मौसम और नए ज़माने के चलन से कुम्हलाने लगी पान की खेती, तेज़ी से घट रही उत्पादक किसानों की संख्या

पान उत्पादक किसान चाहते हैं प्रदेश की सरकार पान की प्रजातियों को बचाने बनाए कोई नीति बनाई जाए

भारतीय पंरपंराएं बहुत गहरीं हैं। इन परंपराओं में श्रंगार का काफी महत्व है, हर तरह का श्रृंगार होता है और इसमें एक श्रंगार होठों का भी होता है जिसे अधर श्रंगार कहते हैं। यह श्रंगार पान से होता है। पान की दुकान जो कभी हर गली मोहल्ले में हुआ करती थी और शहर की कुछ दुकानें जो अपने पान के लिए मशहूर हुआ करतीं थी, अब इनमें से ज्यादातर नहीं बचीं। लिहाज़ा पान की मांग कम हुई और इसके साथ खेती भी वहीं बची खुची कसर मौसम ने पूरी कर दी।

पान खाने के अपने फायदे हैं कहते हैं कि इसके सेवन से शरीर में कैल्शियम की कमी पूरी हो जाती है। धार्मिक कार्यों में ,पूजा पाठ में भी पान का उपयोग होता है। इसे कहीं पान तो कहीं बीड़ा , तो कहीं तांबूल कहते हैं। पान के फल भी स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं। जिसे परवल कहते हैं । बरेजे, एक छायादार और नियंत्रित वातावरण में पान की खेती की जाती है वहां परवल भी उगाए जाते हैं जो खाने में बड़े पौष्टिक होते हैं इन्हें पान का फल भी कहा जाता है लेकिन अब पान की फसल हो या पान के फल, इस पर मौसम, बाजार और व्यवस्थाओं की मार है।

पिछले कुछ सालों में बार-बार बदल रहे मौसम से खेती बाड़ी पर काफी प्रभाव देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन का पान की खेती पर काफी असर है। मौसम की बेरुखी से बेल पर लगे पान के पत्ते झड़ रहे हैं और फसल को नुकसान पहुंचा। हाल ही में मौसम में उतार-चढ़ाव से पान के पत्तों की थोड़ा रंग बदला और धीरे-धीरे वह पत्ते झड़ भी गए वैसे ही पान की खेती व्यवसाय में पिछले कुछ वर्षों में काफी निराशाजनक स्थिति बनी हुई है।

पान उत्पादक किसान बसंत चौरसिया बताते हैं कि  कोरोना के बाद से वैसे ही पान की खेती और व्यवसाय में काफी अंतर , गिरावट है l कोरोना के वक्त संक्रमण के भय से पान का व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ । लोगों ने पान खाने से दूरी तो बनाई पर यह दूरी गुटखा पाउच में इस तरह उलझी कि पान खाने के शौकीन लोग गुटखे पाउच की लत के शिकार हो गए । कोरोना के 2 साल तक पान और उनके ठेले जरूर बंद हो गए लेकिन गुटके पाउच की सप्लाई चोरी छुपे होती रही बल्कि व्यवसाय चार गुना तक बढ़ गया । 20 रु का गुटखे को लोगों ने 100 रु में भी खरीदना, खाना पसंद किया ।

कोरोना के वक्त से पान की खेती और व्यवसाय में आई गिरावट का असर है कि इन 5 – 6 वर्षों में पान की खेती करने वाले लगभग 50 – 55 हज़ार किसान घटकर अब 14 – 15 हज़ार ही रह गए हैं। मध्यप्रदेश पान उत्पादक किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष बसंत चौरसिया कहते हैं कि हजारों किसान पान की खेती छोड़ चुके हैं अब बमुश्किल 14 – 15000 किसान ही एक छोटे से रकबे में यह खेती कर रहे हैं। चौरसिया कहते हैं कि पान की खेती बाड़ी का कार्य पुरातन है। वर्षों से परंपरागत तरीके से किया जा रहा है
उनके पुरखे भी पान की खेती करते थे। समाज का यह कार्य परंपरागत पीढ़ियों से चला आ रहा है । परंतु अब पान की खेती को लेकर कई मुश्किलें हैं लगातार लागत बढ़ती जा रही है। आमदनी घट रही है और पान का बाजार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है । जबकि पान खाने के अपने फायदे हैं । फिर भी पान का व्यवसाय साल दर साल कमजोर होता जा रहा है । शायद इसलिए नई पीढ़ी के लोग अब इस तरह की खेती बाड़ी में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं ।

चौरसिया आगे बताते हैं कि शासन से इसमें कोई से सहयोग मिलता नहीं है। पान की फसल ऐसी है कि इसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भी शामिल नहीं किया गया है हालांकि आरबीसी 6 – 4 के तहत जरूर प्राकृतिक आपदा से क्षतिपूर्ति की प्रावधान है,  चौरसिया की शिकायत है कि प्रावधान जरूर यह है कि क्षतिपूर्ति सर्वेक्षण आंकलन के एक सप्ताह के अंदर मिल जाए पर विडंबना है कि यह क्षतिपूर्ति चार-चार महीने नहीं मिलती जिससे किसान परेशान हो जाता है।

पान की फसल को हालिया पड़ी तेज़ ठंड से भी खासा नुकसान हुआ है। छतरपुर जिले में पान किसानों को इसके चलते बड़ा नुकसान हुआ। छतरपुर में बड़ा मलैहरा और महराजपुर इलाके में यह नुकसान काफी ज्यादा रहा है। यहां के किसानों का कहना है कि ज्यादा ठंड से पान के पत्ते काले पड़ गए। इन किसानों ने मुआवज़े की मांग की है हालांकि अब तक इस मामले में उन्हें कोई राहत नहीं मिली है।

नरसिंहपुर जिले में ऐसे तीन गांव हैं जहां पान की खेती हो रही है। इसमें नरसिंहपुर से लगे करेली ब्लॉक का ग्राम निवारी है। चीचली ब्लॉक का ग्राम बारहा और चावरपाठा जनपद का गांव पीपरपानी है। यहां के किसानों ने भी अब पान का रकबा घटा दिया है एक एकड़ की चौथाई हिस्से में ही पान की बरेजे लगे हैं। कुछ पान किसानों का कहना है कि इसकी खेती के लिए बांसों की भी जरूरत पड़ती है जो अब उन्हें नहीं मिलते। ये कहते हैं कि ज्यादातर बांस एक वर्ग विशेष को ही रियायत पर उपलब्ध करा दिए जाते हैं।

पान उत्पादक किसान कहते हैं कि यह पारंपरिक खेती है इसे बंद तो किया नहीं जा सकता है, ऐसे में यह मंशा है कि पान की खेती के प्रोत्साहन के लिए शासन एक विशेष सहयोग नीति बनाए। ये किसान बताते हैं कि पान की खेती का घटता रकबा केवल बदलता जमाना नहीं है बल्कि एक औषधीय या भोजन से जुड़ी संस्कृति को खत्म होते देखना है।

जानवरों के साथ औषधियों को भी बचाए सरकार…
नरसिंहपुर जिले में आमतौर पर बांग्ला और कटक प्रजाति का पान होता है जबकि प्रदेश के कुछ हिस्सों में मीठी पत्ती भी मिलती है ।पान उत्पादक किसान संघ के अध्यक्ष बसंत चौरसिया कहते हैं कि सरकार चीते ,बाघ आदि के संरक्षण के लिए वृहद स्तर पर करोड़ों रुपए खर्च करती है। कई औषधि पौधों को बचाने, उनके संरक्षण के लिए भी विदेशों में कई प्रयत्न होते हैं लेकिन अपने देश में शायद इस तरह का कोई प्रयास नहीं हो पा रहा है जबकि पान की प्रजातियां बचाना आज की जरूरत है। मध्य प्रदेश में रतलाम, होशंगाबाद, छतरपुर, रीवा, सतना, पन्ना , टीकमगढ़, जबलपुर , कटनी ,सागर आदि जिलों में पान की पैदावार हो रही है । यहां के किसानों की माली हालत भी लगभग यही है ।

First Published on: February 13, 2024 12:09 PM