
जिले के खनिज विभाग में इन दिनों प्रशासनिक असमंजस की स्थिति बनी हुई है। एक ही कुर्सी पर दो अधिकारी दावा कर रहे हैं और दोनों के पास अपने-अपने तर्क और आदेश हैं। नतीजा यह है कि विभाग का स्टाफ भ्रम की स्थिति में है कि किस अधिकारी के आदेश का पालन किया जाए।
दरअसल, शासन द्वारा ट्रांसफर पॉलिसी के तहत धार में पदस्थ खनिज अधिकारी राजेश कनेरिया का हाल ही में तबादला कर दिया गया था। उनकी जगह राजगढ़ से राजेंद्र परमार को नियुक्त किया गया, जिन्होंने 19 जून को पदभार भी ग्रहण कर लिया। लेकिन इसी बीच कनेरिया कोर्ट से स्टे ले आए, और अब वे भी उसी कुर्सी पर बैठे हुए हैं। एक ही विभाग में दो अधिकारियों की मौजूदगी ने न केवल कर्मचारियों को उलझन में डाल दिया है, बल्कि प्रशासनिक कामकाज को भी प्रभावित किया है।
मंत्री की फटकार भी काम न आई
सूत्रों के अनुसार, कनेरिया इस साल जनवरी में धार में पदस्थ किए गए थे। छह माह के कार्यकाल में उनकी ओर से किसी प्रकार की ठोस कार्रवाई नहीं की गई। उल्टा उनके अधीनस्थों पर क्षेत्र में रौब झाड़ने और मनमानी करने के आरोप लगे। खासतौर पर धरमपुरी क्षेत्र में एक ट्रैक्टर चालक ने केंद्रीय राज्यमंत्री सावित्री ठाकुर से शिकायत की थी कि खनिज विभाग के इंस्पेक्टर द्वारा बिना वजह परेशान किया जा रहा है। मंत्री के हस्तक्षेप के बावजूद वाहन नहीं छोड़ा गया। इसको लेकर मंत्री ने प्रशासनिक बैठक में सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई और खनिज अधिकारी को फटकार भी लगाई थी।
अवैध उत्खनन जारी, कार्रवाई शून्य
जिले में नर्मदा और अन्य सहायिक नदियों से अवैध रेत, मुरम और मिट्टी का उत्खनन बदस्तूर जारी है। हालांकि बारिश के चलते इसकी गति थोड़ी धीमी जरूर हुई है, लेकिन अवैध परिवहन की गतिविधियाँ अब भी जारी हैं। पुराने अधिकारी के कार्यकाल में इस पर अंकुश लगाने की कोई गंभीर कोशिश नहीं हुई। नया अधिकारी कुछ सक्रियता दिखा पाते, उससे पहले ही पुराने साहब कोर्ट से स्टे लेकर वापस आ गए।
इंदौर नहीं जाना चाहते पुराने साहब?
सूत्रों की मानें तो राजेश कनेरिया को धार से इंदौर भेजा गया था, लेकिन वे यहां से हटना नहीं चाहते। कोर्ट से स्टे लेकर वापसी इसी कोशिश का हिस्सा मानी जा रही है। सवाल उठता है कि क्या व्यक्तिगत रुचि और सत्ता समीकरण प्रशासनिक पारदर्शिता पर हावी हो रहे हैं?
अब प्रशासन और शासन की परीक्षा
खनिज विभाग जैसी संवेदनशील जिम्मेदारी में यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। अगर एक कुर्सी पर दो अधिकारी बने रहेंगे तो विभागीय अनुशासन, जवाबदेही और कार्रवाई सब कुछ ठप हो जाएगा। अब देखना है कि शासन इस स्थिति पर क्या निर्णय लेता है और किस अधिकारी को अंतिम रूप से जिम्मेदारी सौंपता है।