भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 30 जून 2025 को जारी की गई “वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट” (Financial Stability Report) में बताया गया है कि देश की बैंकिंग प्रणाली की स्थिति पहले से कहीं अधिक मज़बूत दिख रही है। रिपोर्ट के अनुसार, 46 बैंकों का औसत ग्रॉस एनपीए (Gross Non-Performing Assets) मार्च 2025 में 2.3% रहा, जो कि पिछले कई दशकों में सबसे कम है। यदि देश की आर्थिक वृद्धि दर अगले दो वर्षों तक स्थिर रहती है, तो यह अनुपात मार्च 2027 तक सिर्फ 2.5% तक ही पहुंचने की संभावना है।
बैंकिंग क्षेत्र में सुधार: आंकड़ों के आईने में
भारतीय बैंकिंग प्रणाली, जो एक समय भारी मात्रा में खराब ऋणों के बोझ तले दबी थी, अब उस दौर से काफी आगे निकल चुकी है। RBI की रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों ने न केवल पुराने ऋणों की वसूली और राइट-ऑफ में तेजी लाई है, बल्कि जोखिम भरे कर्जों के वितरण पर भी नियंत्रण रखा है।
ग्रॉस एनपीए, यानी कि किसी बैंक के कुल कर्जों में से वह हिस्सा जो समय पर नहीं लौटाया गया है, यह मार्च 2025 में गिरकर 2.3% रह गया। यह सुधार न केवल बैंकिंग क्षेत्र की कार्यक्षमता को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि ऋण वितरण अब अधिक सतर्कता और विश्लेषण के साथ किया जा रहा है।
अगर अर्थव्यवस्था डगमगाई तो क्या?
RBI ने यह भी चेताया है कि यदि देश की आर्थिक वृद्धि दर अनुमानों से कम रही, तो खराब ऋण अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। दो अलग-अलग उच्च जोखिम वाले परिदृश्यों में यह अनुपात 5.3% और 5.6% तक पहुंच सकता है। इसका सीधा असर बैंकिंग प्रणाली की पूंजी पर, और अंततः ग्राहकों पर पड़ सकता है।
इसलिए RBI और अन्य नियामकों के लिए यह आवश्यक है कि वे न केवल मौजूदा सुधारों को बनाए रखें, बल्कि संभावित आर्थिक अस्थिरताओं से निपटने के लिए योजनाबद्ध ढांचा भी तैयार रखें।
पूंजी पर्याप्तता: बैंक सुरक्षित दायरे में
रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2025 तक बैंकों की पूंजी पर्याप्तता दर (Capital Adequacy Ratio) 17.2% दर्ज की गई, जो कि अब तक की सबसे ऊंची दर है। यह संकेत है कि बैंक पर्याप्त पूंजी जुटा चुके हैं और वे किसी भी संभावित वित्तीय झटके को सहने की स्थिति में हैं।
RBI का अनुमान है कि यह अनुपात मार्च 2027 तक मामूली रूप से गिरकर 17% रह सकता है, लेकिन यह अब भी अंतरराष्ट्रीय मानकों से ऊपर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बैंकिंग क्षेत्र वित्तीय दृष्टि से काफी हद तक सुरक्षित है।
रिटेल कर्ज में उभरते तनाव के संकेत
हालांकि, रिपोर्ट ने कुछ चेतावनियाँ भी दी हैं। पिछले कुछ तिमाहियों में पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड, और माइक्रोफाइनेंस सेगमेंट में डिफॉल्ट दरों में वृद्धि दर्ज की गई है। इसका एक बड़ा कारण उन ग्राहकों को दिए गए ऋण हैं, जिनकी क्रेडिट प्रोफाइल अपेक्षाकृत कमजोर थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल लोन ऐप्स और आसानी से उपलब्ध फाइनेंसिंग विकल्पों ने लोन लेने की प्रक्रिया को सरल तो बनाया है, लेकिन इससे गैर-जिम्मेदार कर्ज वितरण भी बढ़ा है। RBI का सुझाव है कि इन क्षेत्रों में कर्ज वितरण पर निगरानी बढ़ाने की जरूरत है।
घरेलू कर्ज: बढ़ती प्रवृत्ति, लेकिन संतुलित
घरेलू ऋण के आंकड़ों की बात करें तो भारत में यह दिसंबर 2024 तक GDP के 41.9% तक पहुंच गया है, जबकि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में यह औसतन 46.6% है। इसका अर्थ है कि भारत में घरेलू कर्ज का स्तर अभी भी संतुलन में है।
मार्च 2025 तक गैर-आवासीय खुदरा ऋण (जैसे वाहन लोन, पर्सनल लोन आदि) घरेलू कर्ज का 54.9% हिस्सा बनाते हैं। इनका कुल घरेलू आय पर बोझ लगभग 25.7% के आसपास है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्याज दरों में हाल की कटौती से इन ऋणों की पुनर्भुगतान क्षमता बेहतर हो सकती है।