पीथमपुर में ज़हरीले कचरे का ट्रायल विवादों में, सरकार पर हाईकोर्ट को गुमराह करने का आरोप


आईआईटी हैदराबाद की रिपोर्ट से खुलासा, पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों पर मंडरा रहा खतरा


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बड़ी बात Updated On :

पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड के ज़हरीले कचरे को लेकर जारी विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। भोपाल गैस पीड़ित संगठनों ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने इस कचरे के परीक्षण भस्मीकरण (ट्रायल) को लेकर उच्च न्यायालय को गुमराह किया है। संगठनों का दावा है कि सरकारी हलफनामे में पारे जैसे घातक रसायन के रिसाव की जानकारी छुपाई गई, जिससे न केवल न्यायिक प्रक्रिया पर प्रश्न खड़े होते हैं, बल्कि जनस्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरे की आशंका है।

 

सरकारी हलफनामा बना विवाद का केंद्र

मध्यप्रदेश के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में यूनियन कार्बाइड के 300 टन ज़हरीले कचरे के परीक्षण भस्मीकरण (trial incineration) को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है।

भोपाल गैस पीड़ितों के चार संगठनों ने आरोप लगाया है कि भोपाल त्रासदी राहत विभाग के उप सचिव केके दुबे ने राज्य उच्च न्यायालय को अधूरी और भ्रामक जानकारी दी।

 

बानो बी का आरोप: कोर्ट को धोखे में रखा गया

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष बानो बी ने मंगलवार को एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में कहा —

 मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ओर से मिली मंज़ूरी झूठे तथ्यों पर आधारित थी। ट्रायल के दौरान 5 से 20 किलो पारे का रिसाव हुआ लेकिन इसे शपथपत्र में छुपा लिया गया।

 

आईआईटी की रिपोर्ट: पारा रिसाव का वैज्ञानिक विश्लेषण

संघर्ष समूह की सदस्य रचना ढींगरा के अनुसार, यह जानकारी 300 पन्नों की एक तकनीकी रिपोर्ट में दर्ज है, जिसका विश्लेषण आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर आसिफ कुरैशी ने किया है।

1.53 से 6.88 किलो पारा सिर्फ 10 टन कचरे से निकला

कुरैशी द्वारा किए गए “मास बैलेंस एनालिसिस” के अनुसार, ट्रायल में 10 टन कचरे को जलाने पर 1.53 से 6.88 किलो पारा वायुमंडल में छोड़ा गया।

यदि पूरा 300 टन कचरा जलाया जाए तो 40 से 200 किलो पारा वातावरण में पहुंच सकता है — जो WHO के मुताबिक अत्यंत घातक है।

 

WHO की गाइडलाइन: “पारे की कोई सुरक्षित सीमा नहीं”

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पारे की कोई भी मात्रा इंसानी स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं मानी जाती। यह बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए खासकर ख़तरनाक है।

संगठनों की प्रतिक्रिया: विदेश भेजा जाए कचरा

भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने कहा कि जैसे 2003 में कोडईकनाल (तमिलनाडु) से पारा कचरा अमेरिका भेजकर नष्ट किया गया था, वैसे ही पीथमपुर का कचरा भी डाउ केमिकल द्वारा बाहर ले जाकर नष्ट किया जाना चाहिए।

 

बालकृष्ण नामदेव: “ट्रायल के साथ हादसा शुरू हो चुका है”

भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने कहा —

ट्रायल के दौरान जो रिसाव हुआ है, वो पहले से ही ज़हरीले असर का संकेत है। अगर इसे नहीं रोका गया, तो यह हादसा पूरे मालवा क्षेत्र में फैल सकता है।

 

सरकार की चुप्पी और अगला सवाल

रिपोर्ट लिखे जाने तक मध्यप्रदेश सरकार या संबंधित विभाग की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

यह भी स्पष्ट नहीं है कि उच्च न्यायालय को इन तथ्यों की दोबारा जानकारी दी गई है या नहीं।

 

ग्रामीण इलाकों पर प्रभाव की आशंका

पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र का प्रभाव बड़वानी, धार, देवास, राऊ जैसे इलाकों तक जा सकता है।

हवा और जल स्रोतों के माध्यम से इन क्षेत्रों के खेत, तालाब, पशुधन और मानव स्वास्थ्य पर असर संभव है।

इस मामले में न्यायिक पारदर्शिता, वैज्ञानिक साक्ष्य और प्रशासनिक जवाबदेही तीनों पर सवाल उठे हैं।

अब देखना यह है कि क्या अदालत इस मामले की पुनर्समीक्षा करेगी या यह केस भी दस्तावेजों की धूल में खो जाएगा


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