पूर्व नौकरशाहों ने की बिलकिस बानो के लिए न्याय की मांग, दुष्कर्म के सभी 11 दोषियों को फिर जेल भेजने की अपील

130 पूर्व नौकरशाहों ने पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से सजा बरकरार रखने की अपील

नई दिल्ली। गुजरात सरकार ने पिछले दिनों बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 दोषियों की समय से पहले हाई कर दी। इसके बाद इन दोषियों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया। इस फैसले ने देशभर में सरकार के खिलाफ असंतोष जगाया।

इस मामले में सभी 11 दोषियों की सजा बरकरार रखने के लिए लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इसी कड़ी में 130 पूर्व नौकरशाहों ने भारत के प्रधान न्यायाधीश को एक खुला पत्र लिखा है और उनसे इस ‘बेहद गलत फैसले’ को सुधारने की अपील की है। ज्ञात हो कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है जिसके बाद 25 अगस्त को ही केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।

सीजीआई को लिखे गए इस पत्र में पत्र में कहा गया है, ‘‘भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर कुछ दिन पहले गुजरात में जो हुआ उससे हमारे देश के ज्यादातर लोगों की तरह, हम भी स्तब्ध हैं।” ‘कंस्टीटयूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वावधान में लिखे गए इस पत्र में जिन 134 लोगों के हस्ताक्षर हैं उनमें दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व कैबिनेट सचिव के. एम. चंद्रशेखर,पूर्व गृह सचिव जी. के. पिल्लई पूर्व विदेश सचिवों शिवशंकर मेनन और सुजाता सिंह आदि शामिल हैं।

पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि दोषियों की रिहाई से ‘‘देश में नाराजगी है.” पत्र में कहा गया है, ‘‘हमने आपको पत्र इसलिए लिखा है क्योंकि हम गुजरात सरकार के इस फैसले से बहुत व्यथित हैं और हम मानते हैं कि केवल उच्चतम न्यायालय के पास वह अधिकार क्षेत्र है, जिसके जरिये वह इस बेहद गलत निर्णय को सुधार सकता है।”

उल्लेखनीय है कि गोधरा में 2002 में ट्रेन में आगजनी के बाद गुजरात में भड़की हिंसा के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार किया गया था। उस समय पीड़िता की आयु 21 वर्ष थी और वह पांच महीने की गर्भवती थी। इस दौरान जिन लोगों की हत्या की गई थी, उनमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने जनवरी 2008 में सभी 11 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी और इसके बंबई उच्च न्यायालय ने भी इसी फैसले को बरकरार रखा था।

पत्र में इन पूर्व अधिकारियों ने लिखा है कि ‘‘हम इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को इतना जरूरी क्यों समझा कि दो महीने के भीतर फैसला लेना पड़ा! इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि मामले की जांच गुजरात की 1992 की माफी नीति के अनुसार की जानी चाहिए, न कि इसकी वर्तमान नीति के अनुसार।” इसमें कहा गया है, ‘‘हम आपसे गुजरात सरकार द्वारा पारित आदेश को रद्द करने और सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के दोषी 11 लोगों को उम्रकैद की सजा काटने के लिए वापस जेल भेजने का आग्रह करते हैं।”

 

First Published on: August 28, 2022 12:12 AM