Climate Change: ऋतु से पहले आ रहे हैं फल, बहुत से क्षेत्रों के कई जंगली फल, सब्ज़ी और भाजियां खत्म होने की कगार पर

बारिश हुई तो दो महीने पहले ही बाजार में आ गई जामुन, मकोरा, तेंदू जैसे कई जंगली फल अब खोजे से नहीं मिलते।

नरसिंहपुर के बाजार में मई के महीने में आई जामुन और दूसरी तस्वीर में एक तरह की इमली जो अब कम दिखाई देती है।

नरसिंहपुर।  जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता, पौधे वनस्पतियों के प्रति आम जनों की कम हो रही रुचि और उनके संरक्षण नहीं किए जाने से कई वनस्पतियां, मौसमी फल खतरे में हैं और आने वाले कुछ समय में शायद ये खत्म हो जाएं। बीते कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन के कई उदाहरण हमारे सामने आ रहे हैं। ये अनुभव शायद कभी खुशनुमा लगते हों लेकिन इनके दीर्धगामी असर भयानक हैं। ऐसा ही एक असर मौसमी फलों पर हो रहा है।

गर्मियां खत्म होने वाले दिनों में पके हुए आम और जामुन का इंतज़ार होता है लेकिन ये बीती बातें हो चुकी हैं। अब गर्मियों के दौरान ही जामुन मिल सकती है।  इस वर्ष जलवायु परिवर्तन का असर यह है कि जामुन समय से लगभग एक डेढ़ महीने पहले बाजार आ गई है। लोग बाजारों में इन्हें देखकर अचरज में हैं और थोड़े खुश भी लेकिन जानकारों के मुताबिक ऋतु से पहले फल का आना अच्छे संकेत नहीं हैं।

मई के महीने में बाजार में आ गई जामुन

जलवायु परिवर्तन और वनस्पतियों में इंसानी हस्तक्षेप तथा बेजा दोहन ने कई फलों का खत्म कर दिया है। प्रदेश के कई इलाकों में होने वाले जंगली फल अब बाजार में खोजने से भी नहीं मिल रहे हैं। कई इलाकों में तो  प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ और वनस्पतियों के लगातार विनिष्टिकरण से अब स्वादिष्ट मकोरे, तेंदू, चिरौंजी अचार, देसी आंवले, जैसे कई मौसमी फल अब देखने को नहीं मिल रहे हैं।

नरसिंहपुर में रोजाना भरने वाली गुदरी बाजार में बीते दिनों काली जामुन बिकती हुईं दिखाई दी। जामुन बेचने आए ग्रामीणों ने  बताया कि इस बार उनके खेत की जामुन जल्दी पक गई है इसलिए बेचना जरुरी है वर्ना ऐसे ही खराब हो जाएगी। ग्रामीणों ने बताया कि इस बार गर्मी तेज नहीं पड़ी थी और उसी बीच पानी भी बरसता रहा। ऐसे में जामुन पक गई। बाजार में बहुत से लोग इसे सहज परिवर्तन मान रहे थे लेकिन ऐसा नहीं है यह जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकेत हैं। ग्लोबल वार्मिंग से गर्म हुए मौसम में फल ऋतु से पहले आ रहे हैं यानी प्राकृतिक व्यवस्था पटरी से उतर रही है।

जानकार कहते हैं कि जामुन एक मौसमी फल है जो केवल अपने समय पर ही स्वादिष्ट होता है और अब तक अच्छी तरह बचा हुआ है लेकिन इसका जल्दी पकना इसे बेस्वाद बना देगा। बाजारों में मिल रही जामुन भी कुछ ऐसी ही है। पादप संरक्षण विशेषज्ञ डॉ. एसआर शर्मा के अनुसार बेमौसम फल में कुछ कमियां होती हैं।

बाजारों में अब यह इमली भी बहुतायत में नहीं मिलती। इसका वैज्ञानिक नाम टैमरिंडस इंडिका है यह अफ्रीकी फल है और भारत में प्राकृतिक तौर पर उगती है।

वे कहते हैं कि समय से पहले आने वाले फलों में न्यूट्रिशियन अर्थात पोषक तत्व जितने रहने चाहिए उतने नहीं रहते और असमय खाने से मानव के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा। इसके अलावा  ऐसे फल के अवशेष जब जमीन पर पड़ेंगे तो उनसे नुकसान भी होगा। मसलन नई आने वाली पौध क्वालिटी और वैरायटी की दृष्टि से प्रभावित होगी।

डॉ एसआर शर्मा कहते हैं कि क्लाइमेट चेंज होने से यह सब हो रहा है। समय से पहले जितना तापमान और आद्रता किसी पेड़ पौधे को फलने फूलने के लिए चाहिए अगर वह मौसम में बदलाव आने की वजह से मिल रहा है तो वह समय से पहले ही उनका फलन हो जाता है।

जिले के आसपास के ग्रामीण कहते हैं कि अब पुराने फल खत्म हो रहे हैं और उन्हें भी नहीं पता कि ऐसा क्यों हो रहा है। ये बात सही है क्योंकि पहले बाजारों में मकोरे, करौंदा, चिरौंजी आचार, देसी आंवले, रसूलुल्ले, तेंदू आदि मिलते थे लेकिन अब नहीं हैं। यही हाल सब्जियों का भी है। हर इलाके में वहां की भौगोलिक स्थिति के अनुसार कुछ विशेष सब्ज़ियां और भाजियां मिलती होती हैं लेकिन अब इनकी संख्या कम होती जा रही है।

मौसम परिवर्तन के कारण सब्जी-भाजी भी खत्म हो रही हैं। कचरिया, बथुआ, पुआर, नेतुआ, नोरपा, चैंच, किमाच, पथरचटा, चौरई आदि सब्जियां और भाजियां मप्र के कई इलाकों में पाईं जाती हैं लेकिन अब यह धीरे-धीरे खत्म हो रहीं हैं। अब इनमें से कुछ ही हैं जो बाजारों में कभी मिल पाती हैं।

पुरानी भाजी भी अब खत्म हो रहीं हैं। हालांकि बाजारों में अब भी मिलती हैं लेकिन मात्रा पहले से बहुत कम हो चुकी है।

फल फूल सब्जियों के जानकारों की मानें तो आने वाले समय में लगातार पेड़ों की कटाई के कारण दक्खन इमली, कैथा, बेल पर भी संकट होगा। ऐसे में जो लोग धार्मिक कारणों या शौक के कारण ऐसी वनस्पति लगा रहे हैं वे एक तरह से इन्हें संरक्षित भी कर रहे हैं।

डॉ. शर्मा बताते हैं कि बेल और कैथा ऐसे पेड़ नहीं हैं जिन्हें फल देने वाले पेड़ों के रुप में ज्यादा संख्या में लगाया जाता हो ऐसे में इनके पेड़ों की काटे जाने की रफ्तार इन्हें लगाने की रफ्तार से ज्यादा तेज हो रही है। ज़ाहिर है आने वाले दिनों में इन फलों की कमी होगी और फिर ये धीरे-धीरे हमारी आंखों से ओझल हो जाएंगे।

समय से पहले पेड़ पौधों में फलन की वजह ग्लोबल वार्मिंग और केमिकल का बढ़ता प्रयोग है। मानवीय आचरण इसका एक अहम कारण है। गांव-गांव पाए जाने वाले देसी आंवले, आचार, कैंथा आदि के पेड़ काट दिए गए हैं, ज्यादा कीटनाशक और फसलों की ग्रोथ के लिए जिस तरह का केमिकल उपयोग हो रहा है। उससे बहुत अधिक नुकसान हो रहा है और आने वाले समय में होगा।

डॉ. एसके राय, सहायक निदेशक उद्यानिकी

यही हाल औषधीय पौधों का भी है जिन्हें अक्सर साफ-सफाई के नाम पर कचरा समझकर हटा दिया जाता है। इनमें किमाच अहम हैजो पहले नर्मदा के किनारों पर यूंही मिल जाया करती थी लेकिन अब इसे पाना मुश्किल है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध एक आर्युवेद के जानकार बताते हैं कि किमाच एक औषधी की तरह है और कई बार काम आती है और इसके कई प्रयोग तो बेहद कारगर हैं। इसके अलावा यह एक सब्जी के रुप में भी उपयोग की जाती है।

First Published on: May 17, 2023 3:59 PM