इतिहासकारों के मूल्यांकनों में सम्भवतः यह भी शामिल रहेगा कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के प्रति किस तरह का स्पष्ट सम्मान या अप्रत्यक्ष असम्मान उन्होंने पराई ज़मीनों पर दर्शना उचित समझा।
सेवा-निवृत्त नौकरशाहों, राजनयिकों, विधिवेत्ताओं का मानना है कि नफ़रत की राजनीति के आरोप अगर वास्तव में सही हैं तो प्रधानमंत्री को चिट्ठियाँ नागरिकों के द्वारा लिखी जानी चाहिए और वे ऐसा नहीं कर…
कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं को अभी सूझ नहीं पड़ रही है कि वे प्रशांत किशोर के नहीं जुड़ने की खबर पर दुःख मनाएँ या एक दूसरे को बधाई देते हुए मिठाई बाँटें!
लोकतांत्रिक देशों में सियासी पार्टियां इन सोशल मीडिया की लोगों तक सीधी पहुंच को असरदार माध्यम मानकर काम करती हैं, लेकिन हकीकत में वो स्वयं भी एक खास एजेंडे की भागीदार बन जाती…
हम चुपचाप खड़े देख रहे हैं कि हिंदू बहुमत का उपयोग देश में लोकतंत्र को मज़बूत करने के बजाय भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए किया जा रहा है।
संसद और विधान सभाओं में आपराधिक रिकार्ड वाले सदस्यों की वर्तमान संख्या को अभी शायद पर्याप्त नहीं माना जा रहा है !