चार राज्यों में फिर से फैला लंपी वायरस, बिना वैक्सीन बीमारी के तेजी से फैलने की आशंका


लंपी के दोबारा फैलने के चलते जहां किसानों को पशुओं की मौत के रूप में भारी आर्थिक नुकसान की आशंका है तो पहले से ही दूध की खऱीद में गिरावट का सामना कर रहे डेयरी उद्योग के लिए एक नए संकट की आहट है।


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नई दिल्ली। बीते साल के मई-जून माह में देशभर के करीब दर्जन राज्यों में एक लाख से ज्यादा गौवंश की जान लेने वाले लंपी स्किन रोग ने एक बार फिर से दस्तक दे दी है और आने वाले दिनों में इसके तेजी से फैलने की आशंका जताई जा रही है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस समय संपी रोग का सबसे ज्यादा प्रकोप उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है जबकि पंजाब, हरियाणा व यूपी में भी इस रोग से जुड़े हजारों मामले सामने आ रहे हैं।

बीते साल करीब 15 लाख गौवंश को अपनी चपेट में लेने और करीब एक लाख पशुओं की जान लेने वाले इस रोग की रोकथाम के लिए सरकार कोई खास कदम ऩहीं उठा पाई है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के मुताबिक, इस साल फिर से इस बीमारी के फैलने की आशंका थी जो अब हकीकत में बदल रही है। आने वाले दिनों में बीमारी अधिक तेजी से फैल सकती है। इस बीमारी के फैलने का समय मई और जून ही है। करीब आधा दर्जन राज्यों में इसका प्रकोप हम देख रहे हैं। पशु वैज्ञानिकों के मुताबिक इस रोग को रोकने का सबसे पुख्ता उपाय गौवंश का वैक्सीनेशन है।

बीते साल 10 अगस्त को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने लंपी रोग से बचाव के लिए आईसीएआर द्वारा विकसित लंपी प्रोवैक इंड वैक्सीन रिलीज किया था।

हालांकि, यह वैक्सीन अभी भी नियामकीय मंजूरी नहीं मिलने की वजह से वैक्सीनेशन के लिए उपलब्ध नहीं है जबकि इसके उत्पादन के लिए चार कंपनियां टेक्नोलॉजी ले चुकी हैं।

आईसीएआर के वैज्ञानिक के मुताबिक, यदि लंपी प्रोवैक इंड वैक्सीन का उत्पादन करने की अनुमति समय पर मिल जाती और पशुओं में इसका वैक्सीनेशन किया जाता तो साल भर बाद दोबारा फैल रही इस बीमारी पर अंकुश लगने की संभावना बढ़ जाती।

अभी तक सरकार ने लंपी स्किन रोग से बचाव के लिए गोट पॉक्स वैक्सीन की ही इजाजत दी है और पशुओं का देशभर में वैक्सीनेशन भी किया गया, लेकिन आईसीएआर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि गोट पॉक्स इसके लिए पूरी तरह से प्रभावी वैक्सीन नहीं है।

बताया जाता है कि इसे एक ऐसी स्थिति में उपयोग किया गया जब कोई दूसरा वैक्सीन उपलब्ध नहीं था। गोट पॉक्स वैक्सीन का प्रभाव 60 से 70 फीसदी है। महाराष्ट्र में पिछले साल सभी गौवंश का शत प्रतिशत वैक्सीनेशन किया गया, इसके बावजूद वहां गौवंश बीमारी से प्रभावित हुए और हजारों पशुओं की मौत इस बीमारी से हो गई।

लंपी के दोबारा फैलने के चलते जहां किसानों को पशुओं की मौत के रूप में भारी आर्थिक नुकसान की आशंका है तो पहले से ही दूध की खऱीद में गिरावट का सामना कर रहे डेयरी उद्योग के लिए एक नए संकट की आहट है।

अप्रैल से दूध उत्पादन का घटना शुरू हो चुका है इसलिए लंपी रोग का फैलना उपभोक्ताओं के लिए भी मुश्किलें खड़ी करेगा। दूध के उत्पादन में गिरावट की स्थिति में यह कीमतों में इजाफे का कारण भी बन सकता है।



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