
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी, 27 सितंबर 1925 को की थी। उद्देश्य था— हिंदू समाज को संगठित करना और राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं की पीढ़ी तैयार करना। 100 वर्ष की इस यात्रा में संघ आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन चुका है। धार नगर, जिसे राजा भोज की नगरी कहा जाता है, इस गौरवशाली यात्रा का साक्षी 1936 से रहा है।
धार में पहली शाखा : 1936 में चिटनिस चौक से शुरुआत
मुंबई (तब बंबई) से आए संघ कार्यकर्ता मधुकर आगरकर ने धार के वसंतराव रायते के साथ मिलकर 1936 में चिटनिस चौक पर पहली शाखा प्रारंभ की। प्रारंभिक स्वयंसेवकों में मनोहर निगम, हरिभाऊ वाकणकर, नारायणराव पुराणिक, अरविंद धारकर, वसंत रायते, अमल कुमार बसु, कुशाभाऊ ठाकरे और शांताराम येवतीकर जैसे नाम शामिल हैं।
इसी समय अमल कुमार बसु और अरविंद धारकर ने पहला संघ शिक्षा वर्ग किया और आगे चलकर वे संघ के विस्तारक बने। स्वतंत्रता आंदोलन की लहरों के बीच युवाओं को राष्ट्रसेवा की दिशा संघ ने ही दिखाई।
1940 का दशक : नगर में 20 शाखाएं
1936 से 1945 के बीच धार नगर में संघ इतना सक्रिय हुआ कि उस समय की लगभग 25 हजार की आबादी वाले शहर में 20 शाखाएं लगने लगीं। मुकाती चौक, धान मंडी, धारेश्वर, नौगांव, नयापुरा और बस स्टैंड के पास के मैदान प्रमुख केंद्र रहे। हर शाखा में 100 से अधिक स्वयंसेवकों की उपस्थिति रहती थी। कार्यकर्ताओं का उत्साह और अनुशासन इतना प्रखर था कि नगर ही नहीं, तोरनोद, तिरला, अमझेरा, कुक्षी, बदनावर और सरदारपुर जैसे ग्रामीण क्षेत्रों तक शाखाओं का विस्तार हो गया।
पूजनीय गुरुजी का धार प्रवास
1944 में प्रथम बार पूजनीय गुरुजी (एम. एस. गोलवलकर) धार आए। दशहरा मैदान पर हुए भव्य आयोजन में हजारों नागरिकों ने उनका बौद्धिक सुना। इसके बाद 1952 और 1964 में भी उनका धार आगमन हुआ। उस दौर में नगर में गणवेशधारी स्वयंसेवकों के संचलन ने अनुशासन और संगठन की झलक दिखा दी थी।
संघर्ष के दौर : प्रतिबंध और आपातकाल
महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर लगे पहले प्रतिबंध के समय धार में भी स्वयंसेवकों की गिरफ्तारियां हुईं। इसके बाद आपातकाल (1975-77) में धार जिले के 50 कार्यकर्ता मीसा में और 250 कार्यकर्ता राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार हुए। धार कार्यालय को 4 जुलाई 1975 को सील कर दिया गया। इसके बावजूद स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह और आर्थिक सहयोग से संघर्ष जारी रखा।
आदिवासी अंचल में संघ की पैठ
31 जनवरी 1985 को संघचालक बालासाहेब देवरस कुक्षी आए। यहां 799 गणवेशधारी स्वयंसेवकों का संचालन हुआ और हजारों आदिवासी बंधु पारंपरिक वेशभूषा, तीर-कमान और वाद्य यंत्रों के साथ शामिल हुए। यह आयोजन आदिवासी समाज में संघ की स्वीकार्यता का प्रतीक बन गया।
100 वर्ष का गौरव
आज संघ केवल शाखा नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण और राष्ट्र निर्माण का सतत अभियान है। विपरीत परिस्थितियों और प्रतिबंधों के बावजूद शाखा और अनुशासन के बल पर संघ ने अपनी पहचान बनाई। इसी का परिणाम है कि 1936 में धार के चिटनिस चौक पर लगी पहली शाखा आज 100 वर्ष की इस ऐतिहासिक यात्रा में “धार की आहुति” के रूप में अमर हो गई।
संघ का यह इतिहास न केवल संगठन की मजबूती का प्रमाण है बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक छोटे से नगर से प्रारंभ हुई शाखा आज वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन की नींव का हिस्सा बन चुकी है।