जिला अस्पताल धार: संसाधन मिले लेकिन स्टाफ की कमी से मरीज हो रहे परेशान


धार जिला अस्पताल में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट तीन माह पहले शुरू हुई थी, लेकिन स्टाफ की भारी कमी से मरीजों को पूरी सुविधा नहीं मिल रही। करोड़ों रुपए खर्च कर मशीनें लगाई गईं, पर जिम्मेदारों की लापरवाही से जांच प्रभावित।


आशीष यादव
धार Published On :

धार जिला अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। नए उपकरण और मशीनें स्थापित की जा रही हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों से काफी दूर है। अस्पताल में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट की शुरुआत हुए तीन महीने हो चुके हैं। हालांकि मशीनें और संसाधन तो उपलब्ध हैं, लेकिन स्टाफ की भारी कमी के चलते मरीजों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा।

 

केवल तीन कंपोनेंट बन रहे तैयार

यूनिट से अब तक केवल प्लाज्मा, आरबीसी और प्लेटलेट्स ही तैयार किए जा रहे हैं। जबकि दावा किया गया था कि यहां ब्लड से जुड़ी सभी जांचें और कंपोनेंट अलग-अलग तैयार होंगे। तीन माह में 1526 यूनिट ब्लड से कंपोनेंट बनाए गए हैं, जिससे करीब 3 हजार मरीजों को फायदा तो हुआ है, लेकिन इसका दायरा सीमित ही रहा।

 

स्टाफ की कमी सबसे बड़ी चुनौती

ब्लड बैंक और पैथोलॉजी लैब को सुचारू रूप से चलाने के लिए पर्याप्त स्टाफ होना जरूरी है। लेकिन फिलहाल हालात उल्टे हैं—

ज़रूरत: 3 मेडिकल ऑफिसर | उपलब्ध: 1

ज़रूरत: 10 टेक्नीशियन | उपलब्ध: 2

नर्सिंग स्टाफ, काउंसलर, डोनर मोटिवेशन टीम और सपोर्टिंग स्टाफ अब तक नियुक्त नहीं हुए हैं।

वर्तमान में केवल 12 कर्मचारी ही सेवा दे रहे हैं, जिससे यूनिट पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रही।

एक साथ 65 प्रकार की जांच का दावा

पैथोलॉजिस्ट डॉ. अनिल वर्मा के अनुसार, यूनिट में अब एक ही समय पर 65 तरह की जांच संभव है। किलिया मशीन इंस्टॉल हो चुकी है, जिससे हेपेटाइटिस, वी.डी.आर.एल., एचआईवी जैसी जांचों में सुविधा मिली है। पहले मरीजों को पूरा रक्त चढ़ाया जाता था, लेकिन अब जरूरत के अनुसार अलग-अलग ब्लड कंपोनेंट दिए जा सकते हैं।

 

14 लाख की लागत, 15 मशीनें

इस यूनिट की स्थापना 2023 में लगभग 14 लाख रुपए की लागत से हुई। यहां डीप फ्रीजर, प्लाज्मा सेपरेशन मशीन, रेफ्रिजेरेटेड सेंट्रीफ्यूज और अन्य आधुनिक मशीनें लगाई गई हैं। लेकिन मशीनों के होने के बावजूद स्टाफ की कमी से उनका उपयोग अधूरा है।

 

मरीजों की परेशानी

जिन मरीजों को आधुनिक सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए था, वे अब भी जांच और इलाज के लिए इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं। स्टाफ की कमी और जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकारी अस्पताल की वास्तविक तस्वीर दावों से मेल नहीं खा रही।


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