सरकार ने 5 लाख पेड़ों की कटाई को दी हरी झंडी, जंगल बचाने वाला संकल्प भूला


छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में 5 लाख पेड़ों की कटाई का रास्ता साफ़। विधानसभा के प्रस्ताव को दरकिनार कर केंते कोल ब्लॉक को मिली वन विभाग से हरी झंडी। जानिए जंगल, हाथी और आदिवासियों पर इसका क्या असर पड़ेगा।


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बड़ी बात Published On :

छत्तीसगढ़ के घने जंगलों वाले हसदेव अरण्य में एक बार फिर सरकार ने पेड़ों की बलि चढ़ाने का रास्ता साफ़ कर दिया है। अडाणी समूह से जुड़ी कोयला खनन परियोजना — ‘केंते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक’ — को वन विभाग की मंजूरी मिल गई है। अब इस परियोजना के लिए 5 लाख से ज़्यादा पेड़ों की कटाई और 1,742 हेक्टेयर जंगल की खुदाई की तैयारी है।

हैरानी की बात ये है कि राज्य की विधानसभा ने खुद हसदेव अरण्य के कोल ब्लॉक्स को निरस्त करने का सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था। फिर ये मंजूरी किसके लिए? जंगल के लिए, या उद्योग के लिए?

जंगल की जगह कोयला?

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह आर्मो ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह मंजूरी वन्य जीव संस्थानों की चेतावनियों, स्थानीय आदिवासियों के विरोध और विधानसभा के संकल्प — तीनों की अवहेलना है।

यह परियोजना लेमरू हाथी रिज़र्व से महज़ 3 किमी दूर है। विशेषज्ञ पहले ही कह चुके हैं कि अगर यहां खनन हुआ, तो हाथी-मानव संघर्ष बेकाबू हो जाएगा।

लोगों ने कहा ‘नहीं’, सरकार ने कहा ‘चलो काटो’

जब पर्यावरण स्वीकृति की जनसुनवाई हुई थी, तो 1,600 से अधिक स्थानीय ग्रामीणों ने विरोध में व्यक्तिगत पत्र सौंपे थे। लेकिन केंद्रीय विशेषज्ञ समिति (EAC) ने इन पत्रों को नज़रअंदाज़ करते हुए खनन को मंजूरी की सिफारिश दे दी।

भाजपा सरकार और अडाणी का गठजोड़?

संगठनों का कहना है कि ये मंजूरी भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार की अडाणी के प्रति ‘वफादारी’ का सबूत है। आदिवासी गांव उजड़ जाएं, जंगल कट जाएं, जैव विविधता खत्म हो जाए — लेकिन कोयला चाहिए!

आगे क्या?

अगर सरकार ने इस अनुशंसा को वापस नहीं लिया तो राज्यव्यापी आंदोलन होगा — यह चेतावनी संघर्ष समितियों ने साफ़ तौर पर दी है।

हसदेव की पुकार कौन सुनेगा?

यह कोई तकनीकी मामला नहीं है। यह एक नैतिक प्रश्न है:
क्या हमारे संविधान में जंगल, आदिवासी और उनकी संस्कृति की जगह बची है?
या अब हर हरियाली का मूल्य सिर्फ टन में तोला जाएगा — कोयले के?


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