उज्जैन में किसानों का बड़ा प्रदर्शन: 2000 ट्रैक्टर और 5000 किसान लैंड पुलिंग योजना के विरोध में उतरे, सिंहस्थ नगरी बनाने पर बवाल


सिंहस्थ 2028 भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उज्जैन में हज़ारों किसान, 2000 ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ 3 किमी लंबी रैली निकालकर सरकार को चेतावनी।


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उज्जैन Updated On :

मध्य प्रदेश के उज्जैन में सिंहस्थ 2028 की तैयारियों को लेकर सरकार और किसानों के बीच टकराव गहराता जा रहा है। रविवार को हजारों किसानों ने शहर की सड़कों पर उतरकर लैंड पुलिंग एक्ट के खिलाफ जोरदार विरोध दर्ज कराया। इस दौरान करीब 2000 ट्रैक्टर-ट्रॉली और 5000 से ज्यादा किसान रैली में शामिल हुए। आंदोलन का केंद्र सरकार की वह योजना है, जिसके तहत सिंहस्थ महापर्व के लिए स्थायी कुंभ नगरी बसाने हेतु किसानों की उपजाऊ जमीन अधिग्रहित की जा रही है।

सिंहस्थ और किसानों की चिंता

उज्जैन महाकाल की नगरी है और यहां हर 12 साल में सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन होता है। सरकार का कहना है कि 2028 के सिंहस्थ में लगभग 30 करोड़ श्रद्धालु उज्जैन पहुंच सकते हैं। पिछले कुंभ (2016) के दौरान स्थायी ढाँचों की कमी से अव्यवस्था देखने को मिली थी। इस बार सरकार चाहती है कि सड़कों, पार्किंग, शौचालय और अन्य सुविधाओं के लिए स्थायी निर्माण हो।
इसके लिए उज्जैन और इंदौर की करीब एक लाख बीघा जमीन लैंड पुलिंग योजना में लाई जा रही है। शुरुआती चरण में 2378 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण के लिए चिन्हित की गई है।

लेकिन किसानों का आरोप है कि सरकार सिंहस्थ की आड़ में उनकी उपजाऊ जमीन स्थायी रूप से छीनना चाहती है। उनका कहना है कि जमीन सिर्फ खेत नहीं बल्कि जीवन और पहचान है। यदि जमीन चली गई तो खेती और रोज़गार खत्म हो जाएगा।

किसान नेताओं का बयान

भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा—
“सिंहस्थ हजारों साल से होता आया है। तब भी बिना स्थायी ढाँचों के आयोजन सफल रहा। किसानों की जमीन साल के 11 महीने खेती के लिए और सिर्फ एक महीने सिंहस्थ के लिए इस्तेमाल होनी चाहिए।”

मिश्र ने चेतावनी दी कि यदि किसानों की 15 सूत्रीय मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो गांवों से दूध और सब्जी की सप्लाई बंद कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रशासन संवाद के नाम पर केवल औपचारिकता निभाता है जबकि फैसले पहले से तय रहते हैं।

भाजपा नेता का समर्थन

इस आंदोलन को भाजपा नेता और पूर्व मंत्री पारस जैन ने भी समर्थन दिया। वे कुछ समय रैली स्थल पर मौजूद रहे, हालांकि बाद में लौट गए। किसानों का कहना है कि यह सिर्फ कृषि का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और आजीविका से जुड़ा बड़ा सवाल है।

किसानों की प्रमुख मांगें

  • उज्जैन सिंहस्थ क्षेत्र से लैंड पुलिंग योजना पूरी तरह समाप्त की जाए।

  • सोयाबीन फसल का उचित मूल्य तय किया जाए और 6000 रुपये प्रति क्विंटल पर खरीदी हो।

  • नर्मदा पाइपलाइन और अन्य सिंचाई सुविधाएं वंचित क्षेत्रों तक पहुंचाई जाएं।

  • आवारा पशुओं से फसल बचाने के लिए ठोस नीति बने।

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में उपग्रह सर्वे की जगह ज़मीनी आधार पर नुकसान का आकलन हो।

  • जमीन अधिग्रहण की स्थिति में किसानों को 2012 की गाइडलाइन के आधार पर चार गुना मुआवजा दिया जाए।

  • गरोठ रोड और जावरा-उज्जैन रोड पर उचित सर्विस रोड का निर्माण किया जाए।

रैली और ट्रैफिक व्यवस्था

स्थानीय प्रशासन ने रैली के दौरान प्रमुख मार्गों पर बैरिकेडिंग कर दी और यातायात को डायवर्ट किया। पुलिस ने सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई जगहों पर ट्रैफिक डायवर्जन लागू किया और रैली मार्ग पर निगरानी रखी। आयोजकों ने बताया कि सड़क सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन के सहयोग के लिए संपर्क किया गया था, बावजूद इसके कई प्रमुख चौराहों पर ट्रैक्टरों का जमावड़ा देखा गया।

जानकारी के मुताबिक सरकार उज्जैन-इंदौर के करीब एक लाख बीघा जमीन को लैंड-पुलिंग के दायरे में लाने का प्रस्ताव चला रही है; इसी के तहत उज्जैन में लगभग 2378 हेक्टेयर जमीन पर स्थायी सिंहस्थ नगरी की रूपरेखा तैयार की जा रही है—जिस पर किसान और सामाजिक संगठन तीव्र आपत्ति जता रहे हैं।

उज्जैन के हालिया प्रदर्शन ने साफ़ कर दिया है कि यदि स्थानीय कृषि समुदाय की चिंता दूर नहीं हुई तो यह आंदोलन और तेज़ रूप ले सकता है। किसान नेताओं ने प्रशासन से खुली बातचीत और लिखित आश्वासन की माँग की है; वहीं प्रशासन की ओर से अभी तक कोई अंतिम नीति-घोषणा सार्वजनिक नहीं की गई है।


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