माही परियोजना के बांधों को पूर्ण जलग्रहण क्षमता तक भरने के लिए तेज बारिश जरूरी, रबी की फसलें चिंता में


धार-झाबुआ की माही परियोजना के दोनों बांध अब भी अधूरे हैं। रबी की सिंचाई पर असर, किसानों को राहत के लिए तेज बारिश की दरकार।


आशीष यादव
धार Published On :

मानसून के इस दौर में किसानों की सबसे बड़ी चिंता अब खरीफ नहीं बल्कि आने वाली रबी की फसलों को लेकर है। झाबुआ और धार जिले की जीवनरेखा कही जाने वाली माही परियोजना के दोनों प्रमुख बांधों का जलस्तर अभी तक पूर्ण जलग्रहण क्षमता तक नहीं पहुंच सका है। पिछले एक सप्ताह से हो रही रिमझिम बारिश से खरीफ की फसलों को कुछ राहत जरूर मिली है, लेकिन रबी की सिंचाई व्यवस्था के लिए बांधों का भरना बेहद जरूरी माना जा रहा है।

माही मुख्य बांध की स्थिति

माही मुख्य बांध का जलस्तर शनिवार सुबह तक 448.85 मीटर तक पहुंचा है। इसकी पूर्ण जलग्रहण क्षमता 451.50 मीटर मानी जाती है। यानी बांध अभी 2.65 मीटर खाली है। बांध स्थल पर इस वर्षा सत्र में अब तक 359 मिमी (लगभग 14 इंच) बारिश दर्ज की जा चुकी है।

काली कराई बांध का हाल

माही परियोजना का दूसरा महत्वपूर्ण बांध, काली कराई बांध, भी अभी अधूरा भरा है। शनिवार सुबह 8 बजे इसका जलस्तर 470.35 मीटर दर्ज किया गया। इसकी पूर्ण क्षमता 474.30 मीटर है, यानी लगभग 3.95 मीटर पानी की कमी बनी हुई है। यहां पर अब तक 419 मिमी (करीब 16.5 इंच) बारिश दर्ज हुई है।

सिंचाई क्षेत्र और किसानों पर असर

  • माही बांध से झाबुआ जिले की पेटलावद तहसील के 20 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सिंचाई होती है।

  • वहीं काली कराई बांध से सरदारपुर और बदनावर तहसील के करीब 6,600 हेक्टेयर क्षेत्र में किसानों को सिंचाई सुविधा मिलती है।

इस बार मानसून के दौरान अब तक पिछले वर्ष की तुलना में कम वर्षा हुई है। यदि आने वाले दिनों में पर्याप्त और तेज बारिश नहीं हुई तो रबी की फसलों पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।

किसानों की बढ़ी चिंता

खरीफ की फसलों को रिमझिम बरसात से राहत मिल गई है, लेकिन रबी के लिए पानी की गारंटी तभी होगी जब दोनों बांध अपनी पूर्ण जलग्रहण क्षमता तक भरेंगे। किसान संगठनों का कहना है कि अगर सितंबर के शुरुआती हफ्तों में भारी बारिश नहीं हुई, तो बोआई से लेकर फसल पकने तक सिंचाई की बड़ी चुनौती सामने आ सकती है।


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