फ्री की संस्कृति, मंदिर-मस्जिद विवाद और देश का संकट

संदीप नाईक
अतिथि विचार Published On :

फ्री की संस्कृति ने एक ओर जहां बड़े समुदाय को सरकार पर निर्भर कर दिया है, मुफ्त राशन लेकर जीवन चलाने से दो साल में लोग इतने निकम्मे हो गये हैं कि कहना मुश्किल है, सोचिये 80 करोड़ लोग निशुल्क राशन ले रहे हैं आख़िर 75 वर्षों में हम कहाँ आ गए?

यह ठीक बंगाल में पड़े अकाल की तरह की स्थिति है – जिसका ज़िक्र बार – बार अमर्त्य सेन अपनी आत्मकथा में करते हैं और यकीन मानिये यह बहुत भयावह है कि हम कुछ भी नहीं सोच विचार रहें, हमारी स्मृति लोप हो गई है, तात्कालिक लाभ लेने के चक्कर में विध्वंस के मुहाने बैठे हैं।

सरकार ने देश में संग्रहित गेहूँ – चावल को बाँटकर देश को बर्बाद कर दिया है। अब महंगाई, रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर बाकी सब इतने बड़े – बड़े मुद्दे हैं कि सरकार को भी कुछ सूझ नहीं रहा – कुछ इसलिए रोज मन्दिर – मस्ज़िद या बकवास करने के मुद्दे उठाकर लोगों को बरगला रहें हैं, सरकारों को इन सब पापों के लिये कोई कभी माफ़ नहीं करेगा।

स्थितियाँ बहुत मुश्किल होती जा रही है , 2024 में क्या होगा, क्या नहीं, कौन जीतेगा या हारेगा – उसके अपने निहितार्थ हो सकते हैं, दुर्भाग्य यह है कि बात – बात पर सही और प्रभावी उद्धरण देने वाला जनमानस और ज्ञान – विज्ञान से परिपूर्ण जनमानस क्यों नहीं कुछ सोच रहा बोल रहा या कुछ कर रहा।

आज लगभग 70 % लोग यानी 80 करोड़ लोग निशुल्क राशन खा रहे हैं दो साल से, नवम्बर के बाद क्या होगा किसी ने सोचा है, चुनावों के बाद क्या होगा, और तब सरकार के पास असली हक़दार लोगों के लिए भी।

आख़िर हम कब अपने बारे में, अपने परिवार, बच्चों, युवाओं, समुदाय और देश के बारे में सोचेंगे।

सोचिये, बोलिये और कुछ करिये, कुछ नहीं तो सवाल तो पूछ ही सकते हैं , हम सबसे गम्भीर संकट से गुजर रहे हैं और समाधान सरकार नहीं, राजनैतिक लोग नहीं, नेता नहीं,  मीडिया, एनजीओ, बुद्धिजीवी नहीं, शासन या प्रशासन नहीं – लोग ही खोजेंगे और यह हमको ही करना पड़ेगा।

#खरी_खरी