चिनकी बैराज के खिलाफ धरने का दूसरा दिन, जमीन के बदले जमीन और घर के बदले घर की मांग


धरने में प्रभावित गांव के लोगों की मांग रही कि प्रशासन हर प्रभावित गांवों में बैराज को लेकर सही जानकारी उपलब्ध कराएं और पर्याप्त मुआवजा दे।


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

नरसिंहपुर। चिनकी बैराज के संबंध में रानी अवंती बाई सागर परियोजना के अधिकारियों के द्वारा प्रभावित गांव के लोगों को वस्तुस्थिति और सही जानकारी नहीं दिए जाने के विरोध में घूरपुर धर्मशाला में प्रभावित ग्रामीणों का धरना दूसरे दिन जारी रहा। जिसमें ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि जमीन के बदले जमीन दी जाए और घर के बदले घर घर दिया जाए।

धरने के दूसरे दिन घूरपुर, पिपरहा, गुरसी, रमपुरा ,गोकला चिनकी आदि गांव के लोग जुड़े। ग्रामीणों ने बांध , बैराज को लेकर पिछले 3 महीनों में अब तक नरसिंह भवन के चक्कर काटे जाने समेत सांसद विधायकों के बीच बात रखी जाने की अनेक किस्से सुनाए। धरने में प्रभावित गांव के लोगों की मांग रही कि प्रशासन हर प्रभावित गांवों में बैराज को लेकर सही जानकारी उपलब्ध कराएं और पर्याप्त मुआवजा दे या फिर प्रभावित जमीन के बदले जमीन दें और घर के बदले घर दें।

गांव गोकला निवासी संदीप सिंह ने भी यही कहा उन्होंने कहा कि जमीन के बदले जमीन दी जाए, घर के बदले घर मिले संदीप की शिकायत रही कि प्रशासन अब तक लोगों को जानकारी नहीं दे सका है , जबकि उसने बांध का काम तेजी से शुरू करवा दिया गया।
घूरपुर के देवेंद्र लोधी का कहना है कि नर्मदा कछार की बेहद उपजाऊ जमीन डूब से प्रभावित हो रही है जो मुआवजा दिया जाएगा वह काफी कम होगा इसलिए प्रशासन से उनकी मांग जमीन के बदले जमीन की है।

इस मौके पर संतोष धानक, शोभाराम धानक, गुरसी के सुरेंद्र ठाकुर, नन्हा लोधी ,राजेंद्र सिंह लोधी, मातवर सिंह लोधी, रूप राम विश्वकर्मा, लेखराम विश्वकर्मा, राजू सिंह पटेल, राधेश्याम ठाकुर, प्रभु शंकर, कृष्ण गोपाल पटेल, सीताराम पटेल आदि ने धरना देते हुए कहा कि प्रशासन इस मामले में संवेदनशीलता बरते।

किसानों ने कहा कि नर्मदा कछार की उपजाऊ जमीन को डूब से बचाएं या फिर इसी तरह की उपजाऊ जमीन बदले किसानों को दूसरी जगह जमीन उपलब्ध कराएं ताकि उनकी खेती बाड़ी बरकरार रहे और वह जीवन यापन कर सकें। धरना के दौरान लोगों ने अपने कई किस्से सुनाए कि किस तरह बाढ़ के पानी में गांव की गांव प्रभावित होते हैं। लोगों की मुश्किलें बढ़ती हैं।



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