“साहब नरवाई जलाना मजबूरी है, जानते हैं जमीन हो रही है बंजर लेकिन महंगाई के चलते करते हैं ऐसा”


किसानों को है इसका भी ध्यान कि जमीन हो रही बंजर और नरवाई से खाक हो रही खेतों की खुराक। जहरीले धुएं में जाया हो रही खेतों की शक्ति।


आशीष यादव आशीष यादव
उनकी बात Updated On :
burning narwai in dhar

धार। ”साहब नरवाई जलाना प्रतिबंधित है मगर क्या करें मजबूरी है। इसके अलावा हमारे पास दूसरा उपाय भी नहीं। महंगाई के इस दौर में बढ़ते डीजल व अन्य संसाधनों की कीमतों ने किसानों की कमर तोड़ दी है। अगर किसान नरवाई ना जलाए तो क्या करे?”

पहले ही किसानों की उपज का दाम नहीं मिल रहा है और दूसरी ओर आसमान छू रही मंहगाई ने किसानी के काम आने वाले उत्पादनों में आग सी लगा दी है जिसके चलते किसानों को मजबूरी में अपने खेतों में अनाज देने वाली भूमि में नरवाई जलाने का काम करना पड़ता है।

अभी क्षेत्र में अनेक स्थानों पर खेतों में आग लगने की घटना सामने आ रही है। इन घटनाओं में अब कोई जिम्मेदार ध्यान नहीं दे रहे हैं। वही इसके बावजूद किसान अपने नुकसान से भी सबक नहीं ले रहे हैं। समझाइश के बाद भी किसान खेतों में नरवाई में आग लगा रहे हैं।

इस ओर प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए मगर वो ध्यान नहीं दे रहा है। गर्मी के मौसम में किसान गेहूं की फसल काटने के बाद नरवाई में आग लगा देते हैं जिससे कई बार बड़े हादसे हो जाते हैं।

वायुमंडल में प्रदूषण के साथ ही खेतों की उपजाऊ क्षमता भी कम हो रही है। कृषि विभाग भी लगातार किसानों को नरवाई न जलाने की समझाइश दी है जो कागजों तक ही सिमट कर रह जाती है।

कई बार नरवाई में आग लगाने से आग दूसरे खेतों तक व मकानों तक भी पहुंच जाती है जिससे जन व धन हानि की आशंका बनी रहती है। कई बार खेतों में आग लगने के मामले सामने आए हैं। इन घटनाओं में लाखों रुपये का गेहूं जलकर खाक हो गया।

नरवाई जलाने पर भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा हुआ है। कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक यहां अभी प्रतिबंध है। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को नरवाई नहीं जलाने के लिए समझाइश भी दी है।

जानकारी होने के बाद भी जलाते हैं नरवाई –

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक बताते हैं कि नरवाई में लगभग फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्व जैसे नाईट्रोजन 0.5 प्रतिशत, स्फूर 0.6 और पोटाश 0.8 प्रतिशत पाया जाता है जो कि नरवाई में जल जाता है।

गेहूं की फसल के दाने से डेढ़ गुना भूसा नरवाई में होता है अर्थात एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूं का उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी और भूसे से 30 किलो नाइट्रोजन, 36 किलो स्फूर, 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकता है।

जो वर्तमान मूल्य के आधार पर लगभग तीन हजार प्रति हेक्टेयर के अधिक क्षेत्रफल में नरवाई जलाते हैं तो लगभग 30 करोड़ के पोषक तत्व जल जाते हैं।

भूमि में उपलब्ध पेड़-पौधे, भूमि की सतह के अंदर लाभकारी सूक्ष्मजीव, केचुएं एवं कीट आदि जलकर नष्ट हो जाते हैं।

भूमि कठोर हो जाती है जिससे जल धारण क्षमता कम हो जाती है। रासायनिक क्रियाएं प्रभावित होती हैं। कार्बन-नाइट्रोजन एवं कार्बन फास्फोरस का अनुपात गिर जाता है। जनधन की हानि होती है।

किसान कर सकते हैं ये उपाय –

किसान स्ट्रारीपर यंत्र का उपयोग कर नरवाई से भूसा तैयार कर सकते हैं जिससे भूसे की मात्रा बढ़ेगी। गेहूं कटाई के दौरान किसान नीचे से कटाई करें। नरवाई जलाना वायुमंडल के लिए खतरनाक है।

नरवाई में आग लगाने से खेत के जीव पदार्थ नष्ट हो जाते हैं जिसके कारण उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। किसानों को गेहूं कटवाने के बाद उसे कृषि वेटरयंत्र या प्लव का उपयोग करना चाहिए जिससे अवशेष की कटिंग हो जाती है।

जलाने के बजाय अवशेष व डंठल से बना सकते हैं खाद –

अवशेषों और डंठलों को एकत्र कर जैविक खाद जैसे भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट बनाने में उपयोग किया जाए तो वे बहुत जल्दी सड़कर पोषक तत्वों से भरपूर जैविक खाद बन सकते हैं।

खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हैरो की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जीवांश खाद की बचत की जा सकती है। पशुओं के लिए भूसा और खेत के लिए बहुमूल्य पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ने के साथ मिट्टी की संरचना को बचाया जा सकता है।

किसान क्या कर सकता है यह आम समस्या –

फसल काटने के बाद बची फसल या नरवाई को जलाना आम समस्या है। अधिकतर जगह किसान नरवाई न जलाते हुए उसका प्लाव करके खेत को जोतते हैं।

अधिकांश किसान महंगाई के चलते पैसा बचाने के लिए नरवाई जला देते हैं, लेकिन नरवाई जलाने से जमीन के उपजाऊपन पर विपरीत असर पड़ता है। साथ ही प्रदूषण भी फैलता है।

नरवाई जलाने वाले किसान का कहना है हम करें तो क्या करें। पहले से ही फसल पक नहीं रही और जो थोड़ा बहुत पैसा बच रहा है अगर इसमें लगा दें तो हमारे हाथ तो कुछ नहीं आना है। ऊपर से फसलों के दाम नहीं बढ़ रहे। दाम बढ़े तो खेतों में खर्च भी करेंगे।

नरवाई जलाने से ये होता है नुकसान –

– आंखों में जलन एवं त्वचा रोग तथा सूक्ष्म कणों के कारण हृदय एवं फेंफड़ों की बीमारी के रूप में लोगों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है।
– खेत के मित्र बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। फसल के अंकुरण में दिक्कत होती है।
– खेत के उर्वरक, अल्सिएं नष्ट हो जाते हैं। खेत की उर्वरकता प्रभावित होती है।
– नरवाई जलाने से धुआं निकलता है, जिससे वायुमंडल में प्रदूषण होता है।
– नरवाई की आग से भूमि में रहने वाले फसलों के लाभकारी, सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं।
– खेतों की मिट्टी कड़क हो जाती है, जिससे उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है।
– नरवाई जलाने से ग्लोबल वार्मिंग में असर पड़ता है। यह वायुमंडल के लिए खतरनाक है। भूमि की ऊपरी परत पर उपलब्ध पोषक तत्व नष्ट होते हैं।
खेतों में आग लगाने से वातावरण तापमान की वृद्धि हो जाती है।



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