सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना पर बोले CJI गवई — “अब यह एक भूला हुआ अध्याय है”


CJI बी.आर. गवई ने सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना पर कहा — “हम चकित थे, लेकिन अब यह एक भूला हुआ अध्याय है।” आरोपी वकील पर BCI ने कार्रवाई की।


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सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई पर जूता फेंकने की घटना के चार दिन बाद, उन्होंने पहली बार इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। CJI ने कहा कि यह घटना उन्हें “चकित” कर गई थी, लेकिन अब उनके लिए यह “एक भूला हुआ अध्याय” बन चुकी है। उन्होंने अदालत में स्पष्ट किया कि न्याय की प्रक्रिया किसी भी व्यवधान से नहीं रुकती और अदालत का सम्मान हमेशा सर्वोपरि रहेगा।

यह घटना 6 अक्टूबर को हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने अचानक जूता निकालकर CJI की ओर फेंक दिया। उस समय न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन भी बेंच में शामिल थे। जूता CJI तक नहीं पहुंच पाया और सुरक्षा कर्मियों ने तत्काल आरोपी को हिरासत में ले लिया। कुछ घंटों की पूछताछ के बाद CJI ने स्वयं निर्देश दिया कि आरोपी पर कोई मामला दर्ज न किया जाए।

बुधवार को सुनवाई के दौरान CJI गवई ने कहा, “सोमवार को जो हुआ, उससे मैं और मेरे साथी न्यायाधीश बहुत हैरान थे। लेकिन हमारे लिए वह घटना अब समाप्त हो चुकी है।” उनके इस बयान के साथ ही अदालत में माहौल शांत हो गया। उन्होंने वकीलों से कहा कि वे इस घटना को भूलकर न्यायिक प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करें।

इस दौरान बेंच में मौजूद न्यायमूर्ति उज्जल भूयान ने कहा कि यह न्यायपालिका के प्रति एक अपमानजनक कृत्य है और इसे मज़ाक की तरह नहीं लिया जा सकता। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस हरकत की निंदा करते हुए कहा कि अदालत के भीतर ऐसी घटनाएं “अक्षम्य” हैं, लेकिन उन्होंने CJI की उदारता की प्रशंसा की, जिन्होंने आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने दी।

दिल्ली पुलिस के अनुसार, आरोपी वकील राकेश किशोर हाल ही में खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति पुनर्स्थापन मामले में CJI की एक टिप्पणी से नाराज़ थे। पूछताछ में उन्होंने बताया कि उन्हें उस टिप्पणी से ठेस पहुंची थी, इसलिए उन्होंने यह कदम उठाया। बाद में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनकी वकालत पर अस्थायी रोक लगा दी।

इस घटना ने देश में न्यायपालिका की सुरक्षा और अदालतों की मर्यादा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इसे न्यायिक संस्थान की गरिमा पर हमला बताया है। हालांकि CJI गवई ने जिस शांतिपूर्ण तरीके से प्रतिक्रिया दी, वह इस बात का प्रतीक है कि भारत की न्याय व्यवस्था नफरत या उत्तेजना नहीं, बल्कि संयम और विवेक के सिद्धांतों पर चलती है।


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