
शहर ने गुरुवार की शाम विजयादशमी पर्व को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया। दहशरा मैदान और ऐतिहासिक किला मैदान दोनों स्थानों पर बुराई के प्रतीक रावण के विशाल पुतलों का दहन किया गया। परंपरागत शोभायात्रा, रंगीन आतिशबाजी और हजारों की भीड़ के बीच ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष गूंज उठे।
शाम सात बजे से किला मैदान में आतिशबाजी का सिलसिला शुरू हो गया। चारों ओर जगमग रोशनी और बारूद की गूंज से वातावरण रोमांचक बन गया। इसी बीच भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और हनुमानजी खुली जीप में सवार होकर शोभायात्रा के साथ पहुंचे। उनके स्वागत में जगह-जगह पुष्पवर्षा की गई और बैंड-बाजे की धुन पर लोग झूम उठे। मंच पर पूजन-अर्चन के बाद जैसे ही हनुमानजी ने रावण के पुतले पर अपनी गदा से प्रहार किया, पलक झपकते ही श्रीराम का अग्निबाण रावण की नाभि पर जा लगा। देखते ही देखते 51 फीट ऊंचा पुतला धू-धू कर जलने लगा।
360 डिग्री घूमने वाले इस पुतले की खासियत रही कि हर कोण से लोग इसे देख सके। जलते पुतले के साथ ही आकाश में रंग-बिरंगी आतिशबाजी फूट पड़ी। करीब एक घंटे तक चली आतिशबाजी ने पूरे आसमान को सतरंगी रोशनी से भर दिया। लोग इस अद्भुत नजारे को कैमरों में कैद करने के लिए उत्साहित दिखे।
किला मैदान पर उमड़ा जनसैलाब
दशहरा उत्सव समिति के संयोजक भगतसिंह चौहान व मनोज चौहान ने बताया कि परंपरागत चल समारोह में राम, लक्ष्मण और हनुमान के साथ वानर सेना भी शामिल रही। समिति के अन्य पदाधिकारियों में पर्वत सिंह चौहान, कुलदीप बुंदेला, टोनी छाबड़ा, द्वारकाधीश राठोड़ और अध्यक्ष राधेश्याम सेन की मौजूदगी रही।
लोगों के उत्साह का आलम यह रहा कि मैदान के भीतर जगह न मिलने पर हजारों लोग बाहर खड़े होकर कार्यक्रम का आनंद लेते रहे। भीड़ इतनी अधिक थी कि घोड़ा चौपाटी से लेकर किला मैदान तक लंबा ट्रैफिक जाम लग गया। अस्पताल रोड, त्रिमूर्ति चौराहा और मोहन टॉकीज रोड पर भी वाहनों की लंबी कतारें लगी रहीं। यातायात व्यवस्था को संभालने के लिए एसडीएम राहुल गुप्ता, एडिशनल एसपी विजय डाबर, डीएसपी आनंद तिवारी और टीआई सुनील शर्मा सहित पुलिस बल तैनात रहा।
विजय मंदिर में आज होगा उत्सव
दशहरे के अगले दिन शुक्रवार को विजय मंदिर में सम्पूर्ण हिंदू समाज द्वारा पारंपरिक विजय उत्सव मनाया जाएगा। इतिहासकार बताते हैं कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व महाराजा भोज ने तेलंगाना विजय के उपरांत धार में विजय मंदिर का निर्माण करवाया था। वहां स्थापित विजय स्तंभ आज भी वीरता और पराक्रम की गाथा कहता है। इसी परंपरा के चलते हर साल दशहरे के अवसर पर विजय मंदिर में विशेष आयोजन होता है।