देवास जिले के शुक्रवासा गाँव में सामाजिक संगठन हाउल समूह (HOWL – How Ought We Live) के परिसर में बुधवार देर रात आगजनी की बड़ी घटना सामने आई है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कुछ अज्ञात लोगों ने परिसर में घुसकर तोड़फोड़ की और आग लगा दी, जिससे वहां रखे वाहन, मशीनें, आटा चक्की, किताबें और फर्नीचर जलकर राख हो गए। प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक लाखों रुपये की संपत्ति नष्ट हो चुकी है।
घटना के बाद ग्रामीणों और संगठन के सदस्यों में दहशत है। पुलिस ने मौके का मुआयना किया है और फिलहाल FIR न करते हुए केवल पंचनामा बनाकर कर जांच शुरू कर दी है। हाउल समूह ने इस हमले को “सुनियोजित साजिश” बताया है और कहा है कि यह उन्हीं लोगों का काम हो सकता है जिन्होंने पहले भी उनके सदस्यों को धमकाया था।
गांव में तनाव और धमकियों की खबरें
गुरुवार सुबह जब पर्वतपुरा पंचायत विकास समिति (पीपीडीसी) — जो हाउल समूह द्वारा गठित एक ग्राम समिति है — के सदस्य परिसर की सफाई कर रहे थे, तभी स्थानीय निवासी नीलेश पटेल और ब्रह्मानंद चौधरी के नेतृत्व में कुछ लोगों ने उन्हें धमकाया कि यदि समिति ने फिर से काम शुरू किया तो “अंजाम गंभीर होंगे।”
यह वही परिसर है जिसे 5 अगस्त 2025 को स्थानीय प्रशासन ने बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिया था। तब प्रशासन ने किसी स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया के बिना कार्रवाई की थी, जिससे ग्रामीणों में असंतोष फैल गया था। परिसर पहले देवराज रावत नामक एक आदिवासी ग्रामीण की ज़मीन पर बनाया गया था और यह हाउल समूह का सामाजिक–सांस्कृतिक केंद्र हुआ करता था, जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, सामुदायिक रसोई, पुस्तकालय और रोजगार के छोटे प्रोजेक्ट चलाए जाते थे।

झूठे आरोपों से लेकर गिरफ्तारी तक
हाउल समूह के संस्थापक और पत्रकार सौरव बनर्जी पर जुलाई 2025 में “धार्मिक भावनाएँ आहत करने” का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज किया गया था। यह विवाद उस समय बढ़ा जब मई में एक स्थानीय अख़बार ने समूह पर “धर्मांतरण” और “वामपंथी गतिविधियों” का आरोप लगाते हुए सनसनीखेज रिपोर्टें प्रकाशित कीं।
24 जुलाई को बनर्जी ने इंदौर प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर आरोपों का जवाब देने की कोशिश की, लेकिन कार्यक्रम पर भीड़ ने हमला कर दिया। दो दिन बाद दर्ज हुई एफआईआर में उन पर देवी–देवताओं का अपमान करने और “धार्मिक भावनाएँ भड़काने” के आरोप लगाए गए। पुलिस ने उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएँ 299 और 302 लगाईं।
सितंबर में पेश चार्जशीट में पुलिस ने सबूत के रूप में दो किताबों का उल्लेख किया — एक फासीवाद पर 88-पृष्ठ की हिंदी पुस्तक और दूसरी कम्युनिस्ट आंदोलन पर किताब। जबकि बचाव पक्ष ने इसे “ज्ञान की सामान्य पुस्तकें” बताया, जो उनकी सामुदायिक लाइब्रेरी में मौजूद थीं। अदालत ने 16 अक्टूबर को बनर्जी को जमानत दी थी।

ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं का कहना
ग्रामीणों के अनुसार, हाउल समूह ने पिछले कुछ वर्षों में गाँव में कई विकास कार्य किए — स्वास्थ्य केंद्र, पुस्तकालय, महिला सशक्तिकरण समूह, और मुर्गी पालन जैसी रोजगार योजनाएँ।
ग्राम पंचायत ने भी अप्रैल 2024 में एक नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी कर कहा था कि हाउल समूह “पिछले तीन वर्षों से गाँव में सामाजिक कार्य कर रहा है और पंचायत को उनसे कोई आपत्ति नहीं है।”
HOWL की सदस्य श्वेता रघुवंशी का कहना है —
“यह सब पहले से तय हमला है। पहले झूठे आरोप, फिर बुलडोज़र और अब आग। किसी ने हमारी बात नहीं सुनी।”
व्यक्तिगत त्रासदी और मीडिया की भूमिका
सौरव बनर्जी ने जेल में लगभग तीन महीने बिताए, इसी दौरान उनकी माँ का निधन हो गया। उन्होंने एक रिपोर्ट में एक मीडिया हाउस से कहा था —
“मैं जेल में था, माँ की चिता के सामने सिर्फ वीडियो कॉल से पहुँच पाया। वह मुस्कुरा रही थीं, और मैं रोता रह गया।”
बनर्जी ने स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया पर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग का आरोप लगाया, यह कहते हुए कि “हमने गाँव में जो सामुदायिक शिक्षा और रोजगार मॉडल बनाया, उसे गलत तरीके से धर्मांतरण बताया गया।”
बुलडोज़र और गिरफ्तारी के बाद अब आगजनी की यह घटना HOWL समूह के लिए तीसरा बड़ा झटका है। पुलिस जांच जारी है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि “जब तक प्रशासन निष्पक्षता नहीं दिखाएगा, तब तक न्याय की उम्मीद कम है।”
















