किसान आंदोलनः PM के मन की बात का किसान थाली बजाकर करें विरोध- किसान संघर्ष समिति


किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम ने सरकार पर किसानों द्वारा तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को अनसुना करने का आरोप लगाया है।


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“किसानों की मांग को अनसुना कर रही सरकार, आंदोलन को तेज करना एकमात्र विकल्प”
नई दिल्ली। किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम ने सरकार पर किसानों द्वारा तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को अनसुना करने का आरोप लगाया है।

इसके साथ ही कहा है कि आंदोलन तेज करना एकमात्र विकल्प है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम का थाली बजाकर किसान विरोध करें।

डॉ. सुनीलम ने भारत सरकार के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल की ओर से 40 किसान संगठनों को गुरुवार को भेजे गए पत्र पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारत सरकार ने देश के 500 किसान संगठनों द्वारा किसान विरोधी तीन कानूनों को रद्द किए जाने की मांग पर न तो पत्र में कोई स्पष्टीकरण दिया है और न ही कोई टिप्पणी की है।

इससे पता चलता है कि सरकार अपने पुराने स्थान पर ही खड़ी है तथा किसान आंदोलन के 28 दिन होने के बावजूद भी भारत सरकार किसानों की मांग को अनसुना कर रही है।

विवेक अग्रवाल द्वारा लिखा गया है कि भारत सरकार पुनः अपनी प्रतिबद्धता दोहराना चाहती है कि वह आंदोलनकारी किसान संगठनों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों का तर्कपूर्ण समाधान करने को तत्पर है, लेकिन पूरे पत्र में समाधान के तौर पर पुरानी बातों को ही दोहराया गया है।

किसान संघर्ष समिति 500 किसान संगठनों की तरह यह मानती है कि सरकार द्वारा कुछ पिछलग्गू और कागजी किसान संगठनों के साथ बातचीत करके यह बताने की कोशिश कर रही है कि किसान संगठनों में फूट है।

जबकि सच यह है कि जिन 500 किसान संगठनों ने मिलकर कानूनों को रद्द कराने के लिए आंदोलन शुरू किया है, उनमें से 28 दिन में एक भी संगठन ने अलग से भारत सरकार से न तो कोई बातचीत की है, न ही कानून रद्द कराने के अलावा किसी अन्य मुद्दों को सामने लाया है।

लेकिन, पत्र में भारत सरकार ने फर्जी संगठनों के साथ हो रही बातचीत को जायज ठहराते हुए लिखा है कि भारत सरकार के लिए देश के समस्त किसान संगठनों के साथ वार्ता का रास्ता खुला रखना आवश्यक है।

इसका मतलब यह है कि भारत सरकार भविष्य में भी नए-नए पालतू संगठनों के साथ बातचीत जारी रखने का मन बनाए रखे हुए हैं।

आश्चर्यजनक तौर पर भारत सरकार ने पहली बार यह कहा है कि कृषि संबंधित तीनों कानूनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी से कोई संबंध नहीं है।

इससे भी आगे बढ़कर सरकार ने कहा है कि नए कानूनों से परे कोई नई मांग रखना उसका वार्ता में सम्मिलित किया जाना तर्कसंगत प्रतीत नहीं लगता है।

अर्थात केंद्र सरकार स्पष्ट तौर पर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा तैयार किए गए बिल जिसे तत्कालीन सांसद राजू शेट्टी जी द्वारा लोकसभा में और रागेश जी द्वारा राज्यसभा मे पेश किया गया था।

इसमें सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की कानूनी गारंटी सुनिश्चित करने का प्रावधान था, को भारत सरकार स्पष्ट तौर पर रिजेक्ट कर रही है।

इसका मतलब यह है कि सभी कृषि उत्पादों की खरीद को लेकर सरकार ने लिखित तौर पर कोई भी कदम उठाने से इनकार कर दिया है।

एक तरफ सरकार सभी मुद्दों पर वार्ता के लिए तैयार होने की बात कह कर रही है, दूसरी तरफ बातचीत के दौरान सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद के मुद्दे पर बातचीत के लिए भी तैयार नहीं है।

पत्र में यह भी लिखा गया है कि सरकार साफ नीयत और खुले मन से आंदोलन समाप्त करने एवं मुद्दों पर वार्ता करती रही है और करने को तैयार है। इसका मतलब यह है कि सरकार की नीयत और मन आंदोलन को समाप्त कराने को लेकर खुला है, कानूनों को रद्द करने को लेकर नहीं।

ऐसी स्थिति में किसानों के सामने आंदोलन को तेज करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बच रहा है। किसान संघर्ष समिति ने देश के किसान संगठनों से अपील की है कि वे 27 दिसंबर को 11 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम का थाली बजाकर देश के कोने-कोने में विरोध करें तथा 500 किसान संगठनों के द्वारा दिए जाने वाले भावी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर शिरकत करें।



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