रक्षाबंधन पर पाकिस्तान की जेल में बंद भाई को याद कर रो पड़ी बहन, 14 साल से नहीं बांध पाई राखी


बालाघाट की संघमित्रा खोब्रागड़े 14 साल से अपने भाई को राखी नहीं बांध पाई हैं। उनका भाई प्रसन्नजीत पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बंद है। बहन सरकार से भाई की रिहाई और राखी भेजने की अपील कर रही है।


नितेश उचबगले
Balaghat Published On :

बालाघाट की रहने वाली संघमित्रा खोब्रागड़े इस बार भी रक्षाबंधन पर अपने भाई को सिर्फ याद कर सकती हैं। उनका भाई प्रसन्नजीत रंगारी पिछले छह साल से पाकिस्तान की लाहौर कोट लखपत सेंट्रल जेल में बंद है। बहन का दिल चाह रहा है कि वह उसे राखी भेजे, लेकिन पाकिस्तान से डाक और कुरियर सेवा बंद होने के कारण यह संभव नहीं है। संघमित्रा ने सरकार से अपील की है कि उनकी राखी जेल तक पहुंचाई जाए, ताकि वह अपने भाई को यह प्यार का धागा भेज सकें।

संघमित्रा कहती हैं—”हर बहन को अपने भाई को राखी बांधने का मौका मिलता है, लेकिन मैं बदनसीब हूं। मैंने यह कसम खाई है कि जब तक अपने भाई को पाकिस्तान की जेल से छुड़ाकर नहीं लाती, तब तक किसी और को राखी नहीं बांधूंगी।” उनकी मां और भांजियां भी प्रसन्नजीत को बहुत याद करती हैं और मिलने का इंतजार कर रही हैं।

 

पढ़ाई में तेज, लेकिन किस्मत ने बदला रास्ता

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के खैरलांजी गांव के प्रसन्नजीत रंगारी पढ़ाई में काफी होशियार थे। पिता लोपचंद रंगारी ने कर्ज लेकर उन्हें जबलपुर के गुरु रामदास खालसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बी. फार्मेसी कराई। 2011 में एमपी स्टेट फार्मेसी काउंसिल में उनका रजिस्ट्रेशन भी हुआ। आगे की पढ़ाई के लिए भेजा गया, लेकिन मानसिक स्थिति बिगड़ने के कारण उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और घर लौट आए।

कुछ समय बाद वह अचानक घर से गायब हो गए। 8 महीने बाद बिहार से लौट आए और बहन के घर रहने लगे। एक साल बाद फिर अपने गांव लौटे और वहां से दोबारा लापता हो गए। इस बार उनका कोई सुराग नहीं मिला और परिवार ने उन्हें मृत मान लिया।

अचानक मिला फोन और लौटी उम्मीद

दिसंबर 2021 में संघमित्रा को अचानक फोन आया। यह कॉल कुलदीप सिंह का था, जो 29 साल पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बिताकर भारत लौटे थे। उन्होंने बताया कि प्रसन्नजीत उसी जेल में बंद है। यह सुनकर बहन को राहत भी मिली और हैरानी भी। तब से वह अपने भाई की रिहाई के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रही हैं।

 

बिना आरोप के जेल में बंद

संघमित्रा के अनुसार, दस्तावेजों से पता चला कि पाकिस्तान पुलिस ने 1 अक्टूबर 2019 को प्रसन्नजीत को बाटापुर से हिरासत में लिया था। जेल में वह “सुनील अदे” के नाम से दर्ज हैं, लेकिन उन्होंने असली नाम और रिश्तेदारों की जानकारी भी दी थी। अब तक उन पर कोई औपचारिक आरोप तय नहीं हुआ है।

 

पिता का इंतजार अधूरा रह गया

भाई के इंतजार में संघमित्रा के पिता का निधन हो गया। मां अभी भी मानती हैं कि उनका बेटा जबलपुर में है और किसी तरह गुजर-बसर कर रहा है।

 

आर्थिक संघर्ष और सरकारी मदद की उम्मीद

भाई को छुड़ाने की जिम्मेदारी अब संघमित्रा पर है। वह मजदूरी करके घर चलाती हैं, पति राजेश खोब्रागड़े भी मजदूरी करते हैं और सास बीड़ी बनाकर परिवार का सहारा देती हैं। सरकारी दफ्तरों के चक्कर में काफी खर्च हो रहा है। संघमित्रा और उनका परिवार भारत सरकार से मदद की गुहार लगा रहा है, ताकि प्रसन्नजीत को जल्द रिहा कराया जा सके।





Exit mobile version