पट्टों की राजनीति में कट गए जंगल, पर्यावरण दिवस बना दिखावा”


धार जिले में 1.13 लाख हेक्टेयर जंगल में लगातार हो रही कटाई, पट्टों की राजनीति और प्रशासन की उदासीनता ने पर्यावरण को संकट में डाल दिया है। पढ़ें पर्यावरण दिवस 2025 पर यह जमीनी रिपोर्ट।


आशीष यादव
धार Published On :

एक ओर देशभर में विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधारोपण, रैलियों और भाषणों की बाढ़ आई है, तो दूसरी ओर धार जैसे आदिवासी और वनवर्ती जिले में पर्यावरण की असली हालत बद से बदतर होती जा रही है। यहां जंगल नहीं बचे, तो फिर किस बात का पर्यावरण संरक्षण? सच्चाई यह है कि जिले में 1 लाख 13 हजार हेक्टेयर वन भूमि तो दर्ज है, लेकिन असल में पेड़-पौधों की संख्या दिन-ब-दिन घटती जा रही है।

 

वादे हर चुनाव में, अमल कभी नहीं

हर चुनाव से पहले नेता जंगलों में बसे लोगों को पट्टे देने का वादा करते हैं। फिर जंगलों पर कुल्हाड़ी चलती है। 2018 के चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2006 से पहले के कब्जाधारकों को पट्टे देने की घोषणा की थी, और उसके बाद हजारों हेक्टेयर जंगल साफ हो गया। अतिक्रमणकारियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि अब वे खुलेआम जंगल काटते हैं, खेत या घर बना लेते हैं, और प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है।

 

राजस्व भूमि पर सबसे बड़ा हमला

 

धार जिले में राजस्व की जमीनों पर सबसे ज्यादा पेड़ों की कटाई हो रही है। निचले स्तर के कर्मचारी—पटवारी, आरआई, पंचायतकर्मी—मिलीभगत करके पेड़ कटवाते हैं। इसके बाद वहां खेती या निर्माण शुरू हो जाता है। जिम्मेदार अधिकारी, एसडीएम, तहसीलदार, वन अमला तक इससे अनजान बने रहते हैं। वन और राजस्व विभाग दोनों एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते हैं और पर्यावरण हर दिन दम तोड़ता है।

 

पौधारोपण बना फैशन, देखरेख शून्य

 

आजकल पौधा लगाना फैशन हो गया है। लोग फोटो खिंचवाते हैं, इंस्टा-फेसबुक पर पोस्ट करते हैं, और फिर पौधे को भूल जाते हैं। पानी, देखरेख, सुरक्षा—इनकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। एनजीओ भी पर्यावरण के नाम पर सिर्फ फाइलें और फंड चला रहे हैं। असल में ज़मीन पर कोई बदलाव नहीं दिखता।

 

वन विभाग की निष्क्रियता और अंदरूनी सांठगांठ

धार जिले में सात वन रेंज हैं—धार, मांडू, बाग, धामनोद, टांडा, कुक्षी, सरदारपुर—और 150 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, फिर भी जंगलों की कटाई नहीं रुक रही। कई बार कर्मचारियों पर खुद पेड़ों की कटाई में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं। मांडू रेंज में हाल ही में बड़ी कार्रवाई हुई, लेकिन यह केवल एक उदाहरण है, बीमारी गहरी है।

 

कागज़ी पौधे और खोखले लक्ष्य

 

इस वर्ष वन विभाग ने 3 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। 25 स्थान चिन्हित किए गए हैं और 683 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधारोपण किया जाना है। परंतु सवाल यह है कि क्या ये पौधे जीवित भी रहेंगे? बीते वर्षों में लाखों पौधे लगाए गए, पर जंगल नहीं बना। अधिकांश पौधे सूख गए, बकरियों का निवाला बन गए या देखरेख के अभाव में मर गए।

 

अब भी वक्त है – बचा हुआ जंगल बचाइए

नई पौध नहीं, पहले बची हुई हरियाली को ही सहेज लें। सतपुड़ा की पहाड़ियों से लेकर कुक्षी के पठारी इलाके तक, अब हरियाली की जगह तपते पत्थर दिखते हैं। तापमान 44 डिग्री को पार कर गया है। बारिश इस बार जल्दी आ गई, इसलिए गर्मी कम लगी, वरना हाल और बुरा होता।


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