तीन लाख से ज़्यादा पद खाली, ग्रेजुएशन के बाद भी नहीं मिलती नौकरी, डराने वाली है बेरोज़गारी की ये तस्वीर


सरकारी वादों और आकड़ों के बीच झूल रहे हैं प्रदेश के बेरोज़गार, कई बार घोषणाएं हुईं लेकिन नौकरी नहीं मिली ऐसे में अब सत्याग्रह ही सहारा


DeshGaon
उनकी बात Updated On :

इंदौर। मध्यप्रदेश के बेरोज़गार अब नौकरी हांसिल करने के लिए गांधी का रास्ता अपना रहे हैं यानी वे अब सत्याग्रह कर रहे हैं। चुनावी साल से ठीक पहले यह सत्याग्रह सरकार को परेशान करने के लिए काफी है। यही वजह है कि इंदौर में सत्याग्रह शुरु होने के कुछ ही घंटों में ही सरकार के एक मंत्री ने अपने विभाग की ओर से 18 हजार नौकरियों की घोषणा कर दी।

शायद ये पहली बार है कि प्रदेश सरकार ने इतनी जल्दी बेरोजगारों को शांत करने की कोशिश की है वर्ना इससे पहले भोपाल में नौकरी का इंतज़ार कर रहे शिक्षकों के तमाम प्रदर्शन हुए लेकिन उनकी ख़बर भी अख़बारी सुर्ख़ियों में नहीं आईं। सत्याग्रह करने वाले नौजवान कहते हैं कि अब सरकार को मनाने के लिए उनके पास महात्मा गांधी का ये सत्याग्रह ही एक सहारा है।

सरकार प्रदेश में बेरोज़गारी के बढ़ते आंकड़ों से अच्छी तरह वाकिफ़ है और कहा जाता है कि भाजपा का अंदरूनी सर्वे भी इस समस्या को संकट मान रहा है ऐसे में सरकार बेरोजगारी के इस मसले से किसी भी तरह निजाद पाना चाहती है।

इससे पहले मुख्यमंत्री पहले ही एक लाख भर्तियों की घोषणा कर चुके हैं लेकिन भर्ती की घोषणा और भर्ती ये दोनों अलग-अलग बातें हैं जिनके बीच मध्यप्रदेश के बेरोज़गार पिछले करीब दो दशकों से झूल रहे हैं। इस बीच यह जानना भी जरुरी है कि प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या साल 2021 के 30.23 लाख हो गई है।

इस बीच यह जानकारी भी दिलचस्प है कि  बेरोजगारी से परेशान इस प्रदेश के कुछ ही सरकारी विभागों में करीब तीन लाख पद खाली हैं और आने वाले दिनों में रिटायरमेंट के साथ यह संख्या और भी बढ़ जाएगी।

पिछले दिनों सरकार ने विधानसभा में दिये गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि प्रदेश में बीते दस सालों में 25.81 लाख युवाओं ने रोजगार कार्यलयों में रजिस्ट्रेशन करवाया है।

रजिस्ट्रेशन करवाने वालों में सबसे ज्यादा 8.10 लाख अनारक्षित वर्ग के युवा रहे, इसके बाद 4.35 लाख युवा अनुसूचित जाति वर्ग से और 3.36 लाख युवा अनुसूचित जनजाति वर्ग से थे वहीं सबसे ज्यादा 9.98 लाख युवा अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी से हैं।

सरकार के द्वारा इतनी ही जानकारी प्रदेश में बेरोज़गारी की भयानक हो चुकी स्थिति को बता रही है और इसके बाद की सच्चाई तमाम सरकारी और राजनीतिक दावों को झुठला रही है। विधानसभा में सरकार की ओर से जवाब देते हुए तकनीकी शिक्षा, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने आगे कहा कि इन 25.81 लाख युवाओं में से बीते दस सालों के दौरान केवल 1647 लोगों को ही सरकारी नौकरी मिली है।

इससे ठीक पहले आई सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) की रिपोर्ट प्रदेश की बेरोज़गारी दर पर कुछ और रोशनी डालती है। यह रिपोर्ट बताती है कि पढ़ाई-लिखाई करके नौकरी का सपना देख रहे युवाओं को नौकरी इतनी आसानी से नहीं मिलती।

सीएमआईई की इस रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में ग्रेजुएशन करने के बाद भी नौजवानों को नौकरी नहीं मिल रही है। यहां ग्रेजुएट्स में बेरोजगारी दर 11.53% है।

प्रदेश में पांचवी पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ देने वाले लोगों की बेरोजगारी दर केवल 0.44% है। यह सबसे कम बताई जाती है।

ऐसे में कहना गलत नहीं है कि कम पढ़े लिखे लोगों के लिए मध्यप्रदेश में बेहतर अवसर मिले हैं बजाए उनके जिन्होंने ज्यादा पढ़ाई की। इसका एक मतलब यह भी है कि कम पढ़े लिखे लोगों ने अपने लिए रोजगार के नए साधनों की तलाश की और वे सफल हुए।

प्रदेश सरकार शहरों के विकास पर लगातार ज़ोर दे रही है और सरकार अपनी वाहवाही इसी विकास के नाम पर करती है लेकिन यह भी देखना दिलचस्प है कि जिन शहरों में विकास हो रहा है वहां बेरोज़गारों के आंकड़े भी उतने ही डराने वाले हैं।

कहां कितने बेरोज़गार!

जैसे इंदौर में 1.02 लाख रजिस्टर्ड बेरोज़गार हैं। वहीं भोपाल में 1.31 लाख, रीवा में 1.09 लाख बेरोजगार हैं। इसके बाद मुरैना में भी इंदौर के बराबर ही बेरोजगार युवा हैं। उपर के कुछ शहरों का आंकड़ा ही कुल बेरोजगारी का करीब 18 प्रतिशत बताया जाता है।

प्रदेश में ओबीसी युवा सबसे अधिक बेरोजगार हैं इनकी संख्या करीब 10 लाख है और सामान्य वर्ग के बेरोजगार युवाओं की संख्या 8.11 लाख है। इसके बाद अनुसूचित जाति के 4.35 लाख और अनुसूचित जनजाति के बेरोजगार युवाओं की संख्या 3.36 लाख है। ऐसे में कहा जाना गलत नहीं है कि प्रदेश का तकरीबन हर वर्ग बेरोजगारी से परेशान हैं।

ग्रेजुएट और इंजीनियर कुछ भी करने को तैयार

ग्रेजुएट युवाओं के लिए रोजगार की कम हो रही स्थितियों का अंदाज़ा इन आंकड़ों से ज्यादा कई खबरें देती हैं। खबरें जो बताती है कि कैसे ग्वालियर में चपरासी और चौकीदार की 15 नौकरियों के लिए 11 हजार आवेदन आए। आवेदन करने वालों में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएल और इंजीनियर तथा एमबीए कर चुके लोग भी थे।

निजी क्षेत्र में रोज़गार

वैसे राज्य सरकार लगातार नए रोज़गार देने की बात कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इसे लेकर अक्सर घोषणाए करते रहे हैं। अब निजी क्षेत्रों में नौकरी की बात कही जा रही है। जिसके मुताबिक आने वाले दिनों में सीएम 22 नए औद्योगिक संस्थानों का भूमि पूजन और लोकार्पण करेंगे। दावा किया जा रहा है कि इनसे करीब 42 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा।

हालांकि सरकारी नौकरी की बात करें तो सरकार अपने ही विभागों में रिक्त पदों को भरने में सालों का समय लगा देती है।  सरकार ने राज्य में एक लाख पदों पर भर्ती का ऐलान किया है। इसमें मध्य प्रदेश सरकार को 21 प्रमुख विभागों में 93,681 रिक्त पद हैं जिनकी भर्ती प्रक्रिया अब तक शुरु नहीं हो सकी है।

भर्ती सत्याग्रह कर रहे युवाओं की मानें तो निजी क्षेत्र में मिलने वाला रोजगार भी पर्याप्त नहीं है। इस बात की तस्दीक आंकड़े भी करते हैं। नई दुनिया समाचार पत्र के अनुसार रोजगार कार्यालयों से लिए गए आंकड़े बताते हैं कि 2004 से 2018 तक दो लाख लोगों को ही निजी क्षेत्र में रोजगार मिला है।    

मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि सरकार एक लाख पद भरने जा रही है। ज़ाहिर है ये फैसला आने वाले यह चुनावी साल को देखते हुए किया जा रहा है।

तीन लाख पद खाली और भर्ती एक लाख पर

हालांकि एक जानकारी यह भी है कि प्रदेश सरकार के 55 विभागों में से केवल 40 में ही तीन लाख से ज्यादा पद खाली हैं। इस आंकड़े की कोई औपचारिक जानकारी तो नहीं दी गई है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स और कई अधिकारी इसकी पुष्टी करते हैं। ऐसे में एक लाख भर्ती निकालकर सरकार नौजवानों को मनाने में कामयाब होने की सोच रही है वैसे अगर ये भर्तियां होती हैं तो विभागों पर कुछ हद तक ही बोझ कम कम होगा।

शुरुआती खबरों की मानें तो ये भर्ती प्रक्रिया स्टेट कैडर पर आधारित होगी। इसके लिए भोपाल कलेक्टर, कमिश्नर और विभागीय अधिकारियों को आदेश जारी किया है, जिसमें रिक्त पदों की जानकारी मांगी गई है. इस संबंध में मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस ने रिक्त पदों पर भर्तियों के लिए प्रक्रिया की भी जानकारी मांगी हैं।

सरकार जैसे जैसे नौकरियां देने में देरी कर रही है वैसे-वैसे बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है।  सरकार एक लाख युवाओं को नौकरी दे भी देती है तो भी दो लाख पद शेष  रहेंगे और अगले दो सालों में बड़े पैमाने पर कर्मचारी रिटायर भी होंगे जिनके पद एक बार फिर खाली हो जाएंगे।

प्रदर्शन कर रहे युवाओं ने तमाम भर्ती परीक्षाएं जल्दी करवाने के अलावा एक अन्य जो मांग रखी है वह रिटायरमेंट की उम्र 58 साल करने की है। दरअसल सरकार अक्सर रिटायमेंट की उम्र बढ़ा देती है ऐसे में पद खाली होने से बचे रहे और उन्हें नई नौकरियां भी नहीं निकालनी पड़ीं।

 



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