मप्र के इन चार नागरिकों को मिलेगा पद्म पुरुस्कार

मप्र के इन चार नागरिकों को सेवा और कला के क्षेत्र में यह सम्मान दिया गया है।

भोपाल। गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रदेश के चार लोगों को पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा जा रहा है। देश 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इसका ऐलान किया गया। 84 साल की जोधइया बाई, 90 वर्ष के डॉ. मुनीश्वर चंद्र डावर,  रमेश परमरा और शांति परमार हैं।

जोधइया बाई उमरिया के एक छोटे से गांव लोहरा की रहने वाली हैं। वे बैगिन पेंटिंग को पुनर्जीवित करने के लिए जानी जाती हैं। बैगा  परिवारों के घरों की दीवारों को सुशोभित करने वाले बड़ेदेव और बाघासुर की छवियां कम होते देखकर जोधइया बाई ने आधुनिक रंगों से कैनवास और ड्राइंग शीट पर उसी कला को उकेरना शुरू किया। इसके बाद तो बैगा जनजाति की यह कला एक बार फिर जीवंत हो उठी है।  जोधइया बाई बैगा की पेंटिग्स पेरिस और मिलान देशों में भी प्रदर्शित हो चुके हैं। इटली, फ्रांस में आयोजित आर्ट गैलरी में उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियों को दिखाया गया है। जापान, इंग्लैंड, अमेरिका सहित कई अन्य देशों में भी उनकी पेंटिंग प्रदर्शित की गई हैं।

जोधइया बाई का जीवन काफी परेशानियों भरा रहा है। उनके पति की मृत्यु उस समय हो गई थी जब वे तीस वर्ष की ही थीं। इसके बाद से ही वे चित्रकारी कर रही हैं और वे पचास वर्ष से अधिक से इस चित्रकारी  से जुड़ी रहीं हैं।

जबलपुर जिले के रहने वाले डॉक्टर मुनिश्चर चंद्र डावर (एमसी डावर) सेना से सेवानिवृत्त डॉक्टर हैं। जो पहले दो रुपये फीस लेकर मरीजों का उपचार करते थे और आज वे बीस रुपये ही फीस लेते हैं।  1971 में सेना के साथ भारत पाकिस्तान युद्ध में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और इसके बाद से वे जबलपुर में ही रहकर मरीजों का उपचाप कर रहे हैं।

वहीं झाबुआ के दंपती रमेश-शांति परमार को भी पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है। दोनों 30 वर्षों से आदिवासी गुड़िया बना रहे हैं। शांति बताती हैं कि जनजातीय परियोजना के तहत आदिवासी गुड़िया बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता  था और उन्होंने अपने ससुर और परिवार के दूसरे साथियों से यह कला सीखी है।

First Published on: January 25, 2023 9:32 PM