पेसा के तहत हुई नियुक्तियों में मनमानी, आदिवासियों की नौकरी खा गए मुख्‍यमंत्री के संघप्रिय ओएसडी!


नौसेना के अधिकारी हैं मरकाम लेकिन खुलकर भाजपा और संघ के मंच से कार्यक्रमों में राजनीतिक भाषण देते हैं।


आदित्य सिंह आदित्य सिंह
बड़ी बात Updated On :

इंदौर। मध्‍य प्रदेश में आदिवासियों के लिए सुरक्षित विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की नज़र काफी पहले से है। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में पार्टी की सफलता इन्हीं आदिवासी बहुल सीटों पर टिकी है। इसके लिए एक विशेष अधिकारी शासन में तैनात किए गए हैं जिन्हें भारतीय नौसेना से लाया गया है। कथित तौर पर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की विचारधारा के ये अधिकारी बिना किसी हिचकिचाहट के सीधे भारतीय जनता पार्टी और संघ के साथ उनके हित में चुनावी एजेंडे को लागू कर रहे हैं, जिसके चक्‍कर में इनके ऊपर नियुक्तियों में राजनीतिक आरोप गरमा गया है।

लक्ष्‍मण सिंह मरकाम नाम के उक्‍त अधिकारी मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ओएसडी हैं। ये पहले रक्षा मंत्रालय में हुआ करते थे। मरकाम भारतीय नौसेना की आयुध सेवा के वर्ष 2009 बैच के आइईएस अधिकारी हैं और 2021 में वे प्रतिनियुक्ति पर मप्र शासन में उपसचिव के पद पर तैनात हुए। इसके बाद वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ओएसडी बने। उन्हें आदिवासी मामलों की जिम्मेदारी दी गई है।

लक्ष्मण सिंह मरकाम अपनी राजनीतिक विचारधारा खुलकर सामने रखते हैं। उक्त तस्वीर उनकी फेसबुक वॉल से है।

उन पर आरोप है कि उन्होंने पंचायती राज (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्‍तार) यानी पेसा कानून में जिला और ब्लाक समन्वयक की नियुक्तियां नियमों से परे जाकर की हैं। इसके लिए उन्‍होंने संघ में काम कर रहे लोगों को सीधे इन पदों पर भर्ती करवा दिया। इसके बाद से हंगामा मचा हुआ है, लेकिन सरकार ने बेरोजगार आदिवासियों के आरोपों पर फिलहाल कोई कदम नहीं उठाया है।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ आनंद राय की फेसबुक वॉल से

पंचायत राज संचालनालय ने 89 आदिवासी बहुल इलाकों को चिन्हित कर एक वर्ष के लिए जिला और ब्लाक समन्वयकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। इन समन्वयकों को 25 और 30 हजार रुपये प्रतिमाह दिए जाने हैं। इसके बाद मेरिट के आधार पर अभ्यर्थियों का चुनाव हुआ। बीते साल फरवरी में इन अभ्यर्थियों के इंटरव्यू होने थे लेकिन नहीं हुए। इनसे कहा गया कि परीक्षा फिलहाल टाल दी गई है। अभ्यर्थी फोन करते रहे और उन्हें यही जवाब दिया जाता रहा कि परीक्षा कुछ दिनों बाद होगी। हाल ही में अभ्यर्थियों को पता चला कि जिस नौकरी के लिए वे इंटरव्यू का इंतज़ार साल भर से कर रहे हैं वह अब किसी और को मिल चुकी है।

अभ्यर्थी बताते हैं कि यह जानकारी खुद लक्ष्मण सिंह मरकाम के फेसबुक अकाउंट से मिली है। अभ्यर्थियों ने इसकी आगे पड़ताल की तो पता चला कि फिलहाल जिन लोगों की नियुक्ति की गई है उनमें से ज्यादातर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भाजपा या फिर इनसे जुड़े दूसरे संगठनों से सीधा जुड़ाव रखते हैं और यही उनकी योग्यता का कारण है।

मरकाम लगातार मुख्यमंत्री को पेसा एक्ट को लेकर हो रहे कामों की जानकारी देते हैं। बताया जाता है कि आदिवासी इलाकों में संघ की पकड़ को मजबूत करने के लिए आदिवासी नागरिकों के मंच भी उन्‍होंने बनाए हैं। मरकाम के शासन में आने के बाद कई आदिवासी मंच अस्तित्व में आए हैं। बताया जाता है कि स्थानीय प्रशासन पेसा कानून और आदिवासी मामलों के बारे में कोई फैसला उनसे पूछकर ही करते हैं। जिला स्तर पर की गई समन्वयकों की नियुक्तियां भी इसी रास्‍ते हुई हैं।

लक्ष्मण सिंह मरकाम इसलिए इन आरोपों के केंद्र में आ गए क्योंकि नियुक्तियों में अनियमितता पर उठ रहे सवालों का जो जवाब सरकार को देना चाहिए वे खुद मरकाम दे रहे हैं।

 

खरगोन जिले से आने वाले मायाराम अवाया आदिवासी संगठन जयस से जुड़े हुए हैं। वे बताते हैं कि उनका नाम मेरिट में था लेकिन साल भर तक इंतजार करने के बाद भी इंटरव्यू के बारे में उन्‍हें पता नहीं चला। उन्हें भी सोशल मीडिया से ही पता चला कि समन्वयकों की नियुक्ति हो चुकी है।

बालाघाट के कौशिक की भी यही कहानी है। वे बताते हैं कि जब इंटरव्यू था उस दिन कई बार फोन आए कि आना मत। इसके बाद कौशिक ने इंटरव्यू के लिए फोन किए लेकिन कोई जानकारी नहीं दी गई। अब पता चला है कि नियुक्ति तो हो चुकी है।

मायाराम बताते हैं कि यह नियुक्ति नहीं घोटाला है क्योंकि जिन लोगों से परीक्षा शुल्क लिया गया वह तो जमा ही रह गया और परीक्षा की प्रक्रिया पूरी हुई ही नहीं। ऐसे में जो पैसा जमा है वह अब शायद वापस नहीं मिलेगा। इस बारे में वे कई बार पूछने की कोशिश कर चुके हैं। मायाराम बताते हैं कि यह पूरा काम लक्ष्मण सिंह मरकाम के इशारे पर हो रहा था।

इस बारे में राज्य सरकार की ओर से जवाब मिलना था, लेकिन मरकाम ने अपने फेसबुक संदेश में नियुक्तियों पर उठ रहे सवालों को दुष्प्रचार बताया। उन्होंने यहां पंचायत राज संचालनालय के संचालक आलोक कुमार सिंह का एक पत्र साझा किया है। इस पत्र में जो कहा गया है, उसका सार यह था कि 1141 पदों पर एक वर्ष के लिए जो नियुक्तियां की जानी थीं उन्हें निरस्त किया जाता है क्योंकि यह काम सैडमेप करेगी।

यह पत्र 3 जून 2022 को जारी किया गया था जबकि भर्तियों का विज्ञापन जिसे निरस्त किया जाना था, वह 24 जुलाई 2021 को जारी किया गया यानी परीक्षा रद्द करने का निर्णय लेने में भी 11 महीने लग गए।

डॉ. आनंद राय

व्यापम घोटाले को उजागर करने में अहम भूमिका निभाने वाले व्हिसिल ब्लोअर डॉ. आनंद राय भी जयस से जुड़े हैं। वे बताते हैं कि लक्ष्मण मरकाम पर जो आरोप लग रहे हैं वे बिल्कुल सही हैं क्योंकि जिन भी लोगों को नियुक्त किया गया है वे सभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं और यह जानकारी सार्वजनिक है। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है क्योंकि आने वाले चुनावों में जब आचार संहिता लगेगी कि भाजपा और संघ का कैडर इन इलाकों में काम कर रहा होगा।

डॉ. आनंद राय लक्ष्मण सिंह मरकाम के राजनीतिक झुकाव पर भी सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि मरकाम नौसेना से आए हुए अधिकारी हैं और उन्हें उपसचिव अथवा मुख्यमंत्री के ओएसडी के तौर पर अपनी भूमिका निभानी चाहिए थी, लेकिन वे यहां भाजपा और संघ के कार्यकर्ता की भूमिका में हैं। वे कहते है कि मरकाम सीधे आदिवासियों के बीच जाकर उन्हें भाजपा से जुड़ने का ज्ञान दे रहे हैं।

डॉ. राय के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी इसे लेकर सवाल उठाए हैं और इसकी शिकायत भी की है। इसके बाद एक रिमाइंडर भी दिया गया लेकिन फिर भी शासन पर कोई असर नहीं हुआ। इस बारे में देशगांव ने दिग्विजय सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उनकी ओर से अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।

राय पूछते हैं कि एक अधिकारी इस तरह खुले तौर पर कैसे किसी संगठन और पार्टी का प्रचार कर सकता है, जैसे मरकाम कर रहे हैं। राय के मुताबिक मरकाम ने संघ और मुख्यमंत्री कार्यालय की मदद से आदिवासी इलाकों में खासी पकड़ बना ली है और अब वे सभी जिलों में इसी तरह की नियुक्तियां करने वाले हैं।

डॉ. राय के मुताबिक डेटा एंट्री ऑपरेटर की नियुक्तियां भी हो रही हैं और यह नियुक्तियां एमपी कॉन के माध्यम से की गई हैं। यह भी अपने कार्यकर्ताओं को उपकृत करने का संघ और भाजपा का तरीका है।

इन आरोपों पर जब देशगांव ने लक्ष्मण सिंह मरकाम से बात की, तो उन्‍होंने माना कि वे मूलतः एक आइईएस अधिकारी हैं और प्रतिनियुक्ति पर मप्र के मुख्यमंत्री कार्य़ालय में पदस्थ हैं इसलिए एक अधिकारी होने के नाते वे किसी राजनीतिक पार्टी के साथ नहीं हो सकते। इसके बाद पेसा एक्ट की नियुक्तियों के बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने इसे सीधे तौर पर इसे पंचायती राज का मामला बता दिया और उनके अधिकारियों से बात करने के लिए कहा।

मरकाम कहते हैं कि इस पद पर रहते हुए कई तरह के राजनीतिक आरोप लगते ही रहते हैं। ऐसे में वे कुछ नहीं कर सकते।  मरकाम ने संघ या भाजपा से अपने जुड़ाव के सवालों पर कोई जवाब नहीं दिया है।

 

 



Related