सरकार पर किसानों की जीत से सरकारी कर्मचारी भी ख़ुश, माला पहनाकर करेंगे स्वागत


मंडी समितियों में अब सरकारी कर्मचारी करेंगे किसानों का स्वागत, भाजपा की अपने वोट बचाने की जुगत


अरूण सोलंकी अरूण सोलंकी
उनकी बात Updated On :
कृषि उपज मंडी महू (इंदौर) में आ रहे किसानों को मिठाई खिलाते स्थानीय कांग्रेस नेता निशान सिंह


इंदौर। कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान से आंदोलनरत किसानों के साथ हज़ारों सरकारी कर्मचारी भी खुश हैं। सबसे ज्यादा खुशी मंडी समितियों में है। जहां के कर्मचारियों को अब उम्मीद है कि उनकी नौकरी बच जाएगी। ये कर्मचारी अब किसानों का आभार जता रहे हैं।  ज़ाहिर है सरकार से नाराज इन कर्मचारियों को फिलहाल भाजपा मनाने का प्रयास कर रही है। ऐसे में पार्टी से दूर हो सकने वाले वोट अब शायद कहीं न जाएं।

मप्र में इन कानूनों का विरोध कर रहे मंडी बोर्ड के संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने तय किया है कि छुट्टियों के बाद सोमवार को वे मंडी में आने वाले किसानों का स्वागत तिलक और फूल-माला पहनाकर करेंगे। हालांकि समिति की सभी मांगे अब तक पूरी नहीं हुईं हैं और वे प्रदेश सरकार से अपील कर रहे हैं कि जल्दी ही उनकी मांगे भी पूरी की जाएं।

संघर्ष मोर्चा द्वारा जारी किया गया प्रेस नोट

तीनों कृषि कानूनों में मौजूद प्रावधानों के द्वारा मंडी समितियों से सभी महत्वपूर्ण अधिकार छीन लिए गए थे और इसकी वजह से मंडी समितियों का कारोबार खत्म हो रहा था। शुरुआत में मंडियां खत्म करने की बात भी कही गई थी लेकिन बाद में सरकार ने स्पष्ट किया और कहा कि मंडियां बंद नहीं की जाएंगी।

ऐसे में कानून रद्द होने की घोषणा के बाद मंडी समितियों के कर्मचारी खुश हैं। इंदौर की महू तहसील में कृषि मंडी में कुछ किसान और कांग्रेस नेता मंडी कर्मचारियों और दूसरे किसानों को मिठाई खिलाकर बधाई देते नजर आए। यहां शुक्रवार को प्रकाश पर्व की छुट्टी के बाद भी कुछ लोग मौजूद रहे और किसान आंदोलन की जीत की चर्चाएं गर्म रहीं।

उल्लेखनीय है कि कृषि कानूनों के लागू होने के बाद मंडियों की हालत ख़राब थी और यहां कर्मचारियों के वेतन के भी लाले पड़ रहे थे। प्रदेश की कई मंडियों में कई महीनों तक वेतन नहीं मिलने की ख़बरें भी आईं। यहां के अधिकारियों ने बताया कि वेतन मंडी समिति की आय से ही बनता है और कानून लागू होने के बाद मंडी समितियों की आय लगभग बंद हो चुकी थी।

 

मप्र मंडी बोर्ड की सालाना आय करीब बारह सौ करोड़ रुपये तक होती है। यह आय जिलों में बनी छोटी-बड़ी मंडियों में आने वाले राजस्व से होती है। मंडी समितियां इस राजस्व का एक बड़ा हिस्सा बोर्ड को भेजती हैं।

राज्य सरकार के लिए मंडी बोर्ड की आय इतनी जरूरी होती है कि प्रदेश में कई विकास कार्य इसी राशि से करवाए जाते हैं लेकिन कानून लागू होने के बाद समितियां खुद अपना खर्च नहीं चला पा रहीं थीं।

कृषि कानूनों के लागू होने से दस हजार से अधिक वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों पर रोजी-रोटी का संकट बन आया था। मंडी समितियों में कुल साढ़े छह हजार कर्मचारी हैं। वहीं करीब एक हजार अस्थायी कर्मचारियों का वेतन और ढ़ाई हजार पेंशनर्स की पेंशन भी समितियों की आय पर ही निर्भर है। इन सभी पर सालाना करीब 450 करोड़ रुपये खर्च होते हैं।

इस तरह मप्र में ही करीब दस हजार लोग मंडी समितियों के अच्छे कारोबार पर ही निर्भर हैं और पांरपरिक रुप से मंडी का अच्छा कारोबार अच्छी खेती और आवक पर है। ऐसे में प्रदेश में रोजगार और विकास दोनों ही मंडियों के अच्छे काम पर निर्भर हैं।

 



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