संविदा शोषण! सीएम शिवराज अपनी घोषणा भूले तो अधिकारियों ने भी नहीं दिया ध्यान, नाउम्मीद हो रहे कर्मचारी


इंदौर के शिक्षा अधिकारी ने छह कर्मचारियों को नौकरी से निकालने से पहले दिया शोकॉज़ नोटिस, सीएम शिवराज के निर्देश को भी नहीं मानते कर्मचारी


Aman Gupta
उनकी बात Updated On :

भोपाल। प्रदेश सरकार एक साल की अवधि में एक लाख से अधिक नौकरियां देने वाली है। जो एक लाख नौकरियां मिलने वालीं हैं उनमें सभी विभागों के पद हैं और इनमें से कई संविदा के तहत दी जाने वाली हैं। संविदा की नौकरी पर तैनात कर्मचारी किस हद तक असुरक्षा का शिकार होते हैं इसका एक ताज़ा उदाहरण इंदौर में देखने को मिल रहा है। यहां जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय से एक साथ 5 कर्मचारियों की संविदा के तहत मिली नौकरी खतरे में डाल दी गई है। उन्हें अधूरे काम पर एक कारण बताओ नोटिस दिया गया है जबकि काम 90 प्रश से अधिक पूरा हो चुका है। यह एक साधारण नोटिस है लेकिन संविदा की इस व्यवस्था से परेशान कर्मचारियों के बारे में बताने के लिए काफी है।

इंदौर के जिला परियोजना समन्वयक अक्षय सिंह राठौर ने जिले के अलग-अलग विकासखंडों में काम करने वाले छह कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस दिया है। ये सभी वर्षों से संविदा पर तैनात हैं। इन कर्मचारियों को तय अवधि तक लक्ष्य के मुताबिक पूरा काम न करने के कारण यह नोटिस दिया गया है। इन्हें यू डाइस एंट्री यानी स्कूलों के शिक्षकों और बच्चों तथा अन्य जानकारियां के डेटा संबंधित काम दिया गया है। हालांकि इन कर्मचारियों का काम 89 प्रतिशत से 99 प्रतिशत तक पूरा है वहीं विद्यार्थियों की डेटा एंट्री के मामले में कर्मचारियों का प्रदर्शन कमज़ोर है।  यही वजह है कि इन कर्मियों को हटाने की धमकी दी जा रही है।  इस बारे में संबंधित अधिकारी अक्षय सिंह राठौर से बात करने की कई बार कोशिश की गई लेकिन छुट्टी के दिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।

अधिकारी के द्वारा इन कर्मचारियों को दिए गए नोटिस में कहा गया है कि क्यों न आपका अप्रैल माह का वेतन  रोककर संविदा नियुक्ति समाप्त करने की कार्यवाही की जाए। जिला परियोजना समन्वयक राठौर ने शासन द्वारा संविदा के नियमों के अनुसार इन कर्मचारियों को हटाने का नोटिस दिया है। प्रदेश में संविदा पर वर्षों से काम करने वाले एक कर्मचारी के मुताबिक इस तरह के नोटिस संविदा कर्मचारियों को अक्सर मिलते रहते हैं और कर्मचारी भी इनसे खास नहीं डरते लेकिन यह नोटिस संविदा के तहत लगाए गए कर्मचारियों को उनकी स्थिति जरुर बता देते हैं। साल 2018 की संविदा नीति के तहत इन कर्मचारियों को न हटाने की घोषणा और नियमित कर्मचारियों के 90 प्रतिशत वेतन देने की घोषणा की गई थी लेकिन प्रदेश के राज्य शिक्षा केंद्र ने  मुख्यमंत्री का ही आदेश अनसुना कर रखा है।

 

संविदा शोषण

दरअसल प्रदेश के संविदा कर्मी जिला इकाई के तहत नियोजित कर्मचारी होते हैं जिन्हें जिला कलेक्टर उनके विभाग के अधिकारी की अनुशंसा पर कभी भी बर्ख़ास्त कर सकता है। इंदौर में शिक्षा विभाग के द्वारा जिन एमआईएस कोआर्डिनेटरों को यह नोटिस दिया है उनमें से कुछ यहां करीब दस वर्षों से भी अधिक से काम कर रहे हैं। इस दौरान इन्हें 22 से 25 हजार रुपये तक ही वेतन दिया जाता है। संविदा कर्मचारी इसे संविदा शोषण कहते हैं।

शिक्षा विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन कर्मचारियों के बिना विभाग पूरी तरह अपाहिज है क्योंकि ये कर्मचारी ही जिलेवार स्कूलों, शिक्षकों और बच्चों की संख्या का डेटा लेकर उसे ऑनलाइन करते हैं जिसके बाद प्रदेश की सूरत तय होती है। अधिकारी कहते हैं कि उन्होंने देखा है कि ज्यादातर बार संविदा कर्मचारी नियमित कर्मचारियों के बराबर या उससे ज्यादा काम तक करते हैं लेकिन फिर भी वे लगातार एक भय में जीते हैं कि उन्हें नौकरी से कभी भी हटाया जा सकता है और इस निर्णय के खिलाफ वे कोई अपील भी नहीं कर सकते। इसे लेकर संविदा कर्मचारियों के संगठन कई बार आंदोलन कर चुके हैं। साल भर कई बार इस तरह के आंदोलन होते रहते हैं और कई बार मुख्यमंत्री से संविदा नेताओं की मुलाकात हो जाती है लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ता।

साल 2022 में शिक्षा विभाग के संविदा कर्मचारियों ने भोपाल में प्रदर्शन किया था।

कर्मचारी संगठन ने की निंदा

प्रदेश में संविदा कर्मचारियों के एक नेता रमेश राठौर कहते हैं कि किसी भी कर्मचारी को इस तरह से हटाना नियम के खिलाफ है। उनके मुताबिक संविदा कर्मचारियों की गलती नहीं होती अक्सर उनके अधिकारी अपनी गलती छिपाने और कार्रवाई से बचने के लिए संविदा कर्मचारी को नोटिस देकर अधिकारी को बता देते हैं। राठौर के मुताबिक यह ठीक नहीं है।

घोषणा करने वाले मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनकी घोषणाओं के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि उनकी कई घोषणाएं दसियों साल से पूरी नहीं हुईं। फिलहाल मुख्यमंत्री इन दिनों लगातार एक लाख भर्ती के बारे में बात कर रहे हैं। वे इस तरह की घोषणा साल 2018 से कई बार कर चुके हैं। उसी दौरान मुख्यमंत्री ने संविदा सेवा को अन्यायपूर्ण बताकर इसे खत्म करने का संकल्प लिया था लेकिन अब वे इस बारे में चर्चा नहीं करना चाहते।

शिक्षा विभाग में एमआईएस के अलावा लेखापाल, डेटा एंट्री ऑपरेटर, एमआरसी, हॉस्टल वार्डन जैसे तमाम कर्मचारी संविदा सेवाओं पर हैं। जो दर्जनों बार अपनी मांगें मुख्यमंत्री के सामने रख चुके हैं। इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने इन मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया है। दूसरी ओर वे शिक्षा विभाग के ही दूसरे कर्मचारियों यानी शिक्षकों पर मेहरबान दिखाई देते हैं। व्यापम जैसी व्यवस्था से जूझते हुए जो युवा शिक्षक बन गए उन्हें शासन इन दिनों कई सहूलियत दे रहा है। इसी कड़ी में पिछले दिनों उनका परिवीक्षा अवधि यानी प्रोबेशन पीरियड भी तीन से दो साल का कर दिया गया। इसके तहत उन्हें ज्वाइन करने के बाद ही सौ प्रतिशत वेतन मिलेगा।

खत्म होती उम्मीदें 

वहीं इसी विभाग में हज़ारों कर्मचारी ऐसे भी हैं जो संविदा के तहत इस उम्मीद में नौकरी में शामिल हुए कि उन्हें तीन या चार साल बाद पर्मानेंट कर दिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ये कर्मचारी कई वर्षों से अपने नियमितिकरण की उम्मीद में बैठे हैं। इनसे नियमित कर्मचारियों की तरह ही काम लिया जाता है लेकिन दोनों के बीच वेतन में एक बड़ा अंतर होता है। सरकार ने संविदा कर्मचारियों को खुश करने जैसी कभी कोई घोषणा नहीं करती।

 प्रतिनिधित्व से नाराज़गी

संविदा कर्मचारियों के संगठन भी अपने अधिकारों को लेकर गंभीर नज़र आते हैं लेकिन प्रदेश के संविदाकर्मी कहते हैं कि उनके ज्यादातर नेता नेता और अधिकारियों के सामने केवल अपनी पैठ बनाने के लिए ये करते हैं। इसकी वजह बताते हुए विदिशा के एक कर्मचारी बताते हैं कि संगठन के लोग अक्सर मुख्यमंत्री से मिलते हैं और उन्हें अपनी बात कहते हैं लेकिन इसका कोई असर कभी नहीं होता। वे कहते हैं कि संविदा नियमितिकरण छोड़िए शिक्षा विभाग के अधिकारी मुख्यमंत्री की 90 प्रतिशत देने जैसी योजनाओं को भी पूरा नहीं करते और हमारे संगठन अपनी यह मांग रखने में भी नाकाम रहते हैं।

 

 

 



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