सत्रह साल पुरानी व्यवस्था बदलेगी एमपी सरकार, अपनाएगी कांग्रेसी तरीका!


इस संबंध में राज्य सरकार ने आईपीएस अफसरों के कैडर रिव्यू का प्रस्ताव भी केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया है। इसके अलावा प्रदेश सरकार ने कैडर रिव्यू में केंद्र से IPS की 39 नयी पोस्ट मांगी हैं।


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भोपाल Updated On :

भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार सत्रह साल बाद जांच एजेंसी में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन करने जा रही है। प्रदेश में आर्थिक अपराध शाखा यानी ईओडब्ल्यू में केवल आईपीएस अफसरों को ही एसपी बनाया जाएगा। राज्य में इस तरह की व्यवस्था 2003 तक थी।  राज्य सरकार ने 2018 और 2019 में हुए चुनावों में कालेधन के इस्तेमाल की बात सामने आने पर यह कदम उठाया है।

इन मामलों में  वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के भी नाम सामने आए हैं। उल्लेखनीय है कि छापों में जिन प्रमोटी अधिकारी अरुण मिश्रा का नाम आया था वे कई वर्षों तक एसपी ईओडब्ल्यू रहे और लेन-देन के नोट्स में उनके नाम के आगे साढ़े सात करोड़ से अधिक राशि का ज़िक्र है।

इस संबंध में राज्य सरकार ने आईपीएस अफसरों के कैडर रिव्यू का प्रस्ताव भी केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया है। इसके अलावा प्रदेश सरकार ने कैडर रिव्यू में केंद्र से IPS की 39 नयी पोस्ट मांगी हैं।

वहीं स्पेशल डीजी पुलिस ट्रेनिंग, आईजी होमगार्ड जबलपुर, आईजी पीटीआरआई, आईजी जेएनपीए समेत आईजी आरएपीटीसी इंदौर जैसी पांच आईपीएस पोस्ट को सरेंडर करने का प्रस्ताव भी राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को दिया है।

कैडर रिव्यू में मध्य प्रदेश सरकार ने होम मिनिस्ट्री से स्पेशल डीजी के दो नए पद की मांग की है. इन दोनों स्पेशल डीजी को फायर सर्विस और आईपीटीए भौंरी में पदस्थ किया जाएगा।

मध्य प्रदेश में साल 2003 से पहले प्रमोटी अफसर  EOW और लोकायुक्त में एसपी के रुप में पदस्थ नहीं किए जाते थे। इसके बाद भाजपा सरकार ने ही प्रमोटी अफसरों को इन जांच एजेंसियों में एसपी के तौर पर पदस्थ किया था।

राज्य में 2018 में जब कांग्रेस की सरकार वापिस आई और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने तब भी इसे लेकर कोई निर्णय नहीं लिया गया और परंपरा जारी रही। इसके बाद आयकर विभाग के छापों के बाद सामने आए सबूतों के बाद सरकार ने इस पुरानी व्यवस्था को फिर से बदलने की मंशा बनाई है।

जहां सरकार ने एक ओर ईओडब्ल्यू में आईपीएस को ही एसपी के रुप में पदस्थ करने का निर्णय़ लिया है वहीं पिछले दिनों यह भी स्पष्ट कर दिया गया था कि किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में सरकारी अधिकारी की जांच ईओडब्ल्यू  सीधे नहीं करेगा इसके लिए सरकार से उन्हें अनुमति लेनी होगी। इस कदम की आलोचना हो रही है और कांग्रेस ने तो इसे भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का तरीका बताया है।



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