132 साल पुराने बंगले पर ‘कब्ज़ा’ गैरकानूनी: हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय को फटकार लगाई


Mhow में 132 साल पुराने बंगले से बुजुर्ग बहनों को बेदखल करने पर MP हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय की कार्रवाई को पूरी तरह अवैध ठहराया।


DeshGaon
इन्दौर Published On :

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने महू की ऐतिहासिक छावनी में हुए एक अत्यंत संवेदनशील मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुए रक्षा मंत्रालय की कार्रवाई को “पूरी तरह अवैध” करार दिया है। यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब रक्षा संपदा अधिकारी ने एक 132 साल पुराने बंगले पर कब्ज़ा लेने के लिए वहां रह रहीं दो बुजुर्ग बहनों — ऐन्न चंदिरामानी (84) और अरुणा रॉडरिग्स (79) — को बिना किसी वैध निष्कासन आदेश के जबरन बाहर कर दिया।

जस्टिस प्रणय वर्मा की एकल पीठ ने 13 मई को दिए अपने फैसले में कहा कि जिस प्रकार से बंगले पर कब्ज़ा लिया गया, वह “क़ानून की सभी मर्यादाओं और प्रक्रियाओं की खुली अवहेलना” है। कोर्ट ने आदेश दिया कि बंगले की यथास्थिति बहाल की जाए और उसे पुनः बहनों को सौंपा जाए।

बंगला नंबर 69 जिसमें रक्षा मंत्रालय ने अपना कार्यालय शुरू कर दिया था।

“24 घंटे भी नहीं दिए अपील करने को”

हाईकोर्ट ने इस बात पर विशेष आपत्ति जताई कि ट्रायल कोर्ट द्वारा बहनों की याचिका खारिज किए जाने के ठीक अगले दिन ही, बिना किसी निष्कासन आदेश के, अधिकारियों ने कब्जा ले लिया।

 

“प्रतिवादियों ने अपील की प्रक्रिया के लिए याचिकाकर्ताओं को एक दिन की भी मोहलत नहीं दी। यह दिखाता है कि उन्हें निष्कासन की प्रक्रिया को दरकिनार कर जबरन कब्जा लेने की ठानी थी,” अदालत ने कहा।

 

“पूर्वनियोजित और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई”

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई न केवल अनैतिक थी बल्कि प्रशासनिक रूप से भी अनुचित।

 

प्रतिवादी यह दिखाने को उत्सुक थे कि वे हर हाल में कब्ज़ा लेंगे, भले ही उसके लिए क़ानून की मूल प्रक्रिया को ही क्यों न तोड़ना पड़े।

 

अदालत का आदेश:

  • बंगले की यथास्थिति बहाल की जाए
  • कब्ज़ा दोबारा याचिकाकर्ताओं को सौंपा जाए
  • किसी तीसरे पक्ष को उसमें दखल की अनुमति न दी जाए

 

विवाद का इतिहास:

यह संपत्ति करीब 1.8 एकड़ में फैली है और याचिकाकर्ताओं के मुताबिक उनके परिवार ने इसे नवंबर 1892 में खरीदा था। 1995 में रक्षा मंत्रालय ने इस पर दावा जताते हुए उनसे मालिकाना दस्तावेज़ मांगे और बाद में निष्कासन नोटिस जारी किया। बहनों ने 1997 में दीवानी मामला दायर किया, जो वर्षों से चलता रहा।

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इसके इतिहास को जानिए

देशगांव ने इस विवाद को 2022 के अंत में पहली बार गहराई से रिपोर्ट किया था, जब महू छावनी में बंगला नंबर 69 को लेकर रक्षा संपदा विभाग और छावनी परिषद की कार्रवाई सवालों में थी। उस वक्त बंगले की दीवारों से ज्यादा, वहां से निकाली गई यादें और इतिहास की गूंजें चर्चा में थीं।

यह बंगला केवल एक मकान नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की सैन्य और सामाजिक विरासत का हिस्सा रहा है। इसे 1892 में कार्डोज़ो परिवार ने खरीदा था, जो उस दौर में महू के प्रमुख व्यापारी और छावनी परिषद के सदस्य थे। इसी परिवार से आए डॉक्टर डायस ने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना को सेवाएं दीं और महू में जनसेवा का कार्य किया।

बाद में उनके दामाद ब्रिगेडियर ई.ए. रॉडरिग्स ने भारतीय सेना में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। वे 1947 में थल सेना के ऑर्डिनेंस विभाग के पहले भारतीय निदेशक बने और सैंडहर्स्ट मिलिट्री अकादमी, इंग्लैंड से प्रशिक्षित अंतिम भारतीय बैच के सदस्य थे। उनके नाम पर आज भी सेना में “ब्रिगेडियर रॉडरिग्स ट्रॉफी” दी जाती है।

ब्रिगेडियर रॉडरिग्स के दामाद ब्रिगेडियर चंदिरामानी भी भारतीय सेना में उच्च पद पर रहे। उनके पिता हाईकोर्ट के जज थे। यह परिवार न केवल सैन्य सेवा से जुड़ा रहा, बल्कि आज़ाद हिंद फौज से लेकर बीएसएफ संस्थानों के गठन तक, कई ऐतिहासिक घटनाओं से भी।

इस ऐतिहासिक बंगले के बाहर, जब एक दिन उसकी दीवारें गिरती हैं और सामान सड़क पर होता है, तो केवल एक परिवार नहीं — इतिहास भी निर्वासित हुआ था।


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