
जहां सरकारें स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे करती हैं, वहीं धार जिले का भोज अस्पताल जमीनी हकीकत बयां कर रहा है। करोड़ों खर्च करने के बावजूद अस्पताल की हालत ऐसी है कि खुद मरीज नहीं, बल्कि पूरा अस्पताल ही बीमार नजर आता है। भीषण गर्मी में मरीज फर्श पर लेटे इलाज करवा रहे हैं, पंखे बंद हैं, शौचालय गंदगी से भरे पड़े हैं और डॉक्टरों की गैरमौजूदगी आए दिन विवाद को जन्म दे रही है।
बेड नहीं, फर्श ही सहारा
इन दिनों जिले में तापमान 42 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है, लेकिन अस्पताल के पुरुष सर्जिकल वार्ड में बेड नहीं हैं, मरीजों को सीधे फर्श पर लिटाकर इलाज किया जा रहा है। परिजनों ने बताया कि कई वार्डों में पंखे भी बंद पड़े हैं, न ठंडी हवा का कोई इंतजाम, न कोई राहत। गर्मी से बेहाल लोग पानी और छांव को तरसते हैं।
अधिकारियों के लिए दिखावा, बाकी समय अंधेरगर्दी
जब कलेक्टर या अन्य उच्चाधिकारी निरीक्षण करने आते हैं, तभी थोड़ी देर के लिए व्यवस्थाएं ठीक कर ली जाती हैं। कुछ माह पूर्व कलेक्टर पंकज जैन ने वार्डों को मॉडल बनाने की कवायद शुरू की थी, लेकिन उनके तबादले के बाद फिर से बेपरवाही का दौर शुरू हो गया। नतीजा – फर्श पर इलाज, मरीजों की अनदेखी और गंदगी।
स्वच्छ भारत अभियान को ठेंगा, गंदे शौचालयों में संक्रमण का खतरा
स्वच्छ भारत की बात करने वाले सिस्टम ने खुद अस्पतालों को संक्रमण का घर बना दिया है। भोज अस्पताल में शौचालयों की हालत बद से बदतर है, जहां मरीज और उनके रिश्तेदार संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। साफ-सफाई के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति हो रही है।
अस्पताल में विवाद, डॉक्टरों की गैरहाजिरी
अस्पताल में अधिकांश डॉक्टर नियमित रूप से मौजूद नहीं रहते, बल्कि घर पर प्राइवेट क्लीनिक चला रहे हैं। मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण लगातार विवाद हो रहे हैं। हाल ही में एक गर्भवती महिला के पेट में बच्चे की मौत के बाद परिजनों ने जमकर हंगामा किया। डॉक्टरों और स्टाफ पर लापरवाही का आरोप भी लगाया गया।
विधायक का आश्वासन, लेकिन समाधान कब?
धार विधायक नीना विक्रम वर्मा ने कहा है कि जल्द ही स्थाई सिविल सर्जन की नियुक्ति की जाएगी और अस्पताल की व्यवस्था सुधारी जाएगी। लेकिन सवाल ये है कि जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक मरीजों को राहत कौन देगा?