जल संरक्षणः एक असाधारण प्रयोग ने बदल दी इन किसानों की ज़िंदगी, अब कर रहे साल भर खेती


— जल संरक्षण की दिशा में इस शानदार प्रयोग ने बदल दी किसानों की किस्मत।
— पुराने नालों को संवारा और सहेजा बेशकीमती बारिश का पानी।
— कई गांवों में बढ़ गया जल स्तर।


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उनकी बात Updated On :

इंदौर। पानी को लेकर इंदौर जिले में एक शानदार प्रयोग किया गया है। इस प्रयोग के तहत कुछ गांवों के पुराने पांरपरिक नालों को फिर से पुर्नजीवित किया गया था। साधारण से लगने और सुनाई देने वाले इस काम का असर यह हुआ कि  तेज़ गर्मी के मौसम में भी खेतों में जमानी पानी बना रहा और किसान सालभर खेती कर पाए। किसानों के मुताबिक पारंपरिक तरीके से पानी बचाने के लिए किये गए इस प्रयोग ने उनकी दशा बदलने में मदद की है।

महू तहसील के भगोरा गांव में रहने वाले भगवान सिंह आंजना जून के महीने में भी अपने खेतों में खड़ी गुलाब के पौधों की सिंचाई कर रहे हैं। उन्होंने इस बार साल भर खेती की है। यह पहली बार हुआ है जब इस इलाके में किसानों के पास साल भर खेती करने के लिए पानी उपलब्ध रहा हो।

आंजना के मुताबिक यह उनके लिए चमत्कार की तरह रहा है। वे बताते हैं उनके पास 35 बीघा जमीन है और उन्होंने गर्मियों के दौरान करीब 22 बीघा जमीन पर खेती की है जबकि इससे पहले इस इलाके के ज्यादातर किसान अधिकतम फरवरी महीने तक ही खेती कर पाते थे। भगवान आंजना अब इस पानी को भी बचा रहे हैं और ड्रिप से खेती कर रहे हैं।

भगवान सिंह बताते हैं कि पानी की उपलब्धता आसान कभी नहीं रही। यही वजह थी कि उन्होंने पानी की आस में एक के बाद एक 22 ट्वयूबवेल अपनी जमीन पर खुदवाए लेकिन इनमें से कई पूरी तरह सूख गए तो कई केवल दिसंबर या ज्यादा से ज्यादा जनवरी तक ही पानी दे पा रहे थे।

इसके बाद साल 2020 में इस गांव में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत जलसंरक्षण का काम शुरु हुआ। इस योजना का लक्ष्य था कि इलाके में जमीनी पानी की स्थिति को सुधारना। इसके लिए नए संसाधनों पर खर्च करने की भी योजना थी लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने इसे नकार दिया और उन्होंने पुराने जल स्त्रोतों को ही बेहतर बनाने की सोची। इसके पीछे सोच थी बारिश के पानी को बचाने की जो हर बार काफी मात्रा में होता है लेकिन बेकार नालों में बह जाता है।

इस काम को करने का ज़िम्मा इंदौर की सामाजिक संस्था नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट को दिया गया था। इसके तहत गांवों के पुराने नालों को संवारने की योजना बनाई। लक्ष्य था कि बारिश का पानी इन नालों में जमा किया जाए और उसे बेकार बह जाने से रोका जाए। इसके लिए नालों को चौड़ा और गहरा किया गया।

इस काम में किसानों ने भी सहयोग दिया। जिन किसानों की जमीनें नालों से लगी हुईं थीं उन्होंने अपनी खेती कुछ पीछे की और नालों को चौड़ा करने में सहयोग किया। बदले में इन्हें नालों के गहरीकरण के बाद निकली उपजाऊ मिट्टी मिली।

इस तरह किया गया था नालों का गहरीकरण

इस तरह गांव के करीब सोलह नाले संवारे गए। इन नालों में करीब 22 रिचार्ज शॉफ्ट लगाए गए ताकि जो पानी जमा हो रहा है उसे जमीन में उतारा जाए और जमीनी पानी की आपूर्ती की जाए।

भगोरा के अलावा आसपास के नावादा,पांदा, आंबाचंदन, हरसोला, नेउगुराड़िया, कटकटखेड़ी और पिप्लियामल्हार  जैसे करीब आठ गांवों में यह काम किया गया। इस तरह गांव के नालों में बारिश का पानी जमा किया गया।

इस काम का असर एक साल में ही दिखना शुरु हो गया। लगभग सभी गांवों में जमीनी पानी का स्तर सुधरने लगा और फिलहाल इसका सबसे बड़ा फायदा भगोरा गांव के किसानों को मिल रहा है।

यहां जिन किसानों की जमीनें नालों के पास थीं उनके ट्यूबवेल में साल 2022 की गर्मियों में पानी खत्म ही नहीं हुआ, इस तरह उन्होंने बारह महीने खेती की है।

इनमें से एक किसान कैलाश आंजना हैं जो पहले अपनी जमीनें बेचकर कहीं और जाकर खेती करना चाहते थे लेकिन जल संरक्षण के इस प्रयोग के बाद वे गांव के सबसे खुशहाल किसान नज़र आते हैं। आंजना के मुताबिक इस प्रयोग ने उनकी जिंदगी बदल दी है।

कैलाश आंजना, किसान

आंजना ने गर्मियों में अपने खेतों में गाजर की खेती की थी और इसके बाद बैंगन लगाए। वे बताते हैं कि इससे उन्हें रोजाना अच्छी आमदनी हो रही है। कैलाश के मुताबिक खेती में नुकसान के कारण किसानों पर अक्सर कर्ज़ हो जाता है जो उन पर भी हुआ लेकिन अब उन्हें उम्मीद है कि वे जल्दी ही इस स्थिति से बाहर निकल आएंगे।

बारिश का पानी नालों में हुआ जमा (यह तस्वीर दिसंबर 2021 की है)

हरसोला गांव के पूर्व सरपंत विष्णु मालवीय बताते हैं कि उनके गांव में भी पानी की समस्या अब लगभग खत्म हो गई है। यहां भी नालों को चौड़ा और गहरा किया गया।

विष्णु मालवीय, हरसोला गांव के पूर्व सरपंच

इसका असर यह हुआ कि बारिश के साथ-साथ नजदीक से गुजरने वाली नर्मदा की पाइप लाइन का बेकार बहने वाला पानी भी नालों में सहेजा जा सका। मालवीय बताते हैं कि अब गांवों के ट्यूबवेल और कुओं में भरपूर पानी है।

सुरेश एमजी, नागराज चैरिटेबल ट्रस्ट

नालों को संवारने का काम करने वाले नागरथ चौरिटेबल ट्रस्ट के सुरेश एमजी बताते हैं कि पानी लाने के लिए बड़े-बड़े संसाधनों पर खर्च करना एक बेहद खर्चीला काम था ऐसे में उन्होंने साधारण लेकिन कारगर रास्ता चुना और गांव के पुराने जलस्त्रोतों पर ध्यान दिया। चुनौती थी कि गांव के कुओं और ट्यूबवेल में पानी कैसे आए इसलिए सीधा रास्ता ज़मीन में बारिश का पानी पहुंचाने की सोची।

ट्रस्ट के इंजीनियर रुपेश पाटीदार बताते हैं कि इस प्रयोग से जमीनी पानी का स्तर काफी हद तक बढ़ा है और हर बारिश के बाद इसमें और सुधार होगा। पाटीदार के मुताबिक कुछ समय के बाद आसपास के करीब 8-10 किमी इलाके में जमीनी पानी का स्तर सुधरेगा। भगोरा के बारे में वे बताते हैं कि एक अनुमान के मुताबिक एक बीघा जमीन में करीब बीस लाख लीटर तक पानी बढ़ा है जो काफी अच्छे संकेत हैं।

 

 



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