कृषि कानूनों के खिलाफ 8 दिसंबर को भारत बंद, वाम मोर्चा सहित तमाम संगठनों ने किया समर्थन


किसान विरोधी तीन काले कानूनों को वापस लेने के बजाय मोदी सरकार किसानों से संवाद को सार्थक अंजाम देने की जगह उसे लंबा खींचकर जनआंदोलन को उबाऊ थकाऊ हिंसक बनाने का दुष्चक्र रच रही है। किसान आंदोलन को रोकने के लिए न्यायपालिका का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। सरकार के इस षड्यंत्र से किसान सावधान है। जन आंदोलन लोकतंत्र की प्राण वायु और समय की जरूरत है। न्यायपालिका यह तय नहीं कर सकती जन आंदोलन कब किया जाए या नहीं किया जाए।


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उनकी बात Published On :

किसान महा आंदोलन द्वारा 8 दिसंबर को आयोजित भारत बंद को किसान संघर्ष समिति, अखिल किसान सभा, किसान खेत मजदूर संगठन, एसयूसीआइ, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, एटक सहित इंदौर के सभी वामपंथी और  जनवादी संगठन समर्थन करते हैं। अपनी सहभागिता रखते हैं। लाखों की संख्या में किसान देश की राजधानी दिल्ली के बाहर भीषण ठंड में खुले आसमान के नीचे आंदोलनरत हैं। ऐसे समय पानी से भीगाकर उन्हें मोर्चे से भगाने का अत्यंत आपत्तिजनक शर्मनाक और अमानवीय असफल प्रयास भी किया गया। 

किसान विरोधी तीन काले कानूनों को वापस लेने के बजाय मोदी सरकार किसानों से संवाद को सार्थक अंजाम देने की जगह उसे लंबा खींचकर जनआंदोलन को उबाऊ थकाऊ हिंसक बनाने का दुष्चक्र रच रही है। किसान आंदोलन को रोकने के लिए न्यायपालिका का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। सरकार के इस षड्यंत्र से किसान सावधान है। जन आंदोलन लोकतंत्र की प्राण वायु और समय की जरूरत है। न्यायपालिका यह तय नहीं कर सकती जन आंदोलन कब किया जाए या नहीं किया जाए। क्या देश को आजादी न्यायपालिका ने दिलाई है?

उस समय वह भी अंग्रेजों की पिट्ठू थी। आजाद भारत में भी उसकी स्वतंत्रता निष्पक्षता संदिग्ध है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि वह स्थापित सरकारों के वशीभूत होकर फैसले करती है। न्यायपालिका केवल कानून की असंवैधानिक स्थिति की समीक्षा कर उसे रद्द कर सकती है।  जिसे अभी बराबर अनदेखा किया जा रहा है। विषम परिस्थितियों के बावजूद इस भीषण ठंड में भी किसान बड़े धैर्य से लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार है।

संसद में किसानों को धोखे में रखकर मोदी सरकार ने जिस तरीके किसान विरोधी बिल को पास किया था उससे पूरी दुनिया में देश का लोकतंत्र कलंकित हुआ है। इस किसान विरोधी कानून में इस कदर खामियां हैं जिसे पूरी तरह खारिज करके नए सिरे से किसानों की मांगों का समावेश करके किसान हितेषी जन कानून पारित किया जाना चाहिए। देश के किसानों को विश्वास में लिए बिना ऐसे कानूनों का बनाया जाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण लोकतंत्र विरोधी आपत्तिजनक निंदनीय कृत्य है। महानगरीय विनाशकारी सभ्यता से दुनिया और देश को बचाने के लिए गांवों खेती और किसानों पर व्यापक दृष्टि बनानी होगी, इसी में सबका भला है।

(विज्ञप्ति: किसान संघर्ष समिति , मालवा निमाड़ के संयोजक  रामस्वरूप मंत्री द्वारा जारी) 



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