राष्ट्रीय एकता दिवस पर किसानों का राष्ट्रपति को पत्र — भूमि कब्ज़ा और कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ देशव्यापी आवाज़


13 अगस्त 2025 को राष्ट्रीय एकता दिवस पर देशभर के किसानों और जन आंदोलनों ने राष्ट्रपति को पत्र भेजकर भूमि कब्ज़ा, कॉर्पोरेट लूट और प्राकृतिक संसाधनों के निजीकरण पर रोक लगाने की मांग की।


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बड़ी बात Updated On :

देश भर के किसान संगठनों, जन आंदोलनों और मानवाधिकार समूहों ने आज राष्ट्रपति को एक विस्तृत पत्र भेजकर प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और कॉर्पोरेट कब्ज़े के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज कराया। यह पहल भूमि अधिकार आंदोलन के आह्वान पर हुई, जिसकी घोषणा 29-30 जुलाई को राष्ट्रीय बैठक में की गई थी। इस बैठक में निर्णय लिया गया था कि 13 अगस्त को “राष्ट्रीय एकता दिवस” के रूप में मनाकर भूमि, जल, जंगल और खनिज जैसे संसाधनों के निजीकरण के खिलाफ एकजुट आवाज़ उठाई जाएगी।

पत्र में किसानों ने साफ कहा है कि यह केवल ज़मीन की लड़ाई नहीं, बल्कि रोज़गार, लोकतंत्र और गरिमा की रक्षा का संघर्ष है। पिछले एक दशक में विकास के नाम पर चलाई जा रही परियोजनाओं ने किसानों, आदिवासियों, दलितों, पशुपालकों और मछुआरों को उनकी पारंपरिक भूमि और जल स्रोतों से दूर कर दिया है।

मुख्य मांगें और आरोप

किसानों के पत्र में कई गंभीर मुद्दे और ठोस मांगें रखी गईं:

  • कॉर्पोरेट लूट पर रोक: पानी, भूजल, जंगल, ज़मीन और खनिज सभी नागरिकों की साझा संपत्ति हैं। इन्हें निजी कंपनियों को बेचना या सौंपना तुरंत बंद किया जाए।

  • पिछले 11 वर्षों की जांच: इस अवधि में जो भी भूमि और जंगल कॉर्पोरेट कंपनियों को दिए गए, उनकी पारदर्शी जांच हो और पर्यावरण व समाज पर पड़े असर की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।

  • कानूनी सुरक्षा: 2013 का भूमि अधिग्रहण कानून, 2006 का वन अधिकार कानून और 1996 का पेसा कानून पूरी तरह लागू हों, और विकास परियोजनाओं के नाम पर इन्हें कमजोर न किया जाए।

  • लैंड बैंक व लैंड पूलिंग का विरोध: किसानों ने इन योजनाओं को ‘ज़मीन हथियाने के छिपे तरीके’ बताते हुए तत्काल रोक की मांग की।

  • उपजाऊ भूमि की सुरक्षा: कृषि भूमि को मॉल, एसईजेड और रियल एस्टेट जैसे गैर-कृषि उपयोग में बदलने पर प्रतिबंध लगे, ताकि खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण बच सके।

  • कर व्यवस्था में सुधार: सबसे अमीर 1% पर 2% वार्षिक संपत्ति कर और 33% उत्तराधिकार कर लगाकर सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए धन जुटाया जाए।

कृषि संकट और आंकड़े

पत्र में सरकार की कृषि नीतियों पर भी सवाल उठाए गए। किसानों ने कहा कि पिछले 11 वर्षों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) @C2+50% और कर्ज़ माफी की मांग को लगातार अनसुना किया गया, जिससे लागत और संकट दोनों दोगुने हो गए।

भारत की लगभग 48% श्रमशक्ति कृषि पर निर्भर है, जबकि 60% परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। फिर भी नवउदारवादी नीतियों के चलते ग्रामीण भारत में न्यूनतम कैलोरी खपत वाले लोगों का प्रतिशत 1993-94 में 58% से बढ़कर 2017-18 में 80.5% हो गया।

विकल्प का सुझाव

किसानों का कहना है कि मौजूदा निर्यात-आधारित विकास मॉडल छोड़कर राज्य-नेतृत्व वाला कृषि विकास मॉडल अपनाना जरूरी है। लाभकारी मूल्य और न्यूनतम मजदूरी देकर देश की 140 करोड़ जनता की क्रय शक्ति बढ़ाई जाए, ताकि घरेलू उद्योग और वैश्विक प्रतिस्पर्धा दोनों को मजबूती मिले।

अंत में, किसानों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो आंदोलन और व्यापक होगा।
पत्र पर हस्ताक्षर राज कुमार सिन्हा, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के साथ कई अन्य संगठनों के नेताओं ने किए हैं।


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