सत्ता के लिए छ्त्तीसगढ़ में भड़काई जा रही दंगों और आरक्षण की आग


ईसाईयों में एक बड़ी आबादी धर्मान्तरित आदिवासियों की है इसलिए उनको भड़काने की संभावना हमेशा बनी रहती है


आवेश तिवारी
बड़ी बात Updated On :

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में नए साल पर एक भीड़ ने महज 24 घंटे पहले एक चर्च को हथौड़ों से जमींदोज कर दिया उसके अलावा कई पुलिसकर्मियों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा है। इस घटनाक्रम में नारायणपुर के एसपी पी सदानंद घायल हो गए हैं । इस घटना में पुलिस ने 6 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है इनमें से भाजपा जिलाध्यक्ष व सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक रुपसाय सलाम को पुलिस ने मंगलवार को न्यायालय के सामने पेश किया। उन पर उपद्रव करने, भड़काने, धमकी देने व मारपीट संबंधी प्रकरण दर्ज किए गए हैं। इसके अतिरिक्त अतुल नेताम, पवन नाग, डोमेश यादव, अंकित नंदी इन्हें भी न्यायालय में पेश किया गया।

इस संवेदनशील घटना के बीचोंबीच राजधानी रायपुर में कांग्रेस पार्टी ने आज जनाधिकार रैली बुलाई है। जिसमें भाजपा द्वारा राज्यपाल पर दबाव बनाकर आम छत्तीसगढ़ियों के विधानसभा से पारित आरक्षण के मसौदे को रोके जाने के खिलाफ भारी भीड़ जुटी है।

CM Bhupesh baghel rally on reservation policy
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की रैली

 

भाजपा का गेम प्लानः दरअसल इन दोनों घटनाओं को एक साथ देखे जाने की जरुरत है क्योंकि डेढ़ दशक तक राज्य में भाजपा के हाथ में सत्ता रही है और इस दौरान आदिवासी इलाकों में बंदूकों के दम पर मानवाधिकारों को हनन के अनगिनत मामले सामने आए हैं। ये दोनों ही घटनाएं राज्य की  सत्ता हासिल करने के लिए झटपटा रही भाजपा के मंसूबों को समझने के लिए काफ़ी हैं।

यह सवाल तो उठता ही है कि क्या वजह है कि संघ कार्यकर्ताओं और भाजपा नारायणपुर में गुस्साई भीड़ को बार बार आदिवासियों की भीड़ पुकारा जा रहा है जबकि राज्य में लगातार आदिवासियों की घर वापसी का कुटिल अभियान चलाने वाला संघ और विहिप आदिवासियों को बार-बार हिन्दू कहते आया है?

क्या भाजपा समूचे छत्तीसगढ़ में इस किस्म के बलवों को हवा देकर और आदिवासियों के आरक्षण को उलझाकर आदिवासी समाज के वोट के ध्रुवीकरण और विधानसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने की कोशिश कर रही है?

आदिवासी मतों का मतलबः इतिहास गवाह है कि छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग जिसमें नारायणपुर जिला भी शामिल है कांग्रेस का गढ़ रहा है। आज बस्तर संभाग की 12 में 12 सीटें कांग्रेस के पास हैं भाजपा के शासनकाल में भी यहाँ से कांग्रेस की जमीन टस से मस नहीं हुई थी। सिर्फ इतना ही नहीं 2018 के बाद हुए सभी उपचुनावों में भी कांग्रेस ने ही जीत हासिल की है प्रदेश की जनजातियों के लिए आरक्षित 29 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास 2018 में 25 सीटें आई थी। ऐसे में एक बात तो निश्चित है कि भाजपा को कांग्रेस को हाशिये पर धकेलने के लिए भारी मशक्कत करनी होगी।

भाजपा जानती है कि चूँकि छत्तीसगढ़ में हिन्दू मुस्लिम धार्मिक मत विभाजन की संभावनाएं बेहद कम हैं तो इसलिए हिन्दू इसाई विभाजन की कोशिश की जाए। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में मुस्लिमों और ईसाईयों की आबादी 2-2 फीसदी है चूँकि ईसाईयों में एक बड़ी आबादी धर्मान्तरित आदिवासियों की है इसलिए उनको भड़काने की संभावना हमेशा बनी रहती है।

आरक्षण पर भाजपा का रुखः भाजपा की मंसूबों को समझने के लिए प्रदेश में आरक्षण को लेकर उसके रुख को भी समझना होगा। छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा विगत 2 दिसंबर को राज्य में दलित पिछड़ों आदिवासियों और आर्थिक तौर से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण का प्रस्ताव पारित किया गया था लेकिन लगभग एक महीने बीतने के बावजूद अब तक वह महत्वपूर्ण प्रस्ताव कानून का रूप नहीं ले सका है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि प्रदेश की राज्यपाल महामहिम अनुसुइया उइके ने इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर अब तक हस्ताक्षर नहीं किये हैं।

राजभवन का रोलः राज्यपाल चाहती तो इस प्रस्ताव को विधानसभा को वापस भेज सकती थी मगर वह यह भी नहीं कर रही हैं ऐसे में बहुत संभावना है कि ऐसा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के भारी दबाव में हो रहा है और इसके पीछे एक राजनीतिक भावना भी हो सकती है जो अगर है तो अव्वल तो राजभवन के स्तर पर इसे ठीक नहीं कहा जा सकता और दूसरा यह राज्य के युवाओं के हित में भी नहीं है क्योंकि इसी एक प्रस्ताव की वजह इसकी वजह से प्रदेश में तमाम प्रवेश परीक्षाएं , नौकरियों की प्रक्रियाएं रुकी हुई हैं।

विधानसभा को बड़ी चुनौतीः ग़ज़ब यह है कि जब बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले के अधीन प्रदेश में आदिवासियों का आरक्षण 32 से घटाकर 12 फीसदी कर दिया गया था तब प्रदेश भाजपा के नेताओं ने जमकर बयानबाजी की थी, पदयात्राएं की थी और विरोध के तमाम अस्त्र शस्त्र इस्तेमाल कर रहे थे। लेकिन भानुप्रतापपुर विधानसभा चुनाव का परिणाम आते ही भाजपा के सुर बदल गए। वहीं प्रदेश की राज्यपाल अनुसूइया उइके जिन्होंने आदिवासी आरक्षण को लेकर विधानसभा से प्रस्ताव पारित करने की सलाह दी थी साथ ही तत्काल उस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने का आश्वासन भी दिया था अब कह रही हैं कि वे विधिक सलाहकारों से सलाह लेने के बाद में ही कुछ कर करेंगी। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह रहे हैं कि लोकतंत्र में विधायिका की शक्तियां सर्वोच्च होती हैं कोई विधेयक अगर विधानसभा के सभी सदस्यों की सहमति से पारित हो चुका है तो उस पर किसी सलाहकार की राय कोई मायने नहीं रखती।

अराजकता से किसका फायदाः भाजपा समय समय पर संविधान और आरक्षण की समीक्षा की बात कहती रही है और इस समय भाजपा से क्या उम्मीद की जानी चाहिए? दरअसल भाजपा इस बात को जानती है कि अगर आम छत्तीसगढ़ियों को आरक्षण नहीं मिला तो राज्य में अराजकता की स्थिति पैदा होगी। यह अराजकता की स्थिति तब भी पैदा होगी जब कथित धर्मांतरण को लेकर जनता को उद्वेलित किया जाएगा। ऐसी दोनों स्थितियों में ही भाजपा को बड़ा राजनीतिक लाभ मिलेगा और

निस्संदेह दोनों ही स्थितियों में कांग्रेस पार्टी के राजनैतिक नुकसान की संभावना है कांग्रेस ने आदिवासी आरक्षण को लेकर न्यायालय का रुख किया है वहीँ धर्मान्तरण के मसले पर कांग्रेस की हमेशा से स्पष्ट राय रही है कि आदिवासी सिर्फ आदिवासी हैं उनका किसी भी तरीके से जबरिया धर्मांतरण नहीं किया जाना चाहिए।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के विनयशील कहते हैं कि आदिवासी समाज के ऊपर कोई पहचान अलग से नहीं लादी जा सकती छत्तीसगढ़ की चुनावी भट्टी में भाजपा बहुत कुछ जलाना चाहती है देखना है कि कांग्रेस इस भट्टी को धधकने से रोक पाने में किस हद तक सफल होती है।

भाजपा का इन दंगों पर कैसा रुख है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि कवर्धा जिले में विगत वर्ष दंगा भड़काने के मामले में आरोपी और भगोड़ा घोषित किये गए राजनांदगांव सांसद संतोष पांडे के अलावा पांच अन्य भाजपाई नारायणपुर में हिन्दू चरमपंथियों के द्वारा चर्च और पुलिस पर हमले के मामले की जांच करेंगे।

गौरतलब है कि कवर्धा के मामले में आरोपी सांसद के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा पंजीकृत किया गया था। छ्त्तीसगढ़ भाजपा ने यह पैनल घोषित किया है। यह कैसे संभव है कि दंगाई, दंगों की जांच करें वह भी तब जब दंगा भड़काने में भाजपा जिलाध्यक्ष का नाम आ रहा हो?



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