
एक तरफ सरकार देशभर में स्वच्छ भारत मिशन को लेकर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, तो दूसरी तरफ स्थानीय निकायों की लापरवाही के चलते यह अभियान खुद गंदगी में दबता जा रहा है। धार नगर पालिका इसका ताजा उदाहरण है, जहां लाखों रुपये खर्च कर खरीदे गए कचरा वाहन देखरेख के अभाव में कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं। हालत यह है कि शहर के कई वार्डों में नियमित रूप से कचरा उठाने तक की व्यवस्था नहीं रह गई है।
कबाड़ हो गए वाहन, उखड़ गए कलपुर्जे
धार नगर पालिका द्वारा सफाई के लिए खरीदे गए दर्जनों वाहन आज कबाड़ की हालत में पड़े हुए हैं। इनमें से कई वाहन नगर पालिका परिसर, देवी जी रोड, जेल रोड और पुराने कार्यालय के आसपास ऐसे खड़े हैं जैसे कोई भंगार की दुकान हो। 15 से अधिक वाहन पूरी तरह बेकार हो चुके हैं, जिनमें मैजिक, ट्रॉली, पानी धोने वाले वाहन और विशेष रूप से बनाई गई केन भी शामिल हैं। इन वाहनों में से कई का इंजन, टायर और अन्य जरूरी पार्ट्स गायब हैं। जाहिर है, किसी ने इन्हें चोरी किया या अधिकारियों ने खुद ही उपयोग के नाम पर उन्हें निकाल लिया।
न लाखों का हिसाब, न उपयोग की योजना
एक मैजिक वाहन की कीमत करीब 7 से 8 लाख रुपये होती है। इस हिसाब से अगर 13 वाहन ही कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं तो अनुमानित तौर पर 1 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। यह वाहन कुछ महीनों तक ही उपयोग में लिए गए और फिर किसी कारण खराब हो गए। अफसोस की बात यह है कि नगर पालिका ने इनकी मरम्मत तक कराने की जहमत नहीं उठाई। अगर समय रहते इन पर ध्यान दिया जाता तो आज ये वाहन शहर की सफाई व्यवस्था को मजबूत बना सकते थे।
सफाई व्यवस्था पर असर, कचरे के ढेर
शहर में प्रतिदिन करीब 40 टन कचरा निकलता है। पहले यह कचरा रोजाना घर-घर से उठाया जाता था, लेकिन अब वाहन कम पड़ने लगे हैं। कई वार्डों में 15 दिनों से नियमित कचरा वाहन नहीं पहुंच पा रहे हैं। नागरिकों का कहना है कि वे कचरे के वाहनों का इंतजार करते रहते हैं, और मजबूरी में कचरा सड़क किनारे फेंक देते हैं। इससे हर तरफ गंदगी फैल गई है। कालिका मार्ग, सिंचाई कॉलोनी, कलेक्टर परिसर, सब्जी मंडी जैसे क्षेत्रों में हालत बदतर हो चुकी है।
नेताओं और पार्षदों की भी शिकायतें
नगर पालिका की अध्यक्ष नेहा महेश बोड़ाने ने बयान दिया कि कुछ वाहन सुधार के लिए भेजे गए हैं और बाकी पर कार्य हो रहा है। लेकिन विपक्ष के नेता करीम कुरैशी और वार्ड की पार्षद रंजना अजय राठौड़ का कहना है कि नगर पालिका के अधिकारी फोन करने पर भी लापरवाह हैं। कचरा उठाने का वाहन कभी आता है, कभी हफ्तों नहीं आता।
क्या है समाधान?
विशेषज्ञों का मानना है कि नगर पालिका को अपना स्थायी गैराज बनाना चाहिए, जहां इन वाहनों की समय-समय पर मरम्मत हो सके। पुराने वाहन जो मरम्मत योग्य हैं, उन्हें सुधारा जाए और बाकी को नियमानुसार नीलाम कर नई व्यवस्था बनाई जाए। अगर नगर पालिका थोड़ा सा भी प्रबंधन सुधार ले तो लाखों रुपये की बचत हो सकती है और शहर की सफाई व्यवस्था भी सुधर सकती है।