MP: वोटर लिस्ट से 50 लाख नाम काटने की साजिश? कांग्रेस ने SIR पर उठाए सवाल


चुनाव आयोग के SIR पर मध्यप्रदेश में सियासत तेज — कांग्रेस का दावा: 50 लाख नाम हटाने की साजिश; नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने एक महीने के सत्यापन पर सवाल उठाए।


DeshGaon
भोपाल Updated On :
umang singhar

चुनाव आयोग (Election Commission of India) ने मध्य प्रदेश सहित देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में SIR (Special Intensive Revision) यानी विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की है। यह कदम मतदाता सूची को अद्यतन करने और उसमें संभावित गड़बड़ियों को सुधारने के उद्देश्य से उठाया गया है। हालांकि, आयोग के इस ऐलान के बाद मध्य प्रदेश की सियासत गर्म हो गई है।

कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि प्रदेश में करीब 50 लाख लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटने की साजिश चल रही है।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग से तीखे सवाल किए हैं कि “जब प्रदेश में 5 करोड़ 65 लाख मतदाता और 65 हजार से अधिक मतदान केंद्र हैं, तो आयोग केवल एक महीने में इतने विशाल सत्यापन कार्य को कैसे पूरा करेगा?”

 

‘इंटेंसिव रिवीजन नहीं, सिलेक्टिव रिमूवल’ — सिंघार

उमंग सिंघार ने बुधवार को भोपाल में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आयोग इस प्रक्रिया को स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन बता रहा है, लेकिन उन्हें यह सिलेक्टिव इंटेंसिव रिमूवल लगता है — यानी वोटर लिस्ट से चुनिंदा नाम हटाने की कवायद।

 

उन्होंने कहा कि आयोग हर साल स्पेशल समरी रिवीजन (SSR) करता है, जिसमें नाम जोड़ने या हटाने का सामान्य कार्य होता है। “तो फिर अब SIR की जरूरत क्यों पड़ी? क्या आयोग को अपनी ही प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है?” उन्होंने पूछा।

 

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि उन्होंने पहले भी मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों के सबूत चुनाव आयोग को दिए थे, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। “जब आयोग ही संदिग्ध तरीके से काम कर रहा है, तो इस प्रक्रिया की निष्पक्षता पर हम कैसे भरोसा करें?” — सिंघार ने कहा।

 

सवालों के घेरे में एक महीने का सत्यापन

मध्य प्रदेश में यह SIR प्रक्रिया 4 नवंबर से 4 दिसंबर 2025 तक चलेगी। इस अवधि में 5.74 करोड़ मतदाताओं का सत्यापन किया जाना है। कांग्रेस का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में रिकॉर्ड जांचना, दस्तावेज सत्यापित करना और हर मतदाता तक पहुंचना सिर्फ एक महीने में संभव नहीं है।

सिंघार ने उदाहरण देते हुए कहा कि बिहार में SIR के दौरान लाखों लोगों के नाम डिलीट कर दिए गए, जिनमें ज्यादातर मजदूर और प्रवासी थे। “मध्य प्रदेश के लगभग 50 लाख लोग बाहर काम करते हैं। क्या अब उन्हें अपना नाम बनाए रखने के लिए वापस आना पड़ेगा?” — उन्होंने सवाल उठाया।

 

आदिवासी और कमजोर वर्ग निशाने पर?

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि SIR के नाम पर आदिवासी, दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक मतदाताओं को सूची से हटाने की तैयारी है। सिंघार ने कहा कि आदिवासी इलाकों में इंटरनेट या डिजिटल सुविधा नहीं है, जिससे वे ऑनलाइन सत्यापन नहीं कर पाएंगे। “तीन लाख आदिवासियों के वनाधिकार पट्टे पहले ही रद्द किए जा चुके हैं — यानी 12 से 18 लाख वोट पहले ही खत्म करने की तैयारी है,” उन्होंने कहा।

उनका आरोप है कि भाजपा संगठित रूप से ऐसी रणनीति बना रही है, जिससे विपक्षी मतदाताओं की संख्या घटाई जा सके।

 

ECI की दलील और आगे का रास्ता

चुनाव आयोग का कहना है कि SIR का उद्देश्य केवल मतदाता सूची की पारदर्शिता और सटीकता बढ़ाना है। आयोग के अनुसार, यह प्रक्रिया हर राज्य में समान रूप से चलेगी और किसी वर्ग या दल के प्रति भेदभाव नहीं होगा।

मगर विपक्ष के आरोपों ने इस पुनरीक्षण प्रक्रिया को राजनीतिक विवाद में बदल दिया है। आने वाले हफ्तों में यह देखना दिलचस्प होगा कि आयोग कैसे पारदर्शिता और विश्वास दोनों को बनाए रखता है।