायूस हैं। ऐसे उपभोक्ताओं का कहना है कि शायद अब चुनाव के वक्त ही यह योजना फिर धमाके के साथ शुरू होगी।

आदिवासी बहुल गांवों में उज्जवला गैस कनेक्शन उपभोक्ताओं ने लिए हैं लेकिन बढ़ती महंगाई और रोजगार नहीं मिलने से गरीबों के हाल बेहाल हैं। महिलाएं दोबारा गैस सिलेंडर रिफिल नहीं करा सकीं इसलिए अब वह आस-पास से लकड़ियों का जुगाड कर परंपरागत ईंधन से रसोई पकाने मजबूर हैं।

ग्राम पिपरहा की राधाबाई कहती है कि अब उनके पास 11- 12 सौ रुपए नहीं है कि वह दोबारा ,तिबारा गैस सिलेंडर भरवा सकें। वे कहती हैं कि बहुत बड़ी समस्या महंगाई है और अब रोजगार भी नहीं है। गांव में अब मनरेगा से भी रोजगार की कोई सूरत दिखाई नहीं दे रही है।

एक और गरीब आदिवासी बहुल गांव रातीकरार खुर्द की रमाबाई नोरिया कहती हैं कि गैस सिलेंडर एक तरफ रखे हैं। वह तो झाड़ियों ,लकड़ियों को इकट्ठा करके खाना बना लेती हैं। अब उनके पास इस महंगाई में फिर गैस सिलेंडर भरवाने पैसे नहीं हैं।

ग्राम समनापुर की पुष्पा कहती है कि कई स्कूलों में खाना बनाने वाले स्व सहायता समूह के लिए भी अब गैस सिलेंडर शोपीस हैं। चूल्हे में खाना बनाने की मजबूरी है।
स्व सहायता समूह को सरकार से कई महीनों का समय पर पैसा नहीं मिलता इससे गैस सिलेंडर कहां से भरवाएं।

 

गैस ऐजेंसी संचालक इस मामले में बात करने से कतराते हैं। हालांकि गोपनीयता की अपील साथ वे बताते हैं कि बहुत से गैस कनेक्शन धारी जो ग्रामीण इलाकों के हैं जो दोबारा रिफिल कराने में कम आ पाते हैं और जो आते हैं वे भी 2-3 महीने के अंतर से आते हैं। वे बताते हैं कि ये लोग ज्यादा गैस का इस्तेमाल नहीं करते लेकिन 2-3 महीने में इसलिए आ जाते हैं क्योंकि लंबे समय तक गैस सिलेण्डर रिफिल नहीं कराने से कनेक्शन कार्ड होल्ड कर दिया जाता है और फिर  निरस्त हो जाता है इसलिए उन्हें आने की मजबूरी है। वह कहते हैं कि यह सच है कि जब गांव में रोजगार, काम धंधे नहीं हैं तो बेरोजगारी में व्यक्ति पैसे कहां से लाएगा और महंगे गैस सिलेंडर भरवाएगा।

कनेक्शन के लिए यह है पात्रता

किसी भी ऐसे परिवार में जहां किसी भी पारिवारिक सदस्य के नाम गैस कनेक्शन नहीं है तो वह इस योजना का पात्र माना जाता है। परिवार की महिला सदस्य के नाम पर कनेक्शन की पात्रता होती है। समग्र आईडी और आधार कार्ड से यह ज्ञात हो जाता है कि परिवार में किसी नाम से गैस कनेक्शन है या नहीं।



Related