महू अस्पताल की लापरवाही: शौचालय में नवजात का शव, कुत्ता नोचता मिला


महू के शासकीय अस्पताल में शौचालय में मिला नवजात का शव, कुत्ता नोचता मिला। लापरवाही की हद, महिला मां बनकर भागी, प्रशासन मौन।


अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :

शासकीय मध्य भारत अस्पताल, जो तहसील का सबसे बड़ा स्वास्थ्य केंद्र माना जाता है, वहां शुक्रवार रात एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। अस्पताल के शौचालय में एक नवजात शिशु का शव मिला जिसे एक आवारा कुत्ता नोच चुका था। यह घटना अस्पताल की व्यवस्थाओं पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है।

 

प्राप्त जानकारी के अनुसार, शुक्रवार रात लगभग 2 बजे एक गर्भवती महिला अस्पताल पहुंची। ड्यूटी पर मौजूद चिकित्सक डॉ. सोनी ने उसे भर्ती होने की सलाह दी। लेकिन अस्पताल की ओर से उसे वार्ड तक पहुँचाने या निगरानी करने की कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई गई। वह महिला सीधे अस्पताल के शौचालय में चली गई, वहीं सामान्य प्रसव हुआ और वह नवजात को वहीं छोड़कर फरार हो गई।

मुंह में बच्चे का शव दबाए घूमता रहा बच्चा

सुबह के वक्त एक महिला सुरक्षा गार्ड ने देखा कि एक कुत्ता नवजात का शव मुंह में दबाए घूम रहा है। शोर मचाने पर कुत्ता शव को छोड़कर भाग गया। जब चिकित्सकों ने शव की जांच की, तो शरीर के कई हिस्से गायब थे—मध्य भाग और फेफड़े तक कुत्ते द्वारा नोच लिए गए थे। इससे यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया कि नवजात जीवित जन्मा था या मृत।

दो घंटे प्रसव पीड़ा में रही महिला

अब सवाल यह है कि एक महिला दो घंटे तक प्रसव पीड़ा में रही, लेकिन न तो कोई वार्डन उसके साथ थी, न ही कोई स्टाफ मौजूद। अस्पताल की नाइट ड्यूटी सुरक्षा व्यवस्था क्या केवल औपचारिकता भर है?

 

यह भी बताया जा रहा है कि महिला नाबालिग थी और संभवतः सिमरोल या चोरल क्षेत्र की निवासी थी। हालांकि इसकी पुष्टि यहां भी नहीं की जा सकती है। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन अब तक अस्पताल प्रशासन की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। न ही किसी जिम्मेदार अधिकारी ने अपनी भूमिका स्पष्ट की है।

 

यह हादसा नहीं, संस्थागत लापरवाही है। एक सरकारी अस्पताल, जहां जीवन की रक्षा सबसे पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए, वहीं एक नवजात का जन्म शौचालय में हो जाना, और फिर उसे कुत्ते द्वारा नोच लिया जाना, इस बात का सबूत है कि अस्पताल केवल नाम का “शासकीय” है, काम में पूरी तरह विफल।

 

इस मामले को लेकर जब अस्पताल प्रशासन से बात करने कोशिश की गई तो कोई ठोस जवाब हासिल नहीं हुआ। कहा जा सकता है कि इस मामले में सिर्फ महिला को दोषी ठहराना आसान होगा, लेकिन असली सवाल उस व्यवस्था पर उठते हैं जिसने उसे कोई मदद नहीं दी। शौचालय में अकेले प्रसव, सुरक्षा की चुप्पी, डॉक्टरों और वार्डन की गैरमौजूदगी — ये सब एक ऐसी कड़ी बनाते हैं जो किसी एक गलती से नहीं, बल्कि सिस्टम की कुल विफलता से बनी है।

 

इस घटना की जिम्मेदारी तय करना आवश्यक है। महज एक जांच या नोटिस से यह मामला निपटाया गया तो यह अन्याय होगा, उस नवजात के लिए भी और समाज के लिए भी।

 


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