नर्मदा नदी के पानी में बह रहा मल-मूत्र, सीधे पीने पर कैंसर और लीवर की बीमारी होने का खतरा


नर्मदा का पानी नहीं रहा साफ, दो इलाकों में किया गया है पानी का परीक्षण


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बड़ी बात Updated On :

मध्यप्रदेश के एक बड़े स्थान पर जो लोग भी सीधे नर्मदा का पानी पीते हैं तो सावधान होने की जरूरत है। मध्यप्रदेश की यह एकलौती बारहमासी बहने वाली नदी वैसी सास नहीं रही जैसा इसके बारे में कभी कहा जाता था।

हाल ही में नर्मदा के पानी के परीक्षण में जो बात सामने आई है वह परेशान करने वाली है। जांच रिपोर्ट कहती है कि बीते साल की तुलना में नर्मदा का पानी और भी बिगड़ चुका है या कहें इसकी स्वच्छता का स्तर अब गिर रहा है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के द्वारा नदी में सरदार सरोवर जलाशय के पानी का परीक्षण बीते साल किया गया था जहां रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि यह पानी पीने के काबिल बिल्कुल भी नहीं है।

अब एक बार फिर बड़वानी जिले के राजघाट और धार जिले के कुक्षी में आने वाले बोधवाड़ा से नदी के पानी के सैंपल लिए गए और जब इनकी जांच की गई तो पता चला कि इस पानी को पीने से कैंसर और पेट तथा लीवर की कई बीमारियां हो सकती हैं। इस पानी की जांच एक निजी प्रयोगशाला में कराई गई है।

इन दोनों स्थानों पर पानी में नाइट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम तक पाई गई। अमूमन माना जाता है कि 10 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्रेट की एक आदर्श मात्रा होती है लेकिन परीक्षण में जो चार गुना अधिक मात्रा की जानकारी सामने आई है वह परेशान करने वाली है। इतनी अधिक मात्रा में नाइट्रेट मिलना पानी में मनुष्य और पशुओं के मल मूत्र बहने के कारण बताया जा रहा है।

हालांकि इस तथ्य में कोई अचरज नहीं क्योंकि जबलपुर होशंगाबाद जैसे तमाम बड़े शहर और नर्मदा किनारे बसे बहुत से छोटे गांवों और कस्बों का गंदा पानी नदी में इसी तरह बिना किसी ट्रीटमेंट के फेंका जाता है। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर से भी वेस्ट वाटर नर्मदा में मिलता है।

पानी में मिल रही गंदगी नदी की इकोलॉजी को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। नदी में विभिन्न तरह के पेथोजेंस यानी जीव-जंतु होते हैं जिन्हें यह गंदगी लगातार खत्म कर रही है। नदी के पानी में ‘कोलिफार्म बैक्टेरिया’ और ‘इ-कोली बैक्टेरिया’ याने जीवाणु या रोगजीवाणु भी पाए गए हैं।

रिपोर्ट बताती है कि नर्मदा के पानी में आयरन की मात्रा भी बढ़ रही है ऐसे में अगर इस पानी का उपयोग बिना ट्रीटमेंट के किया जाता है तो पीने वाले को त्वचा, लीवर और दिल की बीमारी की संभावना बढ़ सकती है। इस पानी में रेत के बारीक कण भी मिले हैं जो बताते हैं कि इसका उपयोग करने पर डिहाईड्रेशन की परेशानी और फेफड़े की बीमारी संभव है। इसके अलावा पानी की तुरबिदित में भी फर्क पड़ा है।

यह स्थिति तब है कि जब नर्मदा को लेकर तरह तरह के दावे किए जा रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण विभाग के मुताबिक नर्मदा का पानी पूरी तरह पीने लायक है और इसका परीक्षण करने पर यह ए ग्रेड श्रेणी का निकला है यानी पानी पूरी तरह ठीक है। वहीं मप्र के एक बड़े अखबार ने कुछ समय पहले यह खबर प्रकाशित की थी कि पानी सीधे पीने के काबिल है। इस खबर के बाद पर्यावरणविद डॉ. सुभाष पांडे ने अखबार को लीगल नोटिस दिया है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े रेहमत मंसूरी बताते हैं कि यह स्थिति बेहद खराब है और पानी की गुणवत्ता बीते साल के मुकाबले गिर रही है। मंसूरी के मुताबिक रुके हुए गंदे पानी में जलकुंभी जैसी खरपतवार भी बनती है जो स्थिति को और भी विकृत कर रही है।

इस रिपोर्ट को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर कहती हैं कि जबलपुर से बड़वानी तक नदी में बड़े पैमाने पर गंदगी मिलती है। वे बताती हैं कि इसके लिए एक योजना बनाई गई थी कि सारा पानी साफ करके ही नदी में मिलाया जाए लेकिन यह कभी नहीं हुआ। मेधा पाटकर के मुताबिक यह काम एक इजराइली फर्म तहल को दिया गया था। जिसने इसकी एवज में 105 करोड़ रुपए लिए। 2018 से 2020 तक के 24 महीनों में यह काम पूरा होना था लेकिन अब तक पानी शुद्धिकरण के लिए प्लांट का निर्माण पूरा नहीं हो सका है।

मेधा पाटकर कहती हैं कि नर्मदा पर तरह-तरह के महोत्सव, सम्मान और कावड़ यात्राएं, पूजा-पाठ सब कुछ चल रहा है लेकिन नर्मदा की शुद्धिकरण नहीं हो रहा है। वे रेत के अवैध खनन को भी नर्मदा नदी के लिए सबसे बड़ा खतरा मानती हैं। और कहती हैं कि नर्मदा में जिस तरह से अवैध खनन जारी है शायद इस नदी की उम्र बहुत ज्यादा न हो।



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