दिल्ली की तरह मप्र में भी जारी है किसान आंदोलन, 22 दिन से खुले आसमान के नीचे बैठे हैं किसान


दिल्ली की सीमाओं की तरह मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड में भी किसान आंदोलन जारी है। इस आंदोलन को भले ही ख़बरों में ज़्यादा जगह नहीं मिल रही हो लेकिन इसका फैलाव हो रहा है और मुमकिन है कि आने वाले दिनों में किसानों का यह आंदोलन और भी प्रभावी हो जाए


शिवेंद्र शुक्ला शिवेंद्र शुक्ला
उनकी बात Updated On :

दिल्ली की सीमाओं की तरह मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड में भी किसान आंदोलन जारी है। इस आंदोलन को भले ही ख़बरों में ज़्यादा जगह नहीं मिल रही हो लेकिन इसका फैलाव हो रहा है और मुमकिन है कि आने वाले दिनों में किसानों का यह आंदोलन और भी प्रभावी हो जाए। हालांकि इस ओर सरकार और प्रशासन अब तक कोई खास चिंतित नहीं हैं लेकिन  प्रशासन के रवैये से किसान और नागरिक दोनों  ही अचरज और गुस्से में हैं। लोगों के मुताबिक नागरिकों को अपनी नाराज़गी जताने के लिए अब जगह नहीं है और विरोधी विचार का कोई सम्मान भी नहीं है यहां नेता तो नेता अब अधिकारी भी अपनी ज़िम्मेदारी भूल चुके हैं। 

विवादित कृषि कानून को वापस लेने की मांग के साथ छतरपुर में 13 जनवरी से अनिश्चितकालीन धरना 22 वें दिन भी जारी रहा। जिला प्रशासन ने प्रदर्शन कर रहे इन किसानों को अब तक एक टेंट लगाने की इजाज़त तक नहीं दी है ऐसे में ये किसान खुले आसमान के नीचे धरना दे रहे हैं। ऐसे में बहुत से किसान बीमार हो चुके हैं। प्रशासन का आंदोलन को दबाने का यह तरीका देखकर प्रदर्शनरत किसानों के सर्मथन में और भी लोग आगे आ रहे हैं।

शीतलहर में किसानों को खुले आसमान के नीचे बैठने व सोने को मजबूर होना पड़ रहा है। जिसके कारण हर रोज कई किसान बीमार पड़ रहे हैं। प्रशासन के इस व्यवहार से लोग दुखी हैं और अब इसकी चर्चा हर गांव में होने लगी है।

बुधवार को भैरा, गुड़पारा, चड़ावन पुरवा, रामपुर, थरा, कोटा, साहसनगर सहित एक दर्जन गांव के दो सैकड़ा से ज्यादा किसान धरना स्थल पर पहुंचे। किसानों ने तीन काले कानूनों के प्रति अपना विरोध दर्शाते हुए धरना को समर्थन दिया और नारेबाज़ी की। किसान जिला प्रशासन होश में आओ, लोकतंत्र की हत्या नहीं सहेंगे और किसानों पर अत्याचार करना बंद करो आदि नारों के साथ आदि जिला प्रशासन के विरोध में जोरदार नारों के साथ अपना आक्रोश जताया।

किसान आंदोलन के नेतृत्वकर्ता अमित भटनागर का कहना है कि प्रशासन द्वारा धरना स्थल पर न तो कोई सुरक्षा व्यवस्था की गई है, किसान बीमार पड़ रहे हैं तो कोई भी डॉक्टर यहां पर नहीं आ रहा है। अमित ने प्रशासन को चेताया कि किसानों के शांतिप्रिय प्रदर्शन को उनकी कमजोरी ना समझें। उन्होंने कहा कि अगर प्रशासन अपनी तानाशाही से बाज़ नहीं आया तो प्रशासन को किसानों के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा।

इस आंदोलन को लेकर न तो सरकार की ओर से कोई बयान आया है और न ही राष्ट्रीय स्तर पर सर्मथन दे रही कांग्रेस ने प्रदेश स्तर पर इस आंदोलन के लिए कुछ खास किया है।

धरने में मुख्य रूप से भगतराम तिवारी, कवि माणिकलाल, राजेन्द्र गुप्ता, देवीदीन खैरवार, सोना आदिवासी, बालादीन पटेल, हिसाबी राजपूत, राकेश तिवारी नरेंद्र कुमार सेन, बालादीन कुशवाहा, हल्काई पटेल, मुलायम सिंह, परमलाल कुशवाहा, कैलाश विश्कर्मा, जुगलकिशोर विश्कर्मा, मनीराम यादव, बबलू कुशवाहा, कृपाल यादव, देशराज, पप्पू कुशवाहा, चन्नु प्रजापति, मोहनलाल, श्यामलाल कुशवाहा, भगतराम तिवारी, देवीदीन कुशवाहा, अवधकिशोर दुवे, दरवारी कुशवाहा, किशोरी कुशवाहा, रामदयाल यादव, बंशगोपाल कुशवाहा सहित बड़ी संख्या में किसान शामिल रहे।



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