मालवा–निमाड़ की नर्मदा पट्टी में तेंदुओं का बढ़ता कुनबा, सुरक्षा इंतज़ाम नाकाम—हादसों और संदिग्ध मौतों से बढ़ी चिंता


मालवा-निमाड़ की नर्मदा पट्टी में तेंदुओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, लेकिन सुरक्षा इंतज़ाम कमजोर। हादसों, संदिग्ध मौतों और शिकार की आशंका से बढ़ी चिंता।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :

मालवा–निमाड़ की नर्मदा पट्टी इस समय एक ऐसे संकट से गुजर रही है, जिसके समाधान की दिशा में गंभीर कदम अभी तक उठते नहीं दिख रहे। जंगलों के लगातार सिमटते दायरे और नर्मदा तट पर बढ़ते मानवीय दखल ने तेंदुओं को नए ठिकाने तलाशने पर मजबूर कर दिया है। सरदार सरोवर व इंदिरा सागर परियोजना के विस्तृत बैकवॉटर ने पहले ही इनके प्राकृतिक आवास का बड़ा हिस्सा निगल लिया। अब ये तेंदुए, जो कभी घने जंगलों की गहराइयों में सुरक्षित रहते थे, धार, अलीराजपुर, खरगोन-बड़वानी और नर्मदा पट्टी के कई कस्बों तक पहुँच चुके हैं।

हालात इतने बदले कि जिले में तेंदुओं की संख्या सौ से अधिक आंकी जा रही है और वन विभाग के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में यह संख्या तेजी से बढ़ी है। लेकिन बढ़ते कुनबे के साथ सुरक्षा इंतज़ाम उसी अनुपात में मजबूत नहीं किए गए। नतीजा यह कि तेंदुए अब या तो सड़क हादसों में जान गंवा रहे हैं या संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए जाते हैं, जिनमें शिकार की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

 

धार और आसपास के इलाकों में तेंदुओं की बढ़ती मौजूदगी

धामनोद, मनावर, कुक्षी, डही, निसरपुर, पीथमपुर, बाग और अमझेरा जैसे क्षेत्रों में अब तेंदुओं का दिखना आम बात हो चुकी है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि नर्मदा के बैकवॉटर के बढ़ते दबाव के कारण कई तेंदुए ओंकारेश्वर क्षेत्र से निकलकर इन इलाकों में आ बसे हैं। कई बार इनके साथ मादा एवं शावक भी देखे गए।

 

सतपुड़ा की पहाड़ियों से सटे इन गांवों में पालतू पशुओं पर हमले भी बढ़े हैं, और अब ग्रामीण रात को खेतों की चौकीदारी करने से कतराने लगे हैं। कुछ लोग तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि इन जंगलों में बाघ की मौजूदगी के संकेत भी मिल रहे हैं।

 

सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न

वन विभाग के पास न तो पर्याप्त सुरक्षा उपकरण हैं और न ही प्रशिक्षित स्टाफ। ग्रामीण बताते हैं कि तेंदुओं की गतिविधि की सूचना देने पर विभागीय टीम कई बार मौके पर समय से नहीं पहुँचती। हालात यह हैं कि जिले की सात रेंजों में तैनात 150 से अधिक वनरक्षकों में से अधिकांश फील्ड में सक्रिय नहीं रहते।

 

बीते पाँच वर्षों में कई घटनाएँ सामने आईं—

करंट लगने से मौत,

सड़क दुर्घटनाएँ,

आपसी संघर्ष में मृत्यु,

और ऐसे कई मामले जिनमें खाल, पंजे या नाखून गायब पाए गए, जो शिकार की ओर इशारा करते हैं।

एक मामले में बाग क्षेत्र से मिले तेंदुए के शव में नाखून और पंजे पूरी तरह काटे हुए थे, जबकि आरोपियों का अब तक पता नहीं चल पाया।

 

तेंदुए नर्मदा पट्टी में क्यों आ रहे?

गन्ने के खेत इनके लिए सुरक्षित आश्रय बन गए हैं—ऊँची फसल, पानी की नजदीकी और शिकार (जंगली सूअर, छोटे जानवर) आसानी से उपलब्ध। गर्मियों में भी इन्हें पानी की तलाश में दूर नहीं जाना पड़ता। पीली मिट्टी के टीले, जंगल के अवशेष और रेत खदानों से बने गड्ढे इनके लिए अस्थायी आवास बन चुके हैं।

 

शिकार के पीछे अंधविश्वास भी एक वजह

क्षेत्र में तांत्रिक क्रियाओं के लिए तेंदुए की खाल, नाखून और अंगों की मांग बढ़ने की जानकारी भी सामने आती रही है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत यह गंभीर अपराध है, जिसमें सात साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

 

ज़मीनी स्थिति बिगड़ती जा रही—अब ज़रूरत कड़े कदमों की

अगर तेंदुओं को सुरक्षित आवास नहीं मिला, तो इंसान–तेंदुआ टकराव और बढ़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि रेस्क्यू, मॉनिटरिंग और ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए अलग सेल बने तथा बैकवॉटर प्रभावित क्षेत्रों में तेंदुओं के लिए सुरक्षित कॉरिडोर विकसित किए जाएँ।