स्वच्छ उर्जा से जीने की राह दिखाता एक आत्मनिर्भर परिवार


एक पूर्व सैन्य अधिकारी की बेहतर जीवन जीने की ज़िद ने बनाया एक आदर्श मॉडल, बायोगैस और सोलर से पूरी हो रही उर्जा की ज़रुरत, महंगी गैस और बिजली के बावजूद करते हैं बड़ी बचत


आदित्य सिंह आदित्य सिंह
हवा-पानी Published On :

इंदौर। उर्जा कितना ज़रूरी शब्द है यह अब तक ज्यादातर लोग समझने लगे हैं लेकिन इंदौर जिले के महू में एक पूर्व सैन्य अधिकारी ने इसे काफी पहले समझ लिया था। उन्होंने सेना से रिटायर होने के बाद अपना जीवन एक नए तरीके से शुरु करने का विचार किया और अब यह विचार उनकी जीवन पद्धति बन चुका है।

ले. कर्नल (रिटा.) अनुराग शुक्ला और उनकी पत्नी अर्चना शुद्ध जीवन शैली के लिए महू के नजदीक एक गांव में रहते हैं। शुक्ला दंपत्ती यहां प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उनके मुताबिक जीवन के हर आयाम में शुद्धता ज़रूरी है। ऐसे में उर्जा भी इसके लिए बेहद अहम है। शुक्ला दंपत्ती ने अपने घर को  रिन्युएबल एनर्जी यानी नवीकरणीय उर्जा से सजाया है।

बायोगैस संयंत्र और इससे भोजन पकातीं अर्चना शुक्ला

लोग जहां घरेलू गैस एलपीजी के बढ़ते दामों से परेशान हैं तो वहीं शुक्ला परिवार ने इसकी चिंता काफी पहले छोड़ दी थी। यहां वे अपनी ज़रुरत के डेयर उत्पादों के लिए गायों को पालते हैं तो उन्हीं गायों के गोबर से बायोगैस प्लांट चलाते हैं। इस प्लांट से मिलने वाली गैस से रसोई का पूरा काम हो जाता है। अनुराग शुक्ला के मुताबिक इस तरह उन्हें सालाना दस से बारह हजार रुपये की बचत हो जाती है।

इसके साथ ही अब वे अपनी बिजली भी बना रहे हैं। शुक्ला दंपत्ति के जीवन में सौर उर्जा का भी काफी महत्व है। साल 2014-15 में उन्होंने एक किलोवाट का सोलर संयंत्र लगाया था। उस समय इससे उनकी बिजली की ज़रूरत कुछ हद तक पूरी हो जाती थी लेकिन इसके बाद उन्होंने इसे धीरे-धीरे बढ़ाने की सोची और अब वे पांच किलोवॉट का संयंत्र लगा चुके हैं। इस संयंत्र से वे अपनी ज़रूरत से कहीं अधिक बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। उनके पास अब इतनी बिजली बनती है कि वे बिजली विभाग को इसे लौटाते हैं और उनके मुताबिक उन्हें इससे काफी बचत होती है।

शुक्ला बताते हैं कि वे अपने संयंत्र से रोजाना तकरीबन 25 यूनिट तक बिजली बना लेते हैं और उन्हें केवल पानी निकालने के लिए ही पारंपरिक बिजली की ज़रूरत पड़ती थी। फिलहाल वे रोजाना अधिकतम करीब दस से बारह यूनिट बिजली ही इस्तेमाल करते हैं और  इस तरह से वे अपनी ज़रूरत से लगभग दो गुनी बिजली बना रहे हैं। इस तरह वे बिजली पर होने वाले खर्च से मुक्त हैं।

खाना पकाने के लिए सोलर संयंत्र

अनुराग शुक्ला के मुताबिक सोलर संयंत्र एक परिवार के लिए बिजली उत्पादन का सबसे मुफीद तरीका है। जिसे अपनाकर बिजली खर्च से बचा सकता है। उनकी पत्नी अर्चना सोलर संयंत्रों से खाना भी पकाती हैं। इन्होंने अपनी छत पर सोलर से चलने वाले प्रेशर कुकर और ड्रायर लगाए हुए हैं। प्रेशर कुकर से अक्सर खाना पकाया जाता है और ड्रायर का इस्तेमाल अपनी सब्जियों, फलों को सुखाने में किया जाता है। इस तरह इनकी उपज लंबे समय तक बची रहती है।

शुक्ला दंपत्ती के मुताबिक सोलर उर्जा का भोजन के लिए इस्तेमाल बेहद कारगर और बिल्कुल साफ-सुथरा तरीका है। सूरज की उर्जा से सूखने के कारण इनमें किसी तरह का हानिकारक तत्व नहीं होता और इनकी उम्र काफी बढ़ जाती है तो रखरखाव आसान हो जाता है।

अनुराग शुक्ला के मुताबिक इस तरह वे अपनी प्याज़, भिंडी, कठहल जैसी दर्जनो फसलों को सुखाकर कई महीनों तक रखते हैं। ऐसे में बेमौसम फसल उगाने और उसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।

शुक्ला दंपत्ती की इस जीवन शैली से एक बड़ा वर्ग प्रभावित है लेकिन उनके मुताबिक अब तक सौर उर्जा के प्रति वह जागरुकता नहीं आई है जो आनी चाहिए थी। इसकी कई वजहें हो सकती है लेकिन इनमें सबसे अहम है जानकारी का आभाव।

हालांकि सरकारें इसके लिए प्रयास कर रहीं हैं लेकिन लोग अपनी जीवन शैली में इतना उलझ चुके हैं कि वे प्रयोग करने से घबरा रहे हैं लेकिन वर्तमान समय में जो ईंधन और बिजली के लगातार बढ़ रहे दामों के चलते उन्हें आज नहीं तो कल अक्षय उर्जा के यह उपाय अपनाने ही होंगे क्योंकि यही धरती का सबसे सुरक्षित भविष्य होगा।